महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त : काले पानी की कालकोठरी से लेकर पटना की सड़कों तक

यूं तो मुझे हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के सारे मुजाहिद ए आज़ादी, इंक़लाबी और क्रांतिकारियों से मुहब्बत है, और मै उनकी तह ए दिल से इज़्ज़त करता हुं। पर जिस क्रांतिकारी से मुझे आज सबसे अधिक लगाव है वो हैं भगत सिंह के साथ एसेंबली में बम फोड़ने वाले महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त साहेब।

वही बटुकेश्वर दत्त जो हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए फांसी के सज़ा से बचते हुए सालों तक काले पानी की कालकोठरी में क़ैद रहे; और जब मुल्क आज़ाद हुआ तो पेट पालने के लिए सड़कों पर ऐड़ियां घींसा!

जिस शख़्स को युवाओं का आदर्श होना था उसे आदर्श तो क्या, लोगों ने जीते जी ही भुला दिया था। आज़ादी के बाद पटना शहर में बटुकेश्वर दत्त ने कभी ठेले पर बनियान बेची तो कभी साइकिल पर घूम-घूमकर बिस्कुट बेचा, कभी सिगरेट कंपनी में काम किया तो कभी बस चलाने का नाकाम व्यवसाय किया।

चूंकी बटुकेश्वर दत्त का मानना था कि आज़ादी की लड़ाई लड़ने का कोई मुआवज़ा नहीं होना चाहिए इसलिए उन्हे आज़ाद भारत में 18 साल तक गुमनामी और अभावग्रस्त जीवन जीना पड़ा।

इस अजीब सी कहानी का सबसे दुखद पहलु यह है कि वह पटना शहर भी बटुकेश्वर दत्त को ठीक से याद नहीं करता जहां उन्होंने अपने आधी से अधिक ज़िन्दगी गुज़ार दी। जहां उनकी इकलौती संतान भारती बागची जी रहती हैं, जो पटना के मगध महिला कॉलेज में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर थीं।

इत्तेकाफ़ से हमें उनसे मिलने का कई बार मौक़ा मिला और हम उनकी सादगी देख कर दंग रह गए। दो कमरे के एक फ़्लैट मे रहने वाली भारती जी से जब आप बात कीजिएगा तो कहीं से ऐहसास ही नही होगा के आप उससे बात कर रहे जो एक अज़ीम विरासत की ऐकलौती वारिस हैं।

उनसे मै जब जब मिला तब एक ही सवाल करता था के आपको बटुकेश्वर दत्त की बेटी होने पर कैसा महसूस होता है? हर बार उनका वही जवाब होता था जो एक सायादार दरख़्त का होना चाहीये! वो निहायत ही मसूमियत के साथ बता थीं के उनके लिए फ़ख़्र की बात है, और बटुकेश्वर दत्त के संतान होने के कारण ही मै उनसे मिलने आया!

भारती बागची जी बताती हैं के पटना से बहुत कम लोग उनसे मिलने आते हैं, पर पंजाब से बड़ी तादाद में लोग उनसे मिलने आते हैं।

बटुकेश्वर दत्त जी से बचपन में उर्दु सीखने वाली भारती बागची जी से जब हम उनकी सादगी के बारे में पूछते हैं तो वो कहती हैं ये उन्हे उनके पिता से विरासत मे मिली है।

जब हम उनसे पूछते हैं के आपके पिता बटुकेश्वर दत्त जी को क्या वो सम्मान मिला जिस सम्मान के वो हक़दार थे ? तो वो कहती हैं नही! पर बिहार के मुख्यमंत्री का शुक्रिया भी अदा करती हैं के उनकी वजह कर उनके पिता बटुकेश्वर दत्त जी की प्रतीमा बिहार विधानसभा के सामने लगी है। लेकन अब आपको जान कर हैरत होगी के अज़ीम क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त जी की प्रतीमा को सड़क चौड़ा करने के नाम पर वहां से हटा दिया गया हा। अब तक सड़क तो चौड़ी नही हुई पर बटुकेश्वर दत्त जी की उस प्रतीमा को वहां से हटा कर पटना के किसी गुमनाम जगह पर लगा दिया गया है।

और हां भारती बागची जी कॉफ़ी बहुत बेहतरीन बनाती हैं। उन्होने ख़ुद अपने हाथों से बना कर हमें पिलाया था। आप भी उनसे आशिर्वाद ले सकते हैं।

आज सुबह ही भारती बागची जी से बात कर आशिर्वाद लिया। जब मैने उन्हे बताया के ये कॉल मैने उनके पिता जी, भारत की शान, बिहार के लाल बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथी पर ख़िराज ए अक़ीदत पेश करने के लिए किया है तो वो बहुत ख़ुश हुईं।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.