चंद्रशेखर आज़ाद को प्रेरित करने वाले अमर शहीद प्राफ़ुल चंद चाकी

लड़ते रहे अंग्रेजों से और जब आखिरी गोली बची तो उसे चूमकर अपने आप को मार लिया। जी हाँ ये कहानी चंद्रशेखर आज़ाद की लगती है, पर एक और आज़ादी का दीवाना था जिनसे आख़री गोली से अपने आप को ख़त्म कर लिया। बात उस वक़्त की है जब चंद्रशेखर आजाद सिर्फ 2 साल के  🙂

जी हाँ हम बात कर रहे मशहूर मुजाहिदे – आज़ादी प्रफुल्ल चंद चाकी की जिन्होंने 20 साल की उम्र में अपने मुल्क (हिन्दुस्तान + पाकिस्तान + बांग्लादेश) की आज़ादी के लिए खुद को क़ुर्बान कर दिया ? चंद्रशेखर आजाद ने जिस तरह जीते जी अंग्रेजों के हाथ न आने का अहद किया था , उसी तरह प्रफुल्ल चंद चाकी भी एक ऐसे मुजाहिद थे, जिन्होंने ब्रितानिया हुकूमत के हाथ न आने की अपनी कसम निभाई।

चाकी का जन्म 10 दिसंबर, 1888 को बोगरा जिले के बिहारी गांव [वर्तमान में बांग्लादेश] में हुआ था। बचपन से ही उनके मन में देश को आजाद कराने की लगन लगी थी। छात्रों के विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के कारण उन्हें नौवीं कक्षा में रंगपुर के जिला स्कूल से निकाल बाहर कर दिया गया था।

इसके बाद चाकी ने रंगपुर नेशनल स्कूल में दाखिला ले लिया, जहां वह जितेंद्र नारायण राय, अविनाश चक्रवर्ती और इसहान चंद्र चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए तथा क्रांतिकारी विचारधारा का पाठ सीखा। इतिहासकार सदानंदन के अनुसार बारिन घोष चाकी को कोलकाता लेकर आए और जुगांतर पार्टी में उनका नाम दर्ज करा दिया। इस तरह चाकी पूरी तरह क्रांतिकारी बन गए और सिर पर कफ़न बांधकर जंग ए आज़ादी में शामिल हो गए।

वर्ष 1908 में चाकी ने खुदीराम बोस के साथ अंग्रेज अधिकारी पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया, लेकिन वह बच निकला। चाकी बंगाल के सेशन जज किंग्सफोर्ड से बहुत खफ़ा थे, जिसने कई क्रांतिकारियों को कड़ी सजा दी थी। उन्होंने अपने साथी खुदीराम बोस के साथ मिलकर बदला लेने की योजना बनाई।

दोनों मुज़फ़्फ़रपुर आए और 30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया, लेकिन उस समय गाड़ी में किंग्सफोर्ड की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिलाएं सवार थीं। किंग्सफोर्ड के धोखे में दोनों महिलाएं मारी गईं जिसका इन नौजवान क्रांतिकारियों को बेहद अफसोस हुआ। अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लगी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। उन दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए । खुदीराम बोस तो मुज़फ़्फ़रपुर में पकडे गए पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगारी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया और उसने इसकी सूचना आगे दे दी , प्रफुल्ल चाकी को जब इसका एहसास हुआ तो वो बाढ़ अनुमण्डल के मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और शहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्ज़े में लेकर उनके सर को काटकर कोलकत्ता भेज दिया, वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख़्त हुई।

आओ इन मुजाहिदे आज़ादी को ख़राजे अक़ीदत पेश करें <3 आज 10 दिसम्बर है और आज के दिन ही ये अज़ीम शख्सियत सरज़मीने हिन्द में पैदा हुई

शहीदों की ज़मीं है जिसको हिंदुस्तान कहते हैं,
ये बंजर हो के भी बुज़दिल कभी पैदा नहीं करती !

  

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.