मोपिला विद्रोहियों के लीडर सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल और मालबार के कलेक्टर हेनरी वेलनटाईन कैनोली…..

 

Md Umar Ashraf

11 सितम्बर 1855 को केरला के कालीकट के पश्चिमी चोटी पर स्थित कलेक्टर के बंगले में घुस कर मोपिला विद्रोहियों ने उस समय अंग्रेज़ों द्वारा मालबार के न्युक्त किए गए मेजिस्ट्रेट और कलेक्टर हेनरी वेलनटाईन कैनोली का क़त्ल इंतक़ाम लेने के लिए कर दिया था।

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इस सुनियोजित क़त्ल मे शामिल तमाम मोपिला विद्रोहियों को गोलियो से छलनी करने का हुक्म जारी किया गया और फिर 17 सितम्बर 1855 को कालीकट के पास ही इस क़त्ल मे शामिल तमाम लोगों को गोलियो से भुना दिया गया।

जेल से भागे मोपिला विद्रोहियों ने हेनरी वेलनटाईन कैनोली को इसलिए मारा था; क्योंकि उसने ही मोपिलाओं के धार्मिक गुरु और लीडर सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल को देश से निकाल बाहर करने का सुझाव दिया था।

5 दिसम्बर 1806 को लंदन मे पैदा हुआ हेनरी वेलनटाईन कैनोली मशहूर ब्रिटिश कैप्टन आर्थर कैनोली का भाई था जो रुस इंगलैंड की रश्शाकुशी में बोख़ारा में 34 साल की उम्र में मारा गया था।

पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद कंपनी सरकार की मुलाज़मत करने के लिए हेनरी वेलनटाईन कैनोली मद्रास आ गया। 19 मई 1824 को मद्रास सिविल सर्विस में लेखक के रूप में कार्यभाल संभाला! फिर बल्लारी के कलेक्टर के रूप में अपनी सेवायें दी! 1948 में एक कलेक्टर की हैसियत से उसने मालाबार इलाक़े में बहुत से सागवान के पेड़ लगवाये थे; जिससे जहाज़ बनाने के लिए लकड़ी की पुर्ती की जा सके। और सिंचाई के लिए एक नहर भी बनवाया जिसे आज हम कैनोली नहर के नाम से जानते हैं।

अब सवाल ये उठता है आख़िर सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल चीज़ क्या थे ? जिन्हे मुल्क बदर करने के जुर्म में उनके चाहने वालों ने अंग्रेज़ अफ़सर हेनरी वेलनटाईन कैनोली तक को मार दिया।

सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल 1820 में पैदा हुए यमनी मुल के भारतीय नागरिक थे। वो एक धार्मिक गुरु थे। उनके वालिद का नाम सैयद अलवी अल हुसैनी थंगाल था और मां का फ़ातिमा बीबी। शुरुआती तालीम वालिद से ही हासिल की और फिर उनके साथियों से हदीस, फ़िकह और ज़ुबान की तालीम हासिल की। चुंके उनके वालिद ख़ुद मोपिला लोगों के धार्मिक और सियासी लीडर थे इस लिए सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल को भी ये विरासत में मिल गया।

1845 मे अपने वालिद के मौत के बाद फ़जल मक्का गए और पढ़ाई मुकम्मल कर 1848 मे वापस मालबार लौट आए।

अपने वालिद के मौत से पहले 1840 में जब फ़ज़ल 20 साल के थे तो उन्होने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रहे जद्दोजेहद मे खुल कर हिस्सा लिया था।

उस समय ममबुर्मा में कोई भी जामा मस्जिद नही थी, तब फ़ज़ल ने एक मस्जिद तामीर करवाई और जुमा के ख़ुत्बे में खुल कर मालबार के मौजुदा हालात पर अपनी बात रखते, ख़ुत्बे में इस्लामी तालीम के इलावा खुल कर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद करने के लिए लोगो को प्रेरित करते। इस चीज़ की भनक अंग्रेज़ों को लग गई और उन्होने इस बात की जांच भी की।

1848 मे मक्का से पढ़ाई मुकम्मल कर वापस मालबार लौट फ़ज़ल ने मोपिला लोगों की क़ियादत की और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद मे जुट गए। उन्होने अंग्रेज़ों के साथ साथ अंग्रेज़ प्रस्त ज़मीनदारो का भी विरोध किया।

1849 में मनजेरी में बग़ावत शुरु हुई वैसे मनजेरी में 1844 मे भी बग़वत हो चुका था, पर मक्का से लौटे फ़ज़ल की क़यादत में होने वाली ये पहली बग़ावत थी। जो यहां के चार इलाक़े पंथाल्लूर, पंदिकोदे, मनजेरी और अंगदीपुरम को अपने ज़द मे ले रखा था। हसन मोहिउद्दीन की सरप्रस्ती में 65 मोपिला बाग़ी शुरु में तो अंग्रेज़ों पर भारी पड़े पर बाद में अंग्रेज़ों ने सभी बाग़ी को क़त्ल कर दिया।

22 अगस्त 1851 को एक बार फिर कुलाथुर में बग़ावत शुरु हो जाती है और मोपिला बाग़ी के हांथो कई ज़मीनदार मार दिए जाते हैं। 27 अगस्त को अंग्रेज़ों की फ़ौज इस बग़ावत को कुचल देती है जिसका ज़िक्र विलीयम लोगन ने Malabar Manual में भी किया है।

2 जनवरी 1852 को फ़ज़ल द्वारा बग़ावत का आख़री बिगुल मट्टानूर में फुंका गया; जिसके बाद अंग्रेज़ों ने उन्हे मुल्क बदर कर दिया गया। हुआ कुछ युं के केशावू अब्राहन नाम के अंग्रेज़ प्रस्त ज़मींनदार ने अपने अंदर काम करने वाले किसानो पर लगान बढ़ा दिया, जिसके नतीजे में बग़ावत हुआ और ज़मींनदार मारा गया। ये उत्तरी मालबार में होने वाला पहला बग़ावत था। इसके बाद अंग्रेज़ों ने कड़ी कारवाई करते हुए कई बाग़ीयों को क़त्ल कर दिया और फ़ज़ल को गिरफ़्तार कर लिया और उन पर कई तरह के इलज़ाम लगाए गए।

19 मार्च 1852 को सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल अपने 57 रिश्तेदार के साथ मुल्क बदर कर अरब भेज दिए गए।

सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल को मुल्क बदर करने मे जिस शख़्स का सबसे बड़ा हाथ था, वो ब्रिटिश कलेक्टर हेनरी वेलनटाईन कैनोली था।

अपने रहबर और साथियों की गिरफ़्तारी का बदला लेने के लिए ही मोपिला विद्रोहियों ने ब्रिटिश कलेक्टर हेनरी वेलनटाईन कैनोली को सुनियोजित तरीक़े से क़त्ल कर दिया था।

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यहां एक बात क़ाबिल ए ग़ौर है किसान-संघर्षों एवं आन्दोलनों में सबसे पुराना मालाबार के मोपला किसानों का विद्रोह है, जो 1836 में शुरू हुआ था। कहने वाले कहते हैं कि ये मोपले कट्टर मुसलमान होने के नाते अपना आन्दोलन धार्मिक कारणों से ही करते रहे हैं; पर एैसा था नही। क्युं के मगर ऐसा कहने-मानने वाले अधिकारियों एवं जमींदार-मालदारों के लेखों तथा बयानों से ही यह बात सिद्ध हो जाती है कि दरअसल बात यह न होकर आर्थिक एवं सामाजिक उत्पीड़न ही इस विद्रोह के असली कारण रहे हैं और धार्मिक रंग अगर उन पर चढ़ा है तो कार्य-कारणवश ही, प्रसंगवश ही। यहां पर सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल का आंदोलन भी किसानो का ही आंदोलन ही था। ठीक वैसा ही जैसा बंगाल में फ़ेराज़ी आंदोलन था। और इस आंदोलन को धार्मिक लोग लीड कर रहे थे; इस लिए इतिहासकारों ने बेइमानी करते हुए इस तरह के हर आंदोलन को धार्मिक बना कर छोड़ दिया है!

बहरहाल किसी सुनियोजित तऱीके से किसी अंग्रेज़ अधिकारी की यह संभवतः दुसरी हत्या थी। इससे पहले 1835 मे मेवात के नवाब शमसुद्दीन और करीम ख़ान ने एक बहन की आबरु की हिफ़ाज़त के लिए दिल्ली में अंग्रेज़ों का रेजिडेंट विलियम फ्रेज़र का क़त्ल कर दिया था जिसके लिए 3 अक्टूबर 1835 में करीम ख़ान और 7 अक्टूबर 1835 को नवाब शमशुद्दीन ख़ान को दिल्ली गेट पर फाँसी पर लटकाया गया।

सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल कई बार वापस मालबार (हिन्दुस्तान) आने की कोशिश की पर नाकाम रहे, पहली कोशिश 1855 में उस्मानी सुल्तान अब्दुल मजीद I की मदद से की पर नाकाम रहे और 1901 तक करते रहे, यहां तक के उनकी मौत भी इस्तांबुल में हो गई। जिसके बाद उस्मानी सुल्तान अब्दुल हमीद II के हुक्म पर सैयद फ़ज़ल बोकोई थंगाल को वहीं दफ़न कर दिया गया।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.