यह पोस्ट खासकर 19 से 24 वर्ष के युवाओं के लिए है। यही उमर भगतसिंह की सामाजिक सक्रियता के रहे। इस उमर के लड़के बहुत प्यारे लगते हैं। हम सब अपनी वह उम्र बहुत मिस करते हैं।
तो लड़कों, तुम्हें भगतसिंह की यह फोटो बहुत अच्छी लगती है न! मूंछें और हैट वाली! कितना रोबीला है न उनका चेहरा! उनकी आँखों में देखो, कितनी निडरता है। चेहरे पर देखो, कितना ओज है।
तुम्हारे भीतर भी एकदम निडरता रहनी चाहिए। भीतर से निडर रहोगे, तो चेहरे पर तेज और वाणी में ओज अपने-आप आ जाएगा।
भगत सिंह द्वारा अपने छोटे भाई कुलतार सिंह को उर्दु में लिखा ख़त आज भी हर नौजवान के लिए प्रेरणादायी है……!! #Urdu #BhagatSingh #ShaheedBhagatSingh https://t.co/outNwv3bve
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) March 4, 2019
निडरता का मतलब उच्छृंखलता, लापरवाही और हिंसकता नहीं है, यह हमेशा ध्यान रखना। उच्छृंखलता लुच्चों का काम है, लापरवाही मूढ़ों का और हिंसा कायरों-बुजदिलों का। भगतसिंह हिंसक नहीं थे। इसे समझना और याद रखना।
भगतसिंह की सीधी गर्दन देखो, इससे पता चलता है कि उनकी ‘रीढ़ की हड्डी’ मौजूद थी, सलामत थी और एकदम सीधी थी।
‘रीढ़ की हड्डी’ का भावार्थ समझते हो न? अपनी रीढ़ की हड्डी सलामत और सीधी रखनी बहुत जरूरी है। तुम्हारी उमर में तो खासकर। और हमेशा बची रह गई, तो समझना तुम भी भगतसिंह ही निकले।
#BhagatSingh ' hand-written letter from jail in #Urdu to his younger brother Kultar Singh on March 3, 1931. #ShaheedBhagatSingh pic.twitter.com/rtnVEtDdHt
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) September 26, 2018
लड़कों, मैं मानकर चल रहा हूँ कि तुम्हें पढ़ना आता है और पढ़ना अच्छा भी लगता है। तुम भगतसिंह की फोटो ही देखते-लगाते न रहना। उनका लिखा प्रामाणिक साहित्य भी पढ़ना।
भगतसिंह को ठीक से पढ़े बिना तुम असली भगतसिंह को जान नहीं पाओगे। किसी नकली भगतसिंह के जयकारे लगाते रह जाओगे। जयकारे किसी के भी मत लगाओ। उन्हें पढ़ो और पढ़कर खुद से जानो। ठीक लगे तो वैसा ही बरतो भी।
हम समझ सकते हैं कि अभी तुमपर सिलेबसी किताबों, परीक्षाओं और करियर-रोजगार इत्यादि का भी दबाव होगा। होगा ही। यारी-दोस्ती, फैशन और मनोरंजन का भी दबाव होगा। इस उमर में हमपर भी था। लेकिन इन दबावों के बीच भी मायूस नहीं होना।
भगतसिंह कभी मायूस नहीं होता। भगतसिंह व्यक्ति नहीं, एक प्रवृत्ति है। भगतसिंह लड़ता है। ‘लड़ना’ समझते हो न? यह लड़ाई, संघर्ष बिना लाठी-बंदूक की होती है। लेकिन होती है बड़ी असरकारी।
Sardar Bhagat Singh’s Urdu letter to his brother Kultar Singh (from jail on 3rd March 1931) https://t.co/0ZmUVUYD53
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) March 4, 2019
तुम्हें लड़ना है। किसी व्यक्ति से नहीं, बल्कि सदियों से जड़ें जमा चुकीं रुढ़ियों से, जड़ताओं से, अन्याय से, शोषण से, झूठ से।
धन, सत्ता, लोभ, भोग, अहंकार और हथियार की दासता, इन सबसे लड़ना है तुम्हें। मुश्किल है, लेकिन लड़ना है। कोई साथ न भी आए, तो भी अकेले ही लड़ना होगा।
याद रखो, यह अन्याय, दासता, शोषण, झूठ और जड़ता हर कहीं है। इसलिए यदि तुम अकेले भी लड़ने चल पड़ो, तो तुम्हें तुम्हारे सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर, बिस्मिल और आज़ाद भी मिल ही जाएंगे।
हाँ, जोश के साथ-साथ होश भी कायम रखना। पार्टियाँ, सरकारें, संगठन और कंपनियां तुम्हें कुछ भी सुंघाकर मदहोश और बेहोश करने पर आमादा हैं। इनमें जहरखुरानों को पहचानना जरूरी है। कम-से-कम इनसे बच भी गए, तो भी खुद को भगतसिंह ही समझना।
देखो न, हम खुद तो पूरा भगतसिंह न बन सके, लेकिन तुम्हें कह रहे हैं कि भगतसिंह बन जाओ। दरअसल विनम्रता से सच कहने की ताकत बची रही, तो तुम भी खुद को भगतसिंह ही समझना। सबकुछ गंवाने की कीमत पर भी यह आज़ादी बचा रखना।
एक बार फिर से भगत की इस तस्वीर को देखना। उनकी आँखों में करुणा देखना। उनकी भृकुटी और ललाट की तनावरहितता को देखना। उनकी सीधी गर्दन में सचाई का हौसला देखना।
नाक से झलकते आत्मविश्वास को देखना। उनके होठों पर तैरती बारीक सी मुस्कुराहट में इंसानी भाईचारे को देखना। उनके हैट और उनकी कमीज में आधुनिकता और परंपरा का समन्वय देखना।
यह सब देखना। बार-बार देखना। भगत की यह तस्वीर भी मानो यही कह रही है- ‘शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर।’
तुम्हारा ही,
अव्यक्त
(लेखक के फ़ेसबुक पोस्ट से साभार)