हफ़ीज़ किदवई
अर्रे मुझसे छुप क्यों रहे हो, मेरे करीब आओ, मेरे पास बैठो। तुमने मुझे गोली मारी, मुझे ज़रा भी दुःख नही। तुम मुझसे नाराज़ थे, बहुत बार नाराज़गी में ऐसे कदम उठ जाते हैं। मुझे आज नही तो कल मरना ही था। आख़िर कितना जीता मगर यक़ीन करो गोडसे मैं तुम्हारे काम से रत्ती भर नही नाराज़ हूँ। तुमने तो वोह किया जो तुमने अपने संगठन के बड़ो से सीखा। मुझे तुम्हारी फाँसी पर अफसोस है। जब तुमको मुझे मारने के जुर्म में फाँसी दी जा रही थी तब मैं तड़प रहा था।
मैं ठीक उस वक़्त चाह रहा था की काश मैं ज़िंदा होता और तुम्हे अपनी चादर में छुपा साबरमती आश्रम लिए जाता। मुझे पता है जब तुमने मुझपर गोली चलाई तो तुम मुझसे हद दर्जे नफ़रत करते थे। मगर गोडसे मैं फिर कह रहा हूँ की तुम्हारे साथ जो किया गया। जो मेरे ख़ून का बदला लिया गया। भले कानून का ही सहारा लिया गया हो फिर भी यह गाँधी का रास्ता नही था। तुम्हे पता है मुझे कब सबसे ज़्यादा तक़लीफ़ पहुँचती है जब कोई कहता है “गाँधी हम शर्मिंदा हैं-तेरे क़ातिल ज़िंदा हैं”। सोचो यह नारा, किसी की मौत की कामना का नारा गाँधी को कितना शर्मिंदा करता है।
आओ मेरे पास आओ मैं तुम्हारे पाँव के काँटों को निकाल दूँ। तुम्हे जो तक़लीफ़ मुझे खत्म करने के बाद मिली, मेरी नज़र में नही मिलनी चाहिए थी। गोडसे अगर मुमकिन होता की मैं ज़िंदा हो सकता तो तुम मान लो मैं तुम्हारे हाथ से तमंचा लेकर चरखा पकड़ा देता। भले ही तुम फिर मुझे गोली मार देते। मैं फिर उठकर तुमसे कहता यह सारे लोग मेरे अपने हैं। तुम फिर चाहे गोली मार देते।
गोडसे ने गाँधी जी से अपनी रोई हुई, भरी आँखों से कहा की क्या आपने मुझे माफ़ कर दिया। तब वोह बोले, हम नाराज़ ही कब थे। हाँ नाराज़गी तुम्हारी सोच से थी। तुम्हारे दिल में उठती नफ़रत से थी। किसी को अपना न समझने से नाराज़गी थी। अगर हो सके तो यहाँ से अपने लोगों के लिए प्रार्थना करो की वोह नफ़रत से दूर रहें।
आओ तुम्हे यहाँ हर उससे मिलवाता हूँ जिसे किसी न किसी ने अपनी सोच के खिलाफ चलते शहीद कर दिया है। देखो भगत सिंह भी तुमसे नाराज़ नही हैं। मान लो हम सबकी लड़ाई तुमसे या किसी इंसान से नही थी, हम तो नफ़रत वाली सोच के खिलाफ थे। इंसान को इंसान का गुलाम बनाने के खिलाफ थे। ख़ैर छोड़ो और सुकून से यहाँ रहो।
गोडसे रोता हुआ उनके पाँव में झुका जैसे आजके ही दिन भीड़ के सामने वोह गाँधी के कदमों में झुका था। मगर जब सर उठाया तो उसकी आँखे रो रोकर लाल हो चुकी थीं और गाँधी उसके सर पर हाथ रखकर कह रहे थे,नफरत को जीत लो तो सुक़ून मिलेगा। तुम्हारी बेचैनी दूर होगी। उसने रोते हुए तीन बार कहा “महात्मा, महात्मा, महात्मा गाँधी”
लेखक लगातार #हैशटैग का उपयोग कर लिखते रहे हैं।