नेताजी के कॉमरेड : भगत राम तलवार की गाथा

Shubhneet Kaushik

जनवरी 1941 में सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश सरकार की आँखों में धूल झोंककर नज़रबंदी से फ़रार हुए। अंग्रेज़ी राज की नज़रों से बचाकर धनबाद तक उन्हें पहुँचाने का ज़िम्मा उनके भतीजे शिशिर बोस ने उठाया। धनबाद से गोमो फिर दिल्ली होते हुए नेताजी पेशावर पहुँचे। पेशावर से उन्हें अफगानिस्तान के रास्ते सोवियत रूस की सीमा में दाखिल कराने की ज़िम्मेदारी थी कॉमरेड भगत राम तलवार पर। भगत राम तलवार के दुस्साहसिक कारनामों की ख़बर पहले ही नेताजी को मिल चुकी थी।

तलवार के शख़्सियत के बारे में उन्होंने अपने मन में एक छवि गढ़ी थी – लम्बी-चौड़ी क़द-काठी और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले पठान की। मगर जब 21 जनवरी 1941 को पहली दफ़ा नेताजी भगत राम तलवार से मिले, तो उन्हें अपनी कल्पना से बिलकुल अलग व्यक्तित्व मिला। उन्हें मिले दुबले-पतले और स्वभाव से शर्मीले भगत राम तलवार। मगर तलवार के साथ हुई दुस्साहस और नियति को चुनौती देनी वाली उस यात्रा में नेताजी ने जाना कि वह दुबला-पतला शख़्स अंग्रेज़ी राज को हिलाकर रखने की ताक़त रखता है।

कीर्ति पार्टी से जुड़े भगत राम तलवार एक ऐसे क्रांतिकारी परिवार से आते थे, जिसके खून में शहादत थी। उनके बड़े भाई हरि किशन दिसम्बर 1930 में पंजाब के गवर्नर जेफ़्री द मांटमोरेंसी पर जानलेवा हमला करने के जुर्म में फाँसी की सजा पा चुके थे। मगर उनके पिता लाला गुरदासमल को अपने बेटे की शहादत का कोई दुःख नहीं था। एक बेटे की शहादत के बाद उन्होंने अपने दूसरे बेटों को भी क्रांति की राह पर चलने की प्रेरणा दी। उल्लेखनीय है कि लाला गुरदासमल ने अपने बेटे हरि किशन से कहा था ‘हरेक इंसान को एक न एक दिन मरना ही है। मगर जो देश के लिए मरता है, वह अमर हो जाता है। मुझे पता है कि तुम अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित नहीं होगे, डिगोगे नहीं। और ना ही तुम तलवारों के नाम पर कोई आँच आने दोगे।’

अपने इस परिवार की क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाया भगत राम तलवार ने। लाहौर के महान क्रांतिकारी राम किशन और धन्वन्तरि उनके गुरु थे। नज़रबंदी से फ़रार होकर सोवियत रूस जाने की अपनी योजना नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सरदार निरंजन सिंह तालिब को पहले-पहल बताई थी, जो उस वक़्त कलकत्ता में ‘देश दर्पण’ के सम्पादक थे। तालिब ने इस संदर्भ में भूमिगत कम्युनिस्ट नेता अच्छर सिंह चीना से सम्पर्क किया, जो उस वक़्त कलकत्ता में ही थे। चीना ग़दर पार्टी से जुड़े रहे थे और उस वक़्त कीर्ति किसान पार्टी के नेता थे। अच्छर सिंह चीना ने नेता जी से सम्पर्क किया और उनसे बातचीत के बाद उनकी मदद का वादा किया।

नेताजी को सोवियत यूनियन तक सुरक्षित पहुँचाने की ज़िम्मेदारी कीर्ति किसान पार्टी ने अपने सबसे योग्य कार्यकर्ता भगत राम तलवार सौंपी। जो ऐसे मिशन पहले भी सफलतापूर्वक अंजाम दे चुके थे। भगत राम तलवार ने यात्रा का खाका तैयार किया, जो इस प्रकार था : पेशावर, जमरुद होते हुए खजुरी मैदान स्थित ब्रिटिश सेना की छावनी के निकट से अफ़रीदी कबीले के क्षेत्र में प्रवेश। काबुल-पेशावर रोड पर चलते हुए भाटी कोट, जलालाबाद से अड्डा शरीफ़ जाकर जलालाबाद वापस लौटना और वहाँ से काबुल फिर आगे की यात्रा। नेताजी ने अड्डा शरीफ़ की पवित्र यात्रा पर जा रहे एक मुस्लिम का बाना धरा और भगत राम तलवार उनके सहयोगी बने।

इस दुस्साहसिक यात्रा का विवरण भगत राम तलवार ने अपनी किताब ‘द तलवार्स ऑफ़ पठान लैंड एंड सुभाष चंद्राज ग्रेट एस्केप’ में दिया है, जो पीपल्स पब्लिशिंग हाउस ने छापी है। नेताजी और उनके कॉमरेड भगत राम तलवार को सलाम!