बेगम रुक़य्या सख़ावत हुसैन ने बिहार के भागलपुर में पहला ऐ़ैसा स्कूल खोला था जो सिर्फ़ लड़कियों की पढ़ाई के लिए थे।
उन्होंने कई नोवेल और कहानियां भी लिखीं। उनकी “सुल्तानाज़ ड्रीम्स” काफ़ी मशहूर किताब रही।
औरतों के हक़ की लड़ाई करने वाली बेगम रुक़ैय्या की पैदाइश 9 दिसम्बर 1880 को उत्तरी बंगाल में रंगपुर ज़िला के पैराबंद इलाके में हुई थी। उनके पिता ज़हीरुद्दीन मोहम्मद अबू अली होसेन साबेर इलाक़े के जमींदार थे. उनकी मां का नाम राहेतुन्निसा साबेरा चौधरानी था. यह इलाका अब बांग्लादेश में चला गया है।
#BegumRokeya Sakhawat Hossain (9 December 1880 – 9 December 1932) was a Bengali #Feminist thinker, writer, educationist, social activist, advocate of women's rights, & widely regarded as the pioneer of women's education in the Indian subcontinent during British rule. #RokeyaDay pic.twitter.com/ESGMXjD1PP
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) December 9, 2018
रुक़ैया जब पैदा हुईं तो बंगाल के मुसलमान मर्दों के बीच स्कूली पढ़ाई शुरू हो गई थी. मगर तालीम की रोशनी घर के घेरे में बंद स्त्रियों तक नहीं पहुंची थी. बंगाल के अमीर मुसलमान घरों में स्त्रियों को सिर्फ़ मज़हबी तालीम दी जाती थी।
इस तालीम का दायरा भी क़ुरान तक सिमटा था. बहुत हुआ, तो कुछ घरों में उर्दू पढ़ना सिखा दिया जाता था. लिखना नहीं. बांग्ला या अंग्रेजी की पढ़ाई का तो सवाल ही नहीं था।
रुक़ैया के दो भाई कोलकाता में पढ़ाई कर रहे थे. बड़ी बहन को भी पढ़ने का शौक़ था. बड़े भाई ने रुक़ैया को घर के बड़ों से छिप-छिप कर अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू पढ़ाई।
रुक़ैया लिखती हैं, ‘बालिका विद्यालय या स्कूल-कॉलेज के अंदर मैंने कभी प्रवेश नहीं किया. केवल बड़े भाई के ज़बरदस्त प्यार और मेहरबानी की वजह से मैं लिखना पढ़ना सीख पाई.’
पढ़ाई की वजह से इनका काफ़ी मज़ाक उड़ाया गया. ताने दिए गए. मगर न तो वे और न ही उनके भाई पीछे हटे. इसलिए रुक़ैया अपने इल्मी और दिमाग़ी वजूद के लिए बार-बार बड़े भाई को याद करती हैं।
1896 में 16 साल की उम्र में बेगम रुक़ैय्या की शादी भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ख़ान बहादुर सख़ावत हुसैन से हो गयी, सख़ावत तब 38 साल के थे और इससे पहले भी उनकी शादी हो चुकी थी लेकिन पहली बीवी की मौत के बाद उन्होंने रुक़ैय्या से शादी की। दोनों का साथ लगभग 14 साल का है।
सख़ावत हुसैन, बिहार के भागलपुर के रहने वाले थे. सख़ावत हुसैन को लड़कियों की पढ़ाई में ख़ासा इंटरेस्ट था और इस वजह से वो रुक़ैय्या को पूरा समर्थन दिया करते थे। उनकी मौत तक रुक़ैया का ज्यादातर वक़्त भागलपुर में ही गुज़रा. यही वह दौर है, जब रुक़ैया लिखना शुरू करती हैं और ख़ूब लिखती हैं।
उनके कुछ महत्वपुर्ण कार्य
सुलतानार शोपनो (सुलताना का सपना)
ओबोरोध्बाधिनी (महिलाएँ निर्वासन में)
मोटिचुर
पद्दोराग (पद्म की गंध) (असंपूर्ण)
नारीर आधिकार (महिलाओं के अधिकार), इस्लामी महिला एसोसिएशन हेतु निबंध
लड़कीयों के लिए खोला स्कुल
1909 में जब सख़ावत का इंतिक़ाल हुआ तो वो रुक़ैय्या के लिए काफ़ी पैसे छोड़ गए थे जिसका इस्तेमाल रुक़ैय्या ने लड़कियों की पढ़ाई के लिए किया।
अपने शौहर की मौत के 5 महीने बाद ही उन्होंने सख़ावत मेमोरियल गर्ल्स हाई स्कूल की स्थापना की, उस वक़्त ये स्कूल भागलपुर में खोला गया था और तब इसमें सिर्फ 5 स्टूडेंट्स थे. अपने शौहर के परिवार से कुछ प्रॉपर्टी को लेकर हुए विवाद की वजह से उन्हें ये स्कूल 1911 में कलकत्ता शिफ्ट करना पड़ गया. ये स्कूल काफी मशहूर स्कूल माना जाता है और आज इसे पश्चिम बंगाल की सरकार चलाती है।
बेहतरीन इंसान, लड़कियों/स्त्रियों की प्रेरणा, अदब की दुनिया में अलग पहचान बनाने वाली, स्त्री के हक़ में आवाज़ उठाने वाली, मुसलमान लड़कियों की तालीम के लिए अपना तन-मन-धन लगा देने वाली, महिलाओं को एकजुट कर संगठन बनाने वाली, समाज सुधार के लिए ज़िन्दगी देने वाली रुक़ैया सख़ावत हुसैन का इंतक़ाल 52 साल की उम्र में 9 दिसम्बर 1932 को दिल की बीमारी की वजह कर हो गया। मगर आख़िरी सांस तक उनकी ज़िन्दगी स्त्रियों को ही समर्पित रही।
बांग्लादेश ने रुक़ैया को काफी इज़्ज़त बख़्शी है. वहां 9 दिसम्बर का दिन हर साल रुकैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।