कारमाइकेल लाइब्रेरी: काशी की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी का अस्तित्व ख़तरे में

Shubhneet Kaushik

बनारस में बांसफाटक स्थित कारमाइकल लाइब्रेरी उत्तर भारत की सबसे पुरानी लाइब्रेरियों में से एक है। इसकी स्थापना सन् 1872 ई0 में संकठा प्रसाद खत्री ने बनारस के तत्कालीन कमिश्नर सी.पी. कारमाइकल के नाम पर किया था। सी.पी. कारमाइकल तब के पश्चिमोत्तर प्रांत (नॉर्थ-वेस्टर्न प्रोविंसेज), जो आगे चलकर यूनाइटेड प्रोविंसेज यानी यूपी बना, के बड़े पुलिस अधिकारी थे, और वे पश्चिमोत्तर प्रांत में इंस्पेक्टर जनरल (आईजी) भी रहे। कारमाइकल की गहरी रुचि कला, साहित्य और भारतीय संस्कृति में थी।

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सी.पी.कारमाइकल ने इस लाइब्रेरी के संवर्धन और विकास में दिलचस्पी ली। उनके प्रयासों के चलते बनारस की म्युनिसिपलिटी ने 1875-6 में इस लाइब्रेरी को चौक क्षेत्र में भवन-निर्माण के लिए 1000 रुपये की रकम दी। 1909 के बनारस के गैजेटियर के अनुसार बीसवीं सदी के पहले दशक में इस लाइब्रेरी की वार्षिक आय 1900 रुपये थी। एच.आर. नेविल द्वारा संपादित बनारस का गैजेटियर यह भी बताता है कि कारमाइकल लाइब्रेरी के तत्वाधान में ही बनारस के गणमान्य नागरिकों की सभा ‘काशी सुजान सभा’ की बैठकें होती थीं। राजा शिव प्रसाद सितार-ए-हिंद इस लाइब्रेरी के पहले अध्यक्ष रहे।

राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान यह लाइब्रेरी भी राष्ट्रीय आंदोलन की गतिविधियों और उसमें शामिल लोगों की गवाह बनी। साथ ही, क्रांतिकारियों के मिलने और उनकी बैठकों की पृष्ठभूमि भी कई बार इसी लाइब्रेरी में बनीं। काकोरी षड्यंत्र के अभियुक्त रहे मुकुंदी लाल फ़रारी के दिनों में बनारस की इसी लाइब्रेरी से गिरफ्तार किए गए थे। सुधीर विद्यार्थी ने अपनी किताब ‘अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद’ में इस बात का ज़िक्र किया है।