शहीद भगत सिंह ने सेंट्रल जेल, लाहौर से कई ख़त लिखे जिसमे से एक पत्र उनके छोटे भाई कुलतार सिंह के नाम भी है।
शहीद-ऐ-आज़म भगत सिंह द्वारा अपने छोटे भाई कुलतार सिंह को लिखा ख़त आज भी हर नौजवान के लिए प्रेरणादायी है……!!
3 मार्च 1931 को कुलतार सिंह ने जेल मे शहीद भगत सिंह से मुलाक़ात की। विदाई के समय छोटे भाई की आखों मे आंसू थे। इस संदर्भ मे भगत सिंह ने अपने अज़ीज़ को हौसला देते हुए कुछ इस तरह उर्दु ज़ुबान में ख़त लिखा था:-
3 मार्च 1931
सेंट्रल जेल, लाहौर
अज़ीज़ कुलतार,
आज तुम्हारी आखों मे आंसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों मे बहुत दर्द था, तुम्हारे आंसू मुझसे सहन नही होते।
बरख़ुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख़्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूं ?
“उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-जफ़ा क्या है।
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतेहा क्या है।
दहर से क्यो ख़फ़ा रहें, चरख़ का क्यों गिला करें
सारा जहां अदू सही, आओ मुक़ाबला करें।
कोई दम का मेहमां हूँ ऐ अहले-महफ़िल
चराग़-ए-सहर हूं, बुझा चाहता हूं।
हवा मे रहेगी मेरे ख़्याल की बिजली
ये मुश्ते-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे, न रहे।
अच्छा रुख़सत।
खुश रहो अहले-वतन, हम तो सफ़र करते है।
हिम्मत से रहना।
तुम्हारा भाई
भगत सिंह
दहर = वक़्त, चरख़ = वक़्त का चक्कर, अदू = दुशमन
ये ख़त शहीद भगत सिंह ने फांसी की तारीख़ से केवल 20 दिन पहले लिखा था।