ख़्वाजा सैयद रियाज़–उद–दीन अतश: पटना से शिकागो तक बज़म–ए–सुख़न को पहुँचाने वाले शायर

रौशनी जिसकी किसी और के काम आ जाए!
एक दिया ऐसा भी रस्ते में जला कर रखना!

(अतश अज़ीमाबादी)

ख़्वाजा सैयद रियाज़ उद दीन अतश 4 मार्च 1925 को अज़ीमाबाद (पटना) में पैदा हुए। अतश के दादा मशहूर शायर ख़्वाजा सैयद मुहम्मद फख़रुद्दीन हुसैन सुख़न देहलवी थे जो बिहार में जज के ओहदे पर तैनात थे! जब 1886 में मुंशी नवल किशोर प्रेस (लखनऊ) द्वारा सुख़न का दीवान छपा तो इसके लिए विभिन्न प्रसिद्ध कवियों ने क़ता–ए–तारीख़ लिखा और इन तवारीख़ में ज़िला मुंगेर के रईस–ए–आज़म नवाब सैयद मुहम्मद अली ख़ान अंजुम शेखपूर्वी (जो सैयद मुहम्मद रज़ा ख़ान फ़रहाद अज़ीमाबादी उर्फ़ चमारी मियां के हक़ीक़ी मामू थे) द्वारा लिखा गया सात पंक्तियों का एक फ़ारसी क़ता भी शामिल था! इस दीवान का दीबाचा मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा था और सुख़न को अपना नवासा बताया था। ये भी एक रोचक तथ्य है कि सुख़न देहलवी और अंजुम शेखपूर्वी दोनों मिर्ज़ा ग़ालिब के प्रिय शिष्य थे!

संभाला होश तो मरने लगे हसीनों पर!
हमें तो मौत ही आई शबाब के बदले!

(सुख़न देहलवी)

अतश ने शायरी की शुरूआत 1938 में नज़्म और ग़ज़ल से की! आपने दाग़ देहलवी के प्रसिद्ध शागिर्द मुबारक अज़ीमाबादी की जीवनी लिखी!

अतश की शायरी के विभिन्न संग्रह भी छपे जैसे विरद्ए–न फ़स, जश्न–ए– जुनूं, और सौग़ात–ए–जुनूं! उनके द्वारा लिखी गई किताब उर्दू का नसब नामा प्रसिद्ध हुई!

अतश ने मैट्रिक के बाद फ़ौज में मुलाज़मत की! फिर एंट्रेंस और बी. ए. की डिग्री हासिल की! कुछ दिनों तक कलकत्ता में एक अंग्रेज़ी कंपनी में मुलाज़मत की! फिर व्यवसाय में भी हाथ आज़माया लेकिन उसमें नुक़सान उठाया! कलकत्ता से वापस पटना चले गए! फिर पटना से हिजरत कर के अपने परिवार के साथ ढाका में जा बसे!

अतश 1952 से 1971 तक ढाका में रहे जहां उन्होंने 1954 में अपने दादा की यादगार बज़म–ए–सुख़न की बुनियाद रखी! इस से पहले 1901 में लखनऊ और पटना में बज़म–ए–सुख़न क़ायम हुई थी!

ढाका में व्यवसाय और मुलाज़मत का सिलसिला जारी रहा जहां आप वापडा में सीनियर ऑफ़िसर और मैनेजर के ओहदे पर तैनात रहे!

जब अतश ढाका से लूटे हुए कराची पहुंचे तो उन्होंने वहां भी 1971 में बज़म–ए–सुख़न की नींव रखी! बज़म–ए–सुख़न के द्वारा सालाना मुशायरे करवाए जाते थे!

अतश को कराची में काफ़ी परेशानियां उठानी पड़ी और मुलाज़मत का सिलसिला ठीक नहीं रहा! कुछ दिनों तक गुड्डो थर्मल पावर प्रोजेक्ट में मुलाज़मत की! आख़िर में परेशान हो कर दम्माम (सऊदी अरब) चले गए और वहीं एक कम्पनी में जेनरल मैनेजर के ओहदे पर रहे! जब मई 1983 में उनकी तबियत ख़राब हुई तो वो वापस कराची जा बसे!

ढाका, कराची, और दम्माम के निवास के बाद अतश ने अपने जीवन के आख़री दस साल शिकागो के नवाही इलाक़े में गुज़ारे! आपने शिकागो (अमेरिका) में भी बज़म–ए–सुख़न की नींव रखी! अमेरिका में अपने निवास के दौरान वो न्यू यॉर्क के ऊर्दू टाईम्स और लॉस एंजेल्स के पकिस्तान लिंक के लिए लगातार लिखते रहे! परेशानियों से भरी एक ज़िंदगी गुज़ारने के बाद जनवरी 2001 में अतश का निधन हो गया और उन्हें शिकागो के रोज़हिल क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया!

अतश की क़ब्र

अतश ख़ुद अपनी ज़िंदगी के बारे में कुछ यूं कहते हैं!

नविष्त–ए–अदल भी, उनवान–ए–इंकलाब भी है!
मेरा वजूद साहिफ़ा भी है किताब भी है!