Sharjeel Usmani
सन 1929 में इटली जब लीबिया पर अपना कब्ज़ा करने की लगातार कोशिश कर रहा था तब लीबिया के बागियों का सरदार उमर मुख़्तार इटली की सेना को नाकों तले चने चबवा रहा था. मुसोलिनी को एक ही साल में चार जनरल बदलने पड़े. अंत में हार मान कर मुसोलिनी को अपने सबसे क्रूर सिपाही जनरल ग्राज़ानी को लीबिया भेजना पड़ा. उमर मुख़्तार और उसके सिपाहियों ने जनरल ग्राज़ानी को भी बेहद परेशान कर दिया. जनरल ग्राज़ानी की तोपों और आधुनिक हथियारों से लैस सेना को घोड़े पर सवार उमर मुख़्तार व उनके साथी खदेड़ देते. वे दिन में लीबिया के शहरों पर कब्ज़ा करते और रात होते होते उमर मुख्तार उन शहरों को आज़ाद करवा देता.
“When the great Libyan anti-colonial liberation fighter, #OmarMukhtar, protected two surviving Italian prisoners, saying ‘We do not kill prisoners,’" Omar continues, “his fellow warrior said ‘They do it to us.’ He responded with these majestic words: ‘They are not our teachers.’” pic.twitter.com/IPHXw294b4
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 20, 2018
उमर मुख़्तार इटली की सेना पर लगातार हावी पड़ रहा था और नए जनरल की गले ही हड्डी बन चुका था. अंततः जनरल ग्राज़ानी ने एक चाल चली. उसने अपने एक सिपाही को उमर मुख्तार से लीबिया में अमन कायम करने और समझौता करने के लिए बात करने को भेजा. उमर मुख्तार और जनरल की तरफ से भेजे गए सिपाही की बात होती है. उमर अपनी मांगे सिपाही के सामने रखते हैं. सिपाही चुप चाप उन्हें अपनी डायरी में नोट करता जाता. सारी मांगे नोट करने के बाद सिपाही उमर मुख्तार को बताता है की यह सारी मांगे इटली भेजी जाएंगी और मुसोलिनी के सामने पेश की जाएंगी. इटली से जवाब वापस आते ही आपको सूचित कर दिया जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा जिसके चलते उमर मुख़्तार को इंतज़ार करने को कहा गया. उमर मुख्तार इंतज़ार करते हैं. इटली की सेना पर वे अपने सारे हमले रोक देते हैं. मगर इटली से क्या आता है? खतरनाक हथियार, बम और टैंक – जिससे शहर के शहर तबाह कर दिए जा सके. समय समझौते के लिए नहीं हथियार मंगाने के लिए माँगा गया था. कपटी ग्राज़ानी अपनी चाल में सफल होते हैं. नए हथियारों से लीबिया के कई शहर पूरी तरह से तबाह कर दिए जाते हैं.
#OmarMukhtar's struggle of nearly twenty years came to an end on 11 September 1931, when he was wounded in battle near Slonta, and then captured by the Italian army.
Pic :- #OmarMukhtar entering the court room. pic.twitter.com/zkZ237NyY3
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) September 16, 2018
जनरल ग्राज़ानी ने उमर मुख़्तार को गिरफ़्तार कर लिया, 15 सितम्बर 1931 को हाथों में, पैरों में, गले में हथकड़ी जकड़ उमर मुख़्तार को जनरल ग्राज़ानी के सामने पेश किया गया, 73 साल के इस बूढे शेर से जनरल ग्राज़ानी ने कहा ” तुम अपने लोगों को हथियार डालने कहो” ठीक पीर अली ख़ान की तरह इसका जवाब उमर मुख़्तार ने बड़ी बहादुरी से दिया और कहा “हम हथियार नही डालंगे, हम जीतेंगे या मरेंगे और ये जंग जारी रहेगी.. तुम्हे हमारी अगली पीढ़ी से लड़ना होगा औऱ उसके बाद अगली से…और जहां तक मेरा सवाल है मै अपने फांसी लगाने वाले से ज़्यादा जीऊंगा ..और उमर मुख़्तार की गिरफ़्तारी से जंग नही रुकने वाली … जनरल ग्राज़ानी ने फिर पुछा ” तुम मुझसे अपने जान की भीख क्युं नही मांगते ? शायद मै युं दे दुं…” उमर मुख़्तार ने कहा “मैने तुमसे ज़िन्दगी की कोई भीख ऩही मांगी दुनिया वालों से ये न कह देना के तुमसे इस कमरे की तानहाई मे मैने ज़िन्दगी की भीख मांगी” इसके बाद उमर मुख़्तार उठे और ख़ामोशी के साथ कमरे से बाहर निकल गए।
On 16 September 1931, on the orders of the Italian court and with Italian hopes that Libyan resistance would die with him, #OmarMukhtar was hanged before his followers in the POW camp of Suluq at the age of 73 years.#LionOfDesert #OmerMukhtar pic.twitter.com/fQEIltaqZP
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) September 16, 2018
इसके बाद 16 सितम्बर सन 1931 ईसवी को इटली के साम्राज्यवाद के विरुद्ध लीबिया राष्ट्र के संघर्ष के नेता उमर मुख़्तार को उनके ही लोगो के सामने फांसी दे दी गई।