Shubhneet Kaushik
आधुनिक भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार मुशीरुल हसन का आज 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 15 अगस्त 1949 को जन्मे मुशीरुल हसन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एम.ए. और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से 1977 में पीएचडी की। मुशीरुल हसन का समूचा लेखन आधुनिक भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति, मुस्लिमों की राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी और भारत में मुस्लिम नेतृत्व के बौद्धिक इतिहास से संबन्धित है। वे वर्ष 2004-2009 तक जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति रहे और 2007 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। वर्ष 2002 में वे भारतीय इतिहास कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। मुशीरुल हसन इतिहासकार मोहिब्बुल हसन के बेटे थे, जिन्होंने ‘हिस्ट्री ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘बाबर, फाउंडर ऑफ मुग़ल एम्पायर इन इंडिया’ सरीखी किताबें लिखी थीं।
उन्नीसवीं सदी के उत्तर भारत के मुस्लिम विद्वानों के विचारों की पड़ताल मुशीरुल हसन ने अपनी किताब ‘ए मॉरल रेकनिंग’ में की है। जिसमें उन्होंने दिल्ली के पाँच मुस्लिम विद्वानों ज़काउल्लाह, सैयद अहमद ख़ान, नज़ीर अहमद, मिर्ज़ा ग़ालिब और अलताफ़ हुसैन हाली के वैचारिक रुझानों, 1857 के उनके अनुभवों, औपनिवेशिक शासन के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओं और संस्कृति व अस्मिता से जुड़े उनके विचारों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया।
इसी तरह उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे डॉ. एम.ए. अंसारी (1880-1936) की भी जीवनी लिखी, जिसका शीर्षक है ‘ए नैशनलिस्ट कनसाइंस’। जिसमें उन्होंने डॉ. एम.ए. अंसारी के राजनीतिक जीवन, कांग्रेस के साथ उनके सम्बन्धों, उनके राष्ट्रवादी विचारों और सांप्रदायिकता के विरुद्ध उनके संघर्षों का विस्तृत ब्यौरा दिया है।
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जेलों में बंद लोगों के रोज़मर्रा के जीवन और जेलों के अनुभवों का इतिहास भी मुशीरुल हसन ने अपनी किताब ‘रोड्स टू फ़्रीडम’ में लिखा। जिसमें उन्होंने औपनिवेशिक भारत में जेलों की दशा, राजनीतिक संघर्ष और प्रतिरोध, जेलों में बंद भारतीयों के राष्ट्रीय आंदोलन संबंधी विचारों का गहराई से अध्ययन किया।
अपनी एक अन्य किताब ‘फ्राम प्लूरलिज़्म टू सेपरेटिज्म’ में उन्होंने औपनिवेशिक अवध के क़स्बाई जीवन की ऐतिहासिक तस्वीर पेश की। जिसमें उन्होंने अवध के क़स्बों की सांस्कृतिक बहुलता, सामाजिक विविधता, उन पर इंडो-पर्शियन संस्कृति के प्रभाव, राजनीतिक अस्मिताओं के निर्माण की प्रक्रिया और स्थानीय व राष्ट्रीय आंदोलन के बीच जुड़ाव को बखूबी रेखांकित किया।
इसी तरह मुशीरुल हसन ने प्रसिद्ध तुर्की लेखिका और नेता हैलिडे एडीप (1884-1964) की भारत यात्रा और महात्मा गांधी व भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से उनके जुड़ाव पर भी एक विचारोत्तेजक किताब लिखी, ‘बिटविन मॉडर्निटी एंड नैशनलिज़्म’। इस किताब में उन्होंने हैलिडे एडीप के संस्मरणों के जरिये भारत व तुर्की के साझा अनुभवों का विवरण तो दिया ही, साथ ही उनके जेंडर, आधुनिकता, धर्म व संस्कृति संबंधी विचारों को भी सामने रखा।
1877 में सज्जाद हुसैन के सम्पादन में लखनऊ से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक ‘अवध पंच’ में छपे कार्टूनों पर भी मुशीरुल हसन ने एक किताब लिखी, ‘विट एंड ह्यूमर इन कॉलोनियल नॉर्थ इंडिया’। उन्होंने ‘टूवर्ड्स फ़्रीडम’ सीरीज के अंतर्गत वर्ष 1939 के दस्तावेज़ संपादित किए और सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू का भी सम्पादन किया। उनके द्वारा संपादित कुछ अन्य किताबें हैं : इंडियाज़ पार्टिशन, म्यूटिनी मेमॉयर्स, इस्लाम एंड इंडियन नैशनलिज़्म।