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बंगाल से बिहार का पृथक्करण : सच क्या झूठ क्या

  आधुनिक भारत ही की भांति आधुनिक बिहार के इतिहास पर भी अगर गौर करें तो कहना पड़ेगा कि आधुनिकता और राष्ट्रवाद की प्रगति के साथ-साथ समाज में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों में भी वृद्धि होती रही। भारत में राष्ट्रवाद, सम्प्रदायवाद तथा जातिवाद का जन्म साथ-साथ हुआ। तात्पर्य यह कि हमारा राष्ट्रवाद अपनी प्रकृति में प्रतिक्रियात्मक और नकारात्मक था। साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में जैसे ही प्रगति हुई वैसे ही उनकी प्रतिगामी शक्तियों में भी इजाफा हुआ। सन् 1885 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने सांप्रदायिक विद्वेष एवं जातीय संगठनों...

गंगा जमुनी तहज़ीब के माथे का झूमर- फिराक़ गोरखपुरी

सरज़मीन-ए-हिन्द पे अक़वाम-ए-आलम के फिराक़ क़ाफ़िले आते गये हिन्दोस्तां बनता गया फिराक़ गोरखपुरी अपने इस शेर में हिंदुस्तान की हज़ारों बरस पुरानी गंगा जमुनी तहज़ीब की सुन्दरता को बयान करते हुये फ़रमाते हैं कि हिंदुस्तान किसी एक धर्म, किसी एक जाति, किसी एक बिरादरी, किसी एक सोच, किसी एक भाषा के लोगों का स्थान नहीं हैं बल्कि हिंदुस्तान विभिन्न धर्मों, विभिन्न जातियों, विभिन्न बिरादरी, विभिन्न सोच, विभिन्न भाषाओं के इंसानों का संगम है| अनेक तहज़ीबों के इस संगम को गंगा जमुनी तहज़ीब कहते हैं, दूसरे शब्दों में इसे अनेकता में...

पटना की हिंदी पत्रकारिता में पाटलिपुत्र का योगदान

  बांकीपुर में संपन्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27 वें अधिवेशन ने बिहार के राजनैतिक जीवन में उथल-पुथल मचा दी और बिहार का बंगाल से पृथक्करण (1912 ई.) राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक बना. इस समय तक बिहार एक नया मोड़ ले चुका था और लोग निःस्वार्थ देश-प्रेम, निर्भीक विचार तथा अटल संकल्पों के दीवाने बनकर जोशपरक पठनीय सामग्रियों की तलाश करने लगे थे. 'पाटलिपुत्र' इन्हीं दीवानों की राष्ट्रीय आकांक्षाओं की चिर प्रतीक्षित उपलब्धि बनकर आया जिसने अपने कर्तव्यों के पालन में अपना अस्तित्व तक मिटा दिया पर देशी...

हिन्दी के निर्माण में बिहार बन्धु प्रेस का योगदान

  सन् 1846 ईस्वी के पूर्व बिहार में कहीं भी मुद्रणालय की नींव नहीं पड़ी थी। बैप्टिस्ट मिशन के अधिकारियों ने उत्तर-बिहार के अंचलों में ईसाई धर्म के प्रचार तथा विद्यालयों के लिए पुस्तक-प्रकाशन के निमित्त मिशन प्रेस की स्थापना सन् 1846 ई. में की। बिहार में मुद्रणालय की स्थापना का संभवतः यह प्रथम प्रयास था। सन् 1857 ईस्वी में पटना में दो मुद्रणालयों का उल्लेख मिलता है, जो अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिए खोले गये थे। अतएव यहाँ के विद्यालयों के लिए कलकत्ता, लखनऊ, बम्बई और बनारस से ही...

जब एक मुग़ल शहज़ादी के क़ौल पर हिंदू राजपूतों ने अपनी जान लड़ा दी।

"अस्मत ए चागताई वा राजपुत यक अस्त।" साल था 1682 यही कोई जून जुलाई का महीना रहा होगा। बादशाह औरंगज़ेब के बेटे आज़म शाह मराठों से लड़ने में मसरूफ़ थे, जब उन्हें बादशाह औरंगज़ेब ने अहमदनगर की ओर मार्च करने का हुक्म दिया और फिर चढ़ाई करते हुए उन्होंने धारूर (बीड ज़िला महाराष्ट्र) पर कब्जा कर लिया। https://hindi.heritagetimes.in/the-grandson-of-maharana-pratap-who-sacrificed-his-life-for-shah-jahan/ खतरे को महसूस करते हुए उन्होंने अपनी बेगम जहां ज़ेब बानो को पीछे (धारूर में) छावनी में छोड़ दिया और राव अनिरुद्ध सिंह हाडा और उनके वफादार राजपूत मातहतों को उनकी हिफाज़त...

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जब ख़्वाब ने मौलवी ख़ुदाबख़्श को हज के सफ़र पर निकलने को किया मजबूर, जो था उनका आख़िरी सफ़र

पुर्व केंद्रीय मंत्री डॉ शकील अहमद अपने पिता बिहार विधानसभा के पुर्व उपसभापति शकूर अहमद के साथ कहीं जा रहे थे। उन्हें रास्ते में एक साहब मिले। जिनसे शकूर अहमद बड़े लख़-लखे से मिले। और फिर उन्होंने अपने बेटे शकील...

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रौशनी जिसकी किसी और के काम आ जाए! एक दिया ऐसा भी रस्ते में जला कर रखना! (अतश अज़ीमाबादी) ख़्वाजा सैयद रियाज़ उद दीन अतश […]