रहमत अली शाह : जंग ए आज़ादी का एक गुमनाम क्रांतिकारी

हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी में अहम भुमिका निभाने वाले महान क्रांतिकारी शहीद रहमत अली शाह का जन्म 1886 को बरनाला-संगरुर पंजाब के एक गांव वज़ीके में हुआ था।

वो ग़दर पार्टी के अंडरकवर कार्यकर्ता थे। गदर पार्टी का मक़सद प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पूरे भारत में वैसा ही ग़दर मचाना था जैसा 1857 में क्रांतिकारी सिपाहीयों ने मचाया था और इस मिशन को कामयाब बनाने के लिए उन्होने पहले फ़्रांस को अपना ठिकाना बनाया, फिर बाद में भारत में ग़दर मचाने की ख़ातिर फ़िलिपींस होते हुए भारत पहुंचे।

फ़िलिपींस में रहमत अली शाह की मुलाक़ात हाफ़िज़ अबदुल्लाह, जगत सिंह, कांसी राम, धियान सिंह, लाल सिंह, चंदन सिंह, कचरभालगंधा सिंह जैसे क्रांतिकारीयों से हुई।

कई दर्जन क्रांतिकारीयों के साथ रहमत अली शाह मनीला के रास्ते नागासाकी से हांग कांग पहुंच गए, और इसके बाद वो लोग हिन्दुस्तान में थे। ये सारे लोग हिन्दुस्तानी ही थे पर अमेरिका, चीन सहीत दुनिया के कई मुल्क में रह रहे थे। और अपने मुल्क हिन्दुस्तान को आज़ाद करवाने की ख़ातिर वापस हिन्दुस्तान आये थे।

हिन्दुस्तान पहुंच कर इन लोगों ने भेस बदला और पोर्ट से गुप्त रूप से फ़रार हो गए। इसके बाद अंग्रेज़ों को नुक़सान पहुचाने और फ़ौजी बग़ावत को अंजाम देने के लिए एक साथ मिल कर मियां मीर, लाहौर और फ़िरोज़पुर छावनी पर हमला करने का इरादा किया।

26 नवम्बर 1914 को ग़दर पार्टी की एक मिटिंग फ़िरोज़पुर शहर के बाहर जलालाबाद रोड पर हुई लेकिन वहां आगे के लिए किसा भी प्लान पर बात नही हो सकी।

27 नवम्बर 1914 को कर्तार सिंह सराभा के साथ सब लोग लुधयाना के लिए ट्रेन से निकले पर रहमत अली शाह अपने कुछ साथियों के साथ पीछे ही छुट गए और उन लोगों ने मोगा ज़िला जाने का इरादा किया और टांगे पर सवार हो कर कचरभाल गंधा सिंह, जगत सिंह, धियान सिंह और चंदा सिंह के साथ उधर के लिए निकल पड़े।

रास्ते मे पुलिस स्टेशन के पास कुछ पुलिस अहलाकार थे जिनमे अधिकतर ज़ैलदार, लम्बरदार और थानेदार थे।

महेशरी पुल के पास टांगे पर बैठ कर आ रहे इन ग़दरीयों को पुलिस द्वारा रोका गया और उनके साथ बदतमीज़ी की जाने लगी और जब रहमत अली शाह ने उनका विरोध करते हुए सवाल किया तो उन्हे पुलिल वालों ने थप्पड़ जड़ दिया। इतना देखना था के जगत सिंह और कचरभाल गंधा सिंह ने पुलिस वालों पर हमला कर ज़ैलदार और थानेदार को वहीं पर क़त्ल कर दिया और बाक़ी पुलिस वाले एका एक हुए हमले से घबरा कर भाग गए।

तमाम क्रांतिकारी जंगल मे जा छुपे पर पुलिस ने तब तक पुरे इलाक़े को घेर लिया और आग लगा दी। धियान सिंह और चंदा सिंह वहीं पर शहीद हो गए। और बाक़ी सात लोग पक़ड़ लिए गए।

फ़िरोज़पुर सेशन जज ने इन सभों को अंग्रेज़ी सरकार से बग़ावत और क़त्ल के जुर्म में सज़ाए मौत दी और 25 मार्च 1915 को वतन ए अज़ीज़ हिन्दुस्तान की आज़ादी की ख़ातिर मुजाहिद ए आज़ादी रहमत अली शाह 29 साल की उम्र में अपने साथी लाल सिंह , जगत सिंह और जीवन सिंह को मांटगेमरी सेंट्रल जेल जो अब पकिस्तान में है, में फांसी के फ़ंदे पर चढ़ जाते हैं। कुछ दिन बाद बाक़ी बचे क्रांतिकारीयों को भी फांसी पर लटका दिया गया।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.