भारत की जंग ए आज़ादी और हिन्दु-मुस्लिम एकता में इमारत-ए-शरिया बिहार का योगदान!

नज़रबंदी के दौरान 1917 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद नें रांची शहर में एक तालीमी एदारा क़ायम किया था, जिसे आज दुनिया मदरसा इस्लामिया रांची के नाम से जानती है, इस इदारे का मक़सद था मुसलमानो को मज़हबी और दुनियावी हालात से रुबरु करवाना ताके वो जंग ए आज़ादी में एक मज़बूत योद्धा के रुप में हिस्सा ले सकें। वो लगातार इस कोशिश में थे के और लोगों को इस इदारे से जोड़ा जाए और इस सोंच को आगे बढ़ाने के लिए उन्होने क़ाजी अहमद हुसैन को ये ज़िम्मेदारी दी के वो पुरे बिहार का दौरा करें और ज़िम्मेदार लोगों से मिलें और उनके सामने अपनी बात रखें।

क़ाज़ी अहमद हुस्सैन

इन्ही सब चीज़ को ज़ेहन में रख कर क़ाजी अहमद हुसैन गया जाते हैं, तो उनकी मुलाक़ात इंक़लाबी जज़बात रखने वाले मुफ़्ककिर ए इस्लाम मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब से होती है, जो जमियत उल्मा ए बिहार के संस्थापक थे। यहां क़ाज़ी साहेब मौलाना आज़ाद के ख़्यालात को मौलाना सज्जाद साहेब के सामने पेश करते हैं, सारी बात सुनने के बाद मौलाना सज्जाद साहेब फ़रमाते हैं :- “मौलाना आज़ाद को चाहीए के वो पहले इमारत ए शरिया के क़्याम पर ग़ौर करें, जो एक शरई फ़रीज़ा भी है, जब मुसलमान एक अमीर शरियत के अताअत को क़बूल करेगा तो उसके अंदर तंज़ीम और इत्तेहाद पैदा होगा, फिर इंक़लाब आएगा, बिना इसके इंक़लाब की कोशिश कामयाब नही सकती”…

इसके बाद क़ाजी अहमद हुसैन वापस रांची जाते हैं, और मौलाना आज़ाद के सामने ये फ़िक्र रखते हैं, पुरी बात सुनने के बाद मौलाना आज़ाद फ़ौरन मौलाना सज्जाद साहेब से मिलने ख़्वाहिश ज़ाहिर करते हैं, फिर जब दोनो की मुलाक़ात होती है तो पुरी बात तफ़्सील में सामने आती है, और नेज़ाम ए इमारत ए शरिया का मंसुबा तय होता हैl इसके बाद जमियत उल्मा ए बिहार के लोगों की एक मीटिंग मई 1921 में दरभंगा में होता है, और इस तरह

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद 1923 में

मौलाना सज्जाद साहेब की कोशिश के वजह कर 26 जून 1921 को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की सदारत में “ईमारत ए शरीया” 500 से अधिक उल्मा ए कराम की मौजुदगी में वजूद में आता है, ख़ानक़ाह मुजिबिया पटना के मुर्शीद ए आज़ाम हज़रत मौलाना शहाबुद्दीन साहेब और ख़ानक़ाह रहमानिया मुंगेर के मुर्शीद ए अव्वल मुफ़्ककिर ए इस्लाम हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद अली मुंगेरी के नुमाईंदे अपने अपने शेख़ के पैग़ाम को लेकर आए और बैत किया, ख़ानक़ाह-ए-मुजीबिया के सज्जादानशीं शाह बदरूद्दीन साहब (1852-1924) को अमीर ए शरियत चुना गया, मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब (1880-1940) उनके नायब चुने गए, यानी उनको नायब अमीर ए शरीयत बनाया गया।

“इमारत ए शरिया” के एक साल बाद ही नाएब अमीर शरियत मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब की मेहनत की वजह कर 26-31 दिसम्बर को गया शहर में “इंडियन नेशनल कांग्रेस”, “ख़िलाफ़त कमिटी”, “आकली दल” और “आल इंडिया जमीयत उलमा” का सालाना इजलास धूम धाम से मनाया गया, इस इजलास में हिन्दु मुस्लिम एकता पर ज़ोर दिया गयाl

नाएब अमीर शरियत मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब हमेशा हिन्दु मुस्लिम एकता की बात करते थे, सन 1925 में जमियत उलमा हिंद के मुरादाबाद इजलास में उन्होंने अपनी सदारती तक़रीर मे साफ़ तौर पर कहा के सियासत एैन दीन है, और उनका मानना है की मुसलमानों को कांग्रेस का साथ देना चाहिए और हिंदू मुस्लिम दोनो मिलकर इस देश को अंग़्रेजों से आज़ादी दिलवाएंl

“इमारत ए शरिया” के ज़ेर ए क़यादत जो दानिशवर और उलमा ए कराम जंग ए आज़ादी में हिस्सा ले रहे थे उसमें मौलाना सज्जाद साहेब के इलावा अमीर शरियत हज़रत मौलाना मोहिउद्दीन साहेब, हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद क़मरुद्दीन, हज़रत मौलाना मुहम्मद मिन्नतुल्लाह रहमानी, क़ाजी अहमद हुसैन, मौलाना हफ़ीज़ मुहम्मद सानी (बेतिया), मौलाना उस्मान ग़नी (देवरा, गया), शेख़ अदालत हुसैन (देवराज, चम्पारन), वकील सईदउल हक़ (दरभंगा), डॉ सैयद अब्दुल हफ़ीज़ फ़िरदौसी, बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस, बैरिस्टर मोहम्मद महमूद, मौलाना अब्दुस समद रहमानी (बाढ़), एैडवोकेट ख़लील अहमद जैसे सैंकड़ो लोग शरीक थेl

حضرت مولانا عثمان غنی ؒ -مہد سے لہد تک

“इमारत ए शरिया” से हर 15 रोज़ पर एक रिसाला निकलता था ‘इमारत’ जिसमे शाए होने वाली इंक़लाबी तहरीरें सीधे तौर पर अंग्रेज़ो के उपर हमलावर होती थी, अंग्रेज़ो ने इस बाग़ीयाना समझा और मुक़दमा चलाया, फिर जुर्माना भी वसूल किया पर इंक़लाबी मज़ामीन में कोई कमी नही आई; जिससे थक हार कर अंग्रेज़ो ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के वक़्त बैन कर दिया। तब ‘नक़ीब’ नाम से एक रिसाला निकाला गया जिसने और मज़बूती से अपनी बात रखी और ये ऱिसाला आज भी जारी है।

आज़ादी के दीवाने म्यूज़ियम, लाल क़िला में लगी ‘इमारत’ की तस्वीर

क़ाबिल ग़ौर बात यह है कि मौलाना सज्जाद साहेब की स्पष्ट मान्यता थी कि मुसलमानों की शिक्षा, रोज़गार, मज़हबी मसायल, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर इमारत शरिया को आज़ाद रूप से काम करना चाहिए, जहां वो मुस्लिम लीग के ख़िलाफ़ थे वहीं उन्होने कांग्रेस की दोहरी चाल की भी पुरज़ोर मज़म्मत की।

1935 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट’ पारित किया था, “इस एक्ट के तहत 1937 में भारत में प्रांत स्तर पर चुनाव हुए. कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अपने अलग उम्मीदवार मैदान में उतारे, स्वतंत्रता प्राप्ति के मामले में शुरू से ही मौलाना सज्जाद साहेब कांग्रेस के साथ जुड़े हुए थे लेकिन जब कांग्रेस सभों को साथ लेकर चलने में विफ़ल हुई तो 1937 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस की मदद से मौलाना मुहम्मद सज्जाद साहेब ने ‘ मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी’ की स्थापना की और इन दोनो पार्टी के ख़िलाफ़ अपने उम्मीदवार उतारे। मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी का ऑफ़िस फ़्रेज़र रोड में था, जहाँ से अक्सर वो पैदल फुलवारी के लिए निकल जाते थे, मौलाना मुहम्मद सज्जाद साहेब को अवाम के पैसे उड़ाने से सख़्त नफ़रत थी।


1937 में राज्य चुनाव में 152 के सदन में 40 सीटें मुस्लिमों के लिए आरक्षित थीं जिनमें 20 सीटों पर ‘मुस्लिम इंडीपेंडेंट पार्टी’ और पांच सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. शुरू में कांग्रेस पार्टी ने मंत्रिमंडल के गठन से इंकार कर दिया तो राज्यपाल ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी “मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी” को सरकार बनाने का न्योता दिया, तो सवाल यह उठा कि लेजिसृलेचर पार्टी का नेता किसे बनाया जाये? मौलाना सज्जाद पार्टी के फ़ाउंडर थे. कई लोग चाहते थे कि वह ख़ुद इस ज़िम्मेदारी को उठायें, पर मौलाना सज्जाद साहेब, जो इमारत शरिया के भी संस्थापक भी थे, ने यह ज़िम्मेदारी ख़ुद उठाने के बजाये बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस के नाम का प्रस्ताव किया।

आज़ादी के दीवाने म्यूज़ियम, लाल क़िला में लगी बैरिस्टर यूनुस की तस्वीर

नेता चयन की मीटिंग पहले इमारत शरिया के फुलवारी शरीफ़ के दफ़्तर में हुई, फिर उसी दिन अगली मीटिंग बांकीपुर में हाजी शर्रफ़ुद्दीन हसन की कोठी पर बैसिस्टर युनूस को नेता चुन लिया गया। उसके बाद वह बिहार के पहले वजीर ए आजम – प्रधानमंत्री (प्रीमियर) बने।

बैरिस्टर साहब की क़ाबीलियत पर मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब को पूरा भरोसा था बैरिस्टर साहब ने मौलाना सज्जाद साहेब के भरोसे और उनकी उम्मीदों से भी अच्छा काम किया, हिन्दु मुस्लिम एकता से लबरेज़ इस सरकार में बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस के साथ और तीन लोग भी सरकार का हिस्सा बने थे जिसमें दो ग़ैर-मुस्लिम थे, वहाब खाँ (राजस्व मंत्री), अजित प्रसाद सिंह देव ( स्थानीय स्वशासन मंत्री) और गुरु सहाय लाल (नदी विकास मंत्री) बने, पर सरकार की राह मे सबसे बड़े रोड़ा बने जय प्रकाश नारायण, कुछ ही महीने बाद यूनुस साहब ने इस्तीफ़ दे दिया उसके बाद कांग्रेस ने बिहार मे सरकार का गठन किया।

मौलाना सज्जाद साहेब और बैरिस्टर मोहम्मद यूनुस ये चाहते थे के ‘कांग्रेस’ और “मुस्लिम इंडिपेंडेंट पार्टी” मिल कर सरकार चलाये ताके पुरे हिन्दुस्तान में एक अच्छा पैग़ाम जाए पर कांग्रेस अपनी हठधर्मी से कहां बाज़ आने वाली थी ? बहरहाल साथ में सरकार नही बन पाई और इसका बहुत ही बड़ा नुक़सान हुआ, जिस बिहार में मुस्लिम लीग एक भी सीट नही ला पाती है वहीं 1938 में गांधी मैदान पटना में हुए मुस्लिम लीग के इजलास में मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस की इस हठधर्मी को बेहतरीन तरीके़ से भुना लेते हैं और अगले चुनाव में पुरी की पुरी सीट मुस्लिम लीग के खाते में चली जाती है, वहीं 1940 के दौर में सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा साथ मिल कर सरकार चला रही थी।

20 फ़रवरी 1940 को ऩकीब (इमारत शरिया से निकलने वाला रिसाला ) में अमीर ए शरीयत मौलाना सज्जाद साहेब लिखते हैं “अक़ीदे का पब्लिक प्लेस मे ऐलान और इज़हार से इंसानी तहज़ीब को नुकसान पहुंचती है, तमाम फ़िरक़े और क़ौम के मज़हबी जलसे और जुलूस पब्लिक मुक़ामात पर बंद कर दिये जाने चाहिए, धार्मिक रिती रिवाज और त्योहार का पालन लोग अपने अपने घर मे करें।

अमीर ए शरीयत की हैसियत से मौलाना सज्जाद साहेब ने गौ हत्या की भी मुख़ालफ़त की थी और उनका ये मानना था कि गौ हत्या के नाम पर जितने दंगे हो रहे हैं इन सब मे जहाँ मुसलमानों का बड़ा नुकसान है उसके साथ साथ ये हिंदू मुस्लिम इत्तेहाद को भी कमज़ोर कर रहा है।

बहैसियत अमीर ए शरीयत मौलान सज्जाद साहेब ने खुल कर मुस्लिम लीग और 1940 के लाहौर अधिवेशन की मुख़ालफ़त की और जिन्नाह को कई खत लिखें उनके एक खत का उनवान था ‘इस्लामी हुक़ुक़ और मुस्लिम लीग’ जिसमे उन्होंने मुस्लिम लीग से कुछ सवाल पूछे थे … जिनमे लीग क्यों Complete Independace की माँग नही करती ? मुस्लिम पर्सनल लॉ पर जिन्नाहलक्यों ख़ामोश हो जाते हैं ? मौलाना सज्जाद साहेब लिखते हैं लीग के पास बिहार और उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के लिए कुछ नही है .. इसलिए कोई तुक नही बनता की पाकिस्तान की माँग का समर्थन किया जाए ….

14 अप्रैल 1940 को “नक़ीब” मे अपने आर्टिकल जिसका उनवान था ‘मुस्लिम इंडिया और हिंदू इंडिया के स्कीम पर एक अहम तबसरा’ में लाहौर अधिवेशन की मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब मुख़ालफ़त करते हैं और मुल्क के बंटवारे की सोच को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं, मौलाना जहाँ एक तरफ़ मुस्लिम लीग के लिए रोड़ा बन कर खड़े थे तो दूसरी तरफ़ हिन्दु महासभा की भी बखिया उधेड़ रहे थे।

अमीर ए शरीयत मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब के इंतक़ाल के बाद भी इमारत शरिया उसी परम्परा के तहत काम कर रहा पर तब तक मुल्क के हालात बदल चुके थे, अंग्रेज़ अपनी फुट डालो राज करो की निती पर कामयाब हो रहे थे, हर जगह दंगे फ़साद हो रहे थे तब इमारत शरिया ने रिलीफ़ का काम किया, गांव गांव पहुंचे, लोगों की मदद की, उस नाज़ुक दौर में जितना कर सकते थे उतना करने की कोशिश की, दस्तावेज़ के रुप में उस वक़्त के हालात को यहां के ज़िम्मेदार लोगों ज़रुर क़लमबंद किया जो आज के दौर में एक अहम दस्तावेज़ है, जिसकी मदद से कई लोग रिसर्च कर रहे हैं।

मौलाना अबुल मुहासिन मुहम्मद सज्जाद साहेब की क़ब्र

इस इदारे के पास दारुल इफ़्ता पहले से था और इसकी सियासी पार्टी बाद में वजुद आई, पर आज इस इदारे का दारुल इफ़्ता तो बचा हुआ है पर इसकी सियासी पार्टी का वजुद कबका मिट चुका है, आज भी इमारत अपनी उसी परम्परा के तहत काम करने लगे लेकिन कालांतर में उसके रहरनुमा राजनीतिक महत्वकांक्षा के भी शिकार होते रहते हैं जिससे उन्हे बचना चाहीये, और अपने बुज़ुर्गों की क़ुर्बानीयों को याद रखते हुए उसी राह पर चलने की कोशिश करनी चाहीए।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.