ख़लील अहमद अंसारी, भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी

 

19 अप्रैल 1922 को ख़लील अहमद अंसारी ने जब इस दुनिया में आँख खोला तब ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलन का असर पूरे मुल्क में था। शाहाबाद के जिस इलाक़े में उनका जन्म हुआ था, वो आंदोलन का गढ़ था। वो 1857 के क्रांतिकारी गतिविधि से लेकर ख़िलाफ़त आंदोलन की कहानी सुन कर ही बड़े हुवे। इसी वजह कर मुल्क को आज़ाद कराने का जज़्बा बचपन में ही आ गया।

आपका जन्म बक्सर ज़िला में केसठ प्रखंड के रामपुर गाँव में हुआ था, आपके वालिद का नाम जुम्मा अंसारी था, शुरुआती तालीम घर पर ही हासिल की; फिर आगे की पढ़ाई करने के लिए हाई स्कूल मुरार में दाख़िला लिया; वहीं से मैट्रिक का इम्तहान पास किया, स्कूल में कई टीचर ऐसे थे; जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों से गहरी सहानुभूति रखते थे। इसी वजह कर छात्रों का भी एक गुट स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गया। ख़लील अहमद उस गुट के प्रमुख लोगों में से थे। अकसर छोटी मोटी गतिविधि में सक्रिय रहते; विदेशी वस्त्र को जला कर खादी का कपड़ा पहनना शुरू कर दिया था।

बात अगस्त 1942 की है, यूसुफ़ जाफ़र मेहर अली के साथ मिल कर महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत मुंबई में की। गांधीजी ने नारा दिया ‘करेंगे या मरेंगे’ और देखते ही देखते ये चिंगारी पुरे भारत में फैल गई। अगले दिन गांधी सहीत कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्य गिरफ़्तार कर लिए गए।

हालांकि गांधीजी की ओर से ये आंदोलन अंहिसक था लेकिन अंग्रेज़ों को भगाने के जोश में भारतीय कई जगह उग्र भी हो गए थे, जिसके कारण देश के कई स्थानों पर हिंसा हुई, सरकारी इमारतों को जला दिया गया, बिजली काट दी गई, कई जगहों पर हड़ताल हुई। इसकी एक वजह ये भी है के ज़िला, तहसील, व गांव स्तर में नेतृत्व के लिये कोई नेता नहीं बचा था; या तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था या वो गिरफ़्तारी से बचने के लिए भुमिगत हो गए थे। अंग्रेज़ों द्वारा सामाचार पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जिससे अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया, सभाओं और जुलूसों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस वजह आंदोलन अनियंत्रित हो गया। जोशीले छात्रों और युवाओं ने मोर्चा सम्भाला; और देखते ही देखते इसकी चिंगारी बिहार पहुँच गई।


आरा से कोइलवर तक रेलवे लाइन जगह जगह उखाड़ दी गई। कोइलवर स्टेशन पर रेलवे लाइन उखाड़ते हुए कपिलदेव राम अंग्रेज़ी गोली का शिकार बने, और शहीद हो गए। बक्सर थाने के वरुणा और चौसा आदि स्टेशन के कागज़ात जला दिये गये। ख़लील अहमद कहाँ पीछे रहने वाले थे; अपने साथियों के साथ मिल कर मुरार के डाकघर को आग के हवाले कर दिया, नहर विभाग के बंगले को फूंक डाला। डुमराँव रेलवे लाईन को उखाड़ कर ट्रेन का रास्ता रोक दिया। अंग्रेज़ी हुकूमत बौखला गई, उन्होंने गोली चलाने का हुक्म दे दिया, तब ख़लील अहमद अपने साथियों के साथ भूमिगत हो गए, फिर भेष बदल कर गाँव गाँव घूम कर लोगों को अंग्रेज़ों के विरुद्ध उकसाने लगे। कई बार सीआईडी को चकमा दिया, लेकिन आख़िरकार आप गिरफ़्तार कर लिए गए। आपको बक्सर जेल में क़ैद कर रखा गया, ये वो समय था जब बिहार में हज़ारों लोग अंग्रेज़ों द्वारा क़त्ल कर दिए गए थे। सिर्फ़ शाहाबाद में अंग्रेज़ों ने 2255 लोगों को गिरफ़्तार किया था, और दर्जनो शहीद हुवे थे। ज़माने तक ख़लील अहमद अंग्रेज़ों की क़ैद में रहे।

पटना होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज से सनद हासिल कर ख़लील अहमद अंसारी डॉक्टर बने; और जीवन भर प्रैक्टिस की; अपने आख़री समय में भी अपना इलाज ख़ुद से किया। आप स्वदेशी वस्तु के उपयोग पर ज़ोर देते थे; आपने हमेशा स्वदेशी कपड़ा ही पहना। 9 मई को 2021 को आपका इंतक़ाल 99 साल की उम्र में दिल्ली में हुआ। भारत की आज़ादी में आपके योगदान को देखते हुवे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा आपको भारत छोड़ो आंदोलन के 76वें वर्षगाँठ के मौक़े पर राष्ट्रपति भवन कई स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के साथ सम्मानित किया गया। इससे पहले 2017 में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के मौक़े पर भी बिहार सरकार ने सम्मानित किया था।


आप अपने इलाक़े में लगातार समाज सेवा में लगे रहे, आपने अपने इलाक़े में ग़रीबों के लिए कुंआ खुदवाया, और अपने गाँव रामपुर में स्कूल स्थापित किया। आप अपने पीछे दो बेटा और दो बेटी छोड़ कर गए। आप जय प्रकाश नारायण के साथियों में से थे; जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया, तब आपने इसका खुल कर विरोध किया। आपके बड़े भाई मोहम्मद हवालदार अंसारी थे; जो अब्दुल क़ैय्यूम अंसारी के क़रीबी लोगों में से थे; जो ख़ुद भी ज़माने तक भारत की आज़ादी के लिए जेल में रहे।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.