मंगल पांडे से चन्द्रशेखर आज़ाद: जनेऊधारी क्रान्तिकारियों का अदभुत सिलसिला… जिन्होने मुसलमानो की रक्षा की…

अमरेश मिश्र

आज 23 जुलाई 2018 महान क्रान्तिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की 112वीं जयंती है।

आजाद ने भारत के प्रमुख क्रांतिकारी, साम्राज्यवाद विरोधी संगठन, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का नेतृत्व किया। इससे पहले, जब संगठन को HRA कहा जाता था, राम प्रसाद बिस्मिल इसके मुखिया थे।

आजाद ने HRA की कमान उस वक़्त संभाली जब रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में सभी चारों को विभिन्न स्थानों पर फांसी दी गई थी। HRA की रीढ़ मानो टूट चुकी थी।

फिर भी, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ, आजाद ने एक समाजवादी संगठन के रूप में पार्टी को पुनर्जीवित किया जो ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध था।

एक वामपंथी होने के बावजूद, आज़ाद ने पवित्र धार्मिक धागा (जनेऊ) पहनने को कभी नहीं छोड़ा। उनकी पैदाइश यद्यपि मध्य प्रदेश में हुई, आजाद का सम्बन्ध उत्तर प्रदेश के बदारका, उन्नाव में कन्याकुब्ज ब्राह्मण समुदाय से था। वह अवध से आये थे। बिंदा तिवारी, मंगल पांडे और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों सम्बन्ध भी वहीँ से था।

मंगल पांडे की तरह एक अवधी ब्राह्मण होने के नाते, आज़ाद मूर्तिपूजक थे लेकिन साथ ही साथ वो यथास्थिति के विरोधी और बागी तेवर के शख्स थे। आज़ाद और उनके बाद आने वाले अवध से कई वामपंथी स्वंत्रता सेनानियों के लिए, सनातन ब्राह्मण में विश्वास और समानतावाद की वकालत करने में कोई विरोधाभास नहीं था।

वास्तव में, इन हस्तियों के लिए, ब्राह्मण नैतिकता का विचार वो था जहां योग्यता को जाति या धर्म से ऊपर रखा जाता था। वो न्याय केलिए जंग को एक दिव्य कर्तव्य, एक आंतरिक मूल्य के रूप में सामाजिक जिम्मेदारी, और अन्य धर्मों के साथ सहिष्णुता/एकीकरण एक नैतिक कर्तव्य के रूप मानते थे।

आजाद एक पहलवान थे जो अपने पवित्र धागे (जनेऊ) पहने हुए नियमित रूप से वर्ज़िश करते थे।

आजाद जानते थे कि हेडगेवार, आरएसएस के संस्थापक, जो HRA के एक पूर्व सदस्य थे, एक ब्रिटिश साम्राज्य केलिए मुखबरी करते थे। भगत सिंह और आजाद को शक था की हेडगेवार ने ही अंग्रेज़ों को राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य HRA कॉमरेडों के बारे में सूचित किया था।

HRA नेता अक्सर RSS सदस्यों को ‘ब्रिटिश दलाल’ कहकर सम्बोधित करते थे।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, आज़ाद और भगत ने योजना बनाई और लाहौर के ब्रिटिश अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या को कामयाबी के साथ अंजाम दिया।

भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद, आजाद अपने साथियों के बचाव के लिए पैसे जुटा रहे थे। लेखक और साहित्यिक यशपाल, जो HSRA का हिस्सा भी थे, को आजाद ने हिंदू महासभा के वीर सावरकर पास भेजा।

यशपाल ने अपनी आत्मकथा ‘सिंघवालोकन’ में लिखा है कि सावरकर 50,000 रुपये देने के लिए सहमत तो हो गए लेकिन इस शर्त पर कि आजाद और HSRA के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ना बंद करना होगा और जिन्ना और अन्य मुसलमानों की हत्या करनी होगी।

जब आज़ाद को सावरकर के प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्हों इस पर सख्त आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा, “यह हम लोगों को स्वतन्त्रा सेनानी नही भाड़े का हत्यारा समझता है। अन्ग्रेज़ों से मिला हुआ है। हमारी लड़ाई अन्ग्रेज़ों से है…मुसलमानो को हम क्यूं मारेंगे? मना कर दो… नही चाहिये इसका पैसा। ‘

teamht http://HeritageTimes.in

Official Desk of Heritage Times Hindi