हिन्दुस्तान ग़दर :- अमेरिका से छपने वाला अंग्रेज़ी राज का दुशमन; हफ़्तावार उर्दु, गुरुमुखी अख़बार

 

ग़दर के सिपाहीयों उठो, जागो और पहले की निसबत ज़्यादा सरगर्मी से काम करो : सिक्रेट्री युगांतर अश्रम

ज्ञात रहे के ग़दर पार्टी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ हथियारबंद संघर्ष का ऐलान और भारत की पूरी आज़ादी की मांग करने वाली राजनैतिक पार्टी थी, जो कनाडा और अमरीका में प्रवासी भारतीयों ने 1913 में बनाई थी। इसके संस्थापक अध्यक्ष सरदार सोहन सिंह भाकना थे। ग़दर पार्टी का मुख्यालय सैन फ़्रांसिस्को में था।

इस पार्टी के पीछे लाला हरदयाल की सोच थी, जिन्हें इंग्लैंड की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी गतिविधियां चलाने के आरोप में निकाल दिया गया था।

इसके बाद वो अमरीका चले गए थे। वहां उन्होंने भारतीय प्रवासियों को जोड़ना शुरू किया और ग़दर पार्टी की स्थापना की।

पार्टी के अधिकतर सदस्य पंजाब के पूर्व सैनिक और किसान थे, जो बेहतर ज़िंदगी की तलाश में अमरीका गए थे।

भारत को अंग्रेज़ी हुकूमत से आज़ाद कराने के लिए ग़दर पार्टी ने पहले 1 नवम्बर 1913 को उर्दू फिर 9 दिस्मबर 1913 को गुरुमुखी और फिर उसके बाद हिंदी गुजराती, पश्तो, बंगाली, इंग्लिश, जर्मन, फ़्रंच सहीत कई ज़ुबान में ‘हिंदुस्तान ग़दर’ नाम का अख़बार भी निकालना शुरु किया। वो इसे विदेश में रह रहे भारतीयों को भेजते थे। पहले ये हांथ से लिखा जाने वाला अख़बार हुआ करता था; बाद मे प्रेस से छपने लगा।

https://twitter.com/HeritageTimesIN/status/999518333258031104?s=19

करतार सिंह सराभा ने पहले अंक में लिखा कि “आज क़लम की ताक़त से अंग्रेज़ी साम्राज्य पर तोप दाग़ दी गई है।” ग़दर अख़बार ने विदेशों में बसने वाले भारतीय लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। थोड़े ही दिनों में यह अख़बार इतना अधिक लोकप्रिय हो गया कि प्रत्येक की ज़ुबान पर शब्द ग़दर चढ़ गया।

लोग इतने उत्साहित हो गये कि वे देश की आज़ादी के लिए सब कुछ क़ुर्बान करने के लिए तत्पर हो गए। लोगो की मांग पर ग़दर अख़बार उर्दू के साथ गुरुमुखी, गुजराती एवं हिन्दी में भी छपने लगा। अख़बार की प्रकाशन संख्या थोड़े ही समय में लाखों तक पहुंच गई। अख़बार के लिए कोई पैसा नही लिया जाता था; यह मुफ़्त वितरित होता था।

ग़दर अख़बार अमरीका अौर इसके आसपास के 1-2 देशों तक ही सीमित नहीं था, अपितु यह तो विश्व में जहां कहीं भी भारतीय बसते थे, वहां तक जाता था। जैसे कि हांगकांग, मलाया, सिंगापुर, शंघाई, पीनांग, शियाम, फ़िलीपीन्स, पानामा, दक्षिणी अफ़्रीका एवं अर्जन्टीना आदि कई देशों तक इस अख़बार को श्रमिक एवं कर्मचारी गुट बनाकर पढ़ते थे तथा चर्चा करते थे।

इस अख़बार के प्रचार से हिन्दी श्रमिक स्वत: ही ग़दर पार्टी की शाखाएं बना लेते थे। हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए लोगों को तैयार करने के लिए विदेशों में अन्य समाचार-पत्र भी छपते थे, परन्तु ग़दर अख़बार के हृदय को छूने वाले लेखों ने अन्य अख़बारों से कहीं अधिक अंग्रेज़ों के विरुद्ध सार्वजनिक रोष पैदा किया था। अंग्रेज़ शासकों के रोकने के बावजूद अख़बार भारत में पहुंच जाता था।

ग़दर अख़बार हिन्दी श्रमिकों एवं मज़दूरों में इतना अधिक लोकप्रिय हो गया था कि लोग गदर पार्टी का प्राथमिक नाम ‘हिन्दोस्तान एसोसिएशन ऑफ़ पेसेफ़िक कोस्ट’ भूल गए तथा उन्होंने स्वयं ही “ग़दर पार्टी” का नाम मशहूर कर दिया। ग़दरी नेताओं ने ग़दर अख़बार के माध्यम से पार्टी की विचारधारा का विस्तार बड़े सरल ढंग से पेश किया।

पार्टी की नीति यह थी कि अंग्रेज़ी साम्राज्य की दासता से मुक्ति प्राप्त करके एक ऐसी शासन व्यवस्था स्थापित की जाए, जिसमें प्रत्येक मनुष्य के समान अधिकार होगें। देश में अमीर-गरीब का भेद नहीं होगा तथा सभी लोग खुशहाल होंगे।

मेहनत करने वाले श्रमिकों को उनकी मेहनत का पूरा मुआवज़ा मिलेगा। किसान जो अनाज पैदा करके सभी लोगों का पेट भरते हैं, वे भूखे नहीं मरेंगे। किसानों की फसलों पर किसी क़िस्म का अतिरिक्त कर नहीं लगेगा। मज़दूर जो बड़े-बड़े भवन एवं महल निर्मित करते हैं, वे सिर पर छत के बगैर नहीं सोयेंगे एवं उनके रहने के लिए भी शानदार घर बनेंगे।

ग़दर पार्टी ने अपनी विचारधारा का ग़दर अख़बार के माध्यम से धुआंदार प्रचार किया जिससे विदेशों में बसने वाले हिन्दी श्रमिकों के मन में देश को आज़ाद करवाने की तीव्र इच्छा पैदा हो गई। लोग अंग्रेज़ी शासकों को ख़त्म करके देश में से भगाने के लिए तैयार हो गए।

ग़दर पार्टी की क्रांतिकारी योजना चाहे अधिक सफ़ल नहीं हुई, परन्तु ग़दरी नेताओं के अभूतपूर्व बलिदान ने देश में आज़ादी की लहर की ज्योति जला दी। इस ज्योति को जलते हुए रखने के लिए बब्बर अकाली लहर, किरती पार्टी एवं नौजवान भारत सभा ने महत्वपूर्ण योगदान डाला, परन्तु खेद है कि स्वतंत्र भारत की सरकारों ने ग़दरी देशभक्तों की सोच को भुला दिया जिसके कारण देश का अन्नदाता किसान एवं खेत मज़दूर ऋण के बोझ तले दबे हुए प्रतिदिन आत्महत्याएं कर रहे हैं।

14 मई 1914 को ग़दर में प्रकाशित एक लेख में लाला हरदयाल ने लिखा : “प्रार्थनाओं का समय गया; अब तलवार उठाने का समय आ गया है । हमें पंडितों और काज़ियों की कोई ज़रुरत नहीं हैं।”

लाला हरदयाल ने, जो अपने आप जो अराजकतावादी कहा करते थे, एक बार कहा था कि स्वामी और सेवक के बीच कभी समानता नहीं हो सकती, भले ही वे दोनों मुसलमान हों, सिख हों, अथवा वैष्णव हों। अमीर हमेशा गरीब पर शासन करेगा… आर्थिक समानता के अभाव में भाईचारे की बात सिर्फ़ एक सपना है।

ग़दर अख़बार में बड़ा दिलचस्प विज्ञापन छपता था। :- ज़रूरत है …. जोशीले …. बहादुर …. सैनिकों की

तनख़्वाह – मौत
इनाम – शहादत
पेंशन – आज़ादी
कार्यक्षेत्र – हिन्दोस्तान

“ग़दर अखबार” ने 1914 में एक संपादकीय लेख छापा था :- धर्म जब राजनीती के साथ घुलमिल जाता है तो वह एक घातक विष बन जाता है, जो राष्ट्र के जिवंत अंगो को धीरे धीरे नष्ट करता रहता है। भाई को भाई से लडाता है, जनता के होसले पस्त करता है। उसकी दृष्टी को धुंधला बनाता है, असली दुश्मन की पहचान कर पाना मुश्किल कर देता है जनता की जुझारू मनःस्थिती को कमजोर करता है, और इस तरह राष्ट्र को साम्राज्यशाही साजिशो की आक्रमनकारी योजनाओं का लाचार शिकार बनाता है।”

तस्वीर मे आप ग़दर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल की गिरफ़्तारी के मुताल्लिक़ लेख देख सकते हैं, जो 24 मार्च 1914 को “ग़दर” में छपा; जो अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को से शाय होता था! गदर अख़बार (उर्दू) वॉल्यूम। 1, नंबर 22, 24 मार्च 1914

बंदे मातरम – अये मर्दानों, हिन्दी जवानों, जल्दी लाओ हथियार – बंदे मातरम

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.