दिसम्बर 1921 में मौलाना आज़ाद को गिरफ़्तार करके अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया। अदालत की कारवाई 24 जनवरी 1922 को शुरु हुई। मौलाना आज़ाद ने अपना तहरीरी बयान जमा कराया और आज ये बयान अदालत की तारीख़ मे अज़ीम दस्तावेज़ की हैसियत रखता है, 25-30 पेज का ये बयान मौलाना आज़ाद की अज़मत को समझने के लिये काफ़ी है। इस बयान को “क़ौल ए फ़ैसल” नाम से कई पब्लिशर्स ने छापा है, उस बयान का एक हिस्सा :-
“अदालत की नाइंसाफ़ी की लिस्ट बड़ी लम्बी है, तारीख़ इसके मातम से आज तक फ़ारिग़ न हो सकी, हम इस में हज़रत ईसा मसीह जैसे पाक इंसान को देखते हैं जो अपने दौर के अदालत के सामने चोरों के साथ खड़े थे, हमें इसमें सुकरात भी नज़र आता है जिसको सिर्फ़ इसलिये ज़हर का प्याला पीना पड़ा था कि अपने समाज का सबसे सच्चा इंसान था, हम को इसमें गैलेलियो का नाम मिलता है, जो अपनी मालुमात को झुठला न सका और वक़्त की अदालत के सामने ये उसका जुर्म था।
ये मुजरिमों का कटघरा अजीब मगर अज़ीम है, जहाँ सबसे अच्छे और सबसे बुरे दोनो ही तरह के आदमी खड़े किये जाते हैं, इस जगह की तारीख़ पर ग़ौर करता हुँ तो इस जगह खड़ा होना मेरे लिए इज़्ज़त की बात है और मेरी रुह ख़ुदा का शुक्र अदा करती है।
मैं मुजरिमों के कटघरे मे खड़ा होकर ये महसूस करता हुँ के ये बादशाहों के लिये क़ाबिल ए रशक की जगह है, उन्हे अपनी ख़्वाबगाहों मे वो सुकून नहीं होगा जो मेरे दिल के एक एक रेशा में नसीब हो रहा है, और अगर गाफ़िल लोग मेरे सुकून और राहत को देख ले तो इस जगह पर आने के लिये दुआएँ करते”।
इस केस मे मौलाना आज़ाद को एक साल क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी, जिस पर मौलाना आज़ाद ने मुस्कुराते हुए कहा था “ये उससे बहुत कम है जिसकी मुझे उम्मीद थी”