लेखक : Md Umar Ashraf
दुसरी जंग ए अज़ीम (दूसरे विश्व युद्ध) के बाद बोस्निया सोशलिस्ट यूगोस्लाविया का हिस्सा बन गया था, पर कोल्ड वार की वजह कर सोशलिस्ट यूगोस्लाविया की हालत ख़राब हो चुकी थी, अलगाव अपने उरुज पर था, इस लिए बोस्निया ने ख़ुद को यूगोस्लाविया से अलग करने के लिए 29 फ़रवरी 1992 को एक रिज़ुलुशन पास किया, बोस्निया में तीन नसल की मिली जुली आबादी थी, जिसमे बोस्निया के मुस्लिम और क्रोएशियाई यूगोस्लाविया से अलग होना चाहते थे जबकि बोस्नियाई सर्ब लोग इसके ख़िलाफ़ थे, फिर भी 3 मार्च 1992 को बोस्निया ने ख़ुद को यूगोस्लाविया से अलग कर लिया, 6 अप्रील 1992 को युरोप युनियन और उसके अगले दिन अमेरीका ने एक ख़ुद मुख़्तार मुल्क के रुप में बोस्निया को मन्यता दे दी, जहां बोस्नियाई मुस्लिम की आबादी 44% वाहीं और्थोडाक्स सर्ब भी 32.5% और कैथोलिक क्रोएशियाई की आबादी भी 17% थी, और यहीं से शुरु हुआ सत्ता और ताक़त का खेल !!
चुंके सोशलिस्ट यूगोस्लाविया में सर्ब और क्रोएशियाई फ़ौज और पुलिस में अधिक थे इसलिए ना ही उन्हे हथियार की ज़रुरत पड़ी और ना हथियार चलाने की ट्रेनिंग, वो पहले से ही ट्रेंड थे. बोस्नियाई मुस्लिम के पास साजिश के तहत हथियार नहीं पहुंचने दिया गया उल्टे उसके समुंद्र के रास्ते यानी साहिल को सील करने के नियत से बिलकुल ही नए मुल्क क्रोएशिया को दे दिया गया, जिससे बोस्नियाई मुस्लिम पुरी दुनिया से पुरी तरह कट गए, और फिर शुरु हुआ मुसलमानों के नरसंहार का नंगा नाच, जिसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप का सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है, इसमे ना सिर्फ़ सर्बिया समर्थित सर्ब-ईसाईयों की फ़ौज मुलव्विस थी बल्के UNO और NATO ने भी इस घिनौनी हरकत में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था, इस पुरे हरकत को लोग बोस्निया गृहयुद्ध कहते हैं, पर हक़ीक़त ये बोस्नियाई मुस्लिम का एक तरफ़ा क़त्लेआम था जिसे पुरे ईसाई दुनिया खुला और मौन दोनो समर्थन हासिल था, मानो कोई सलीबी जंग (क्रुसेड) का एलान हुआ हो?
क़त्लेआम की शुरुआत उन इलाक़ों से की गई जो दो सर्ब बहुल इलाक़ो मे आते थे, मक़सद था मुसलमानो को मार कर या भगा कर एक अलग सर्ब रियासत बनाया जाए, आज उस जगह का नाम स्रपस्का है, जहां आज 82.22% सर्ब रहते हैं, और जिस जगह क़त्लेआम किया गया उसका नाम पौडरिंऩए है, ठीक यही काम पुर्वी बोस्निया में किया गया, हज़ारो की तादाद में बोस्नियाई मुस्लिम क़त्ल किए गए, गांव के गांव जला कर ख़्तम कर दिए गए.. अप्रैल से जून यानी 90 दिन में 296 गांव पुरी तरह बर्बाद कर दिए गए, ब्रेटुनिक में जहां 1156 से अधिक बोस्नियाई मुस्लिम क़त्ल किए गए तो वहीं फ़ोको, ज़वोरनिक, क्रेसका और संगोवो में भी कई हज़ार निहत्थे बोस्नियाई मुस्लिम मार दिए गए.. औऱ वहीं से तक़रीबन 70,000 से अधिक बोस्नियाई मुस्लिम बेघर किए गए… इसमे पुलिस, फ़ौज, पारामलेट्री यहां तक के गांव वाले लोग भी मुलव्विस थे।
https://twitter.com/HeritageTimesIN/status/1016771868181721088?s=19
शुरुआती जंग मे सर्ब फ़ौज ने स्रेब्रेनित्सा नाम के शहर पर क़ब्ज़ा कर बड़ी तादाद में मुस्लिमो का क़त्ल किया और बाक़ी बचे लोगों क वहां से बाहर निकाल दिया पर मई 1992 में नासिर ओरिक की क़यादत बोस्नियाई मुस्लिमों ने स्रेब्रेनित्सा को वापस हासिल कर लिया; लेकिन सर्ब फ़ौज ने इस इलाक़े को घेरे रखा, 16 अप्रील 1993 को स्रेब्रेनित्सा UNO द्वारा “सेफ़-ज़ोन” घोषित कर दिया गया, और वहां से तमाम जंगजु तंज़ीमो को बाहर निकलने कहा गया, बोस्नियाई मुस्लिम सिपाहीयों के हाथ से निकल ये इलाक़ा संयुक्त राष्ट्रा के पास चला गया, 19 अप्रील 1993 को संयुक्त राष्ट्रा के सिपाही यहां दाख़िल हुए, बाद में स्रेब्रेनित्सा को ख़ाली करना बोस्नियाई मुस्लिम सिपाहीयों की बहुत बड़ी ग़लती साबित हुई, उस इलाक़े में मौजूद बोस्नियाई मुस्लिम सिपाहीयों के हथियार जमा करने का सिलसिला लगातर जारी रहा वहीं सर्ब फ़ौज को टैंक सहित तमाम हथियार रखने की छुट दे दी गई, UNO ने बोस्नियाई मुस्लिमों को ये यक़ीन दिलाया के ये “सेफ़-ज़ोन” है और यहां हथियार रखने की कोई ज़रुरत नही, बेचार मुसलमान आ गया बहकावे में, सर्बों ने ना सिर्फ़ बाहरी मदद से ख़ुद को मज़बुत किया बलके बोस्निया के दुसरे इलाक़े में मुसलमानो पर लगातार हमला जारी रखा और तीन साल होते होते दो लाख से ज़्यादा मुसलमानो को मार दिया और कई लाख को बेघर भी कर दिया।
बोस्निया युद्ध के दौरान वर्ष 1992 से 1995 तक लोगों के ऊपर कई तरह के अत्याचार हुए. नस्ली जनसंहार और तशदद्दु के साथ-साथ मासूम-औरतों और लड़कियों के साथ बलात्कार जैसे घिनौना अपराध भी किया इन सर्ब आर्मी ने।
हालात का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि बोस्निया युद्ध में 50,000 से अधिक मुस्लिम-महिलाओं को जान-बूझकर हामला (गर्भधारण) किया गया तो कितनों के साथ बलात्कार हुआ होगा..? इतना मजबूर मुसलमान शायद मंगोलो के बग़दाद हमले और स्पेन के ज़वाल के वक़्त ही रहा होगा…? उसके बाद इसकी मिसाल बस बोस्निया में देखने को मिलती है… और इधर क़ौम की बेटियाँ लुटती रहीं और क़ौम के पेशवा सोते रहे, मर्दों और लड़कों को बर्बर तरीक़े से क़त्लेआम किया गया और तिल-तिल कर मरने पर मजबूर किया गया पर नामर्द मानवअधिकार संगठन सोता रहा, और ये सब वो यूरोप कर रहा था जो खुद को सबसे ज़्यादा सभ्य समाज होने का रट्टा मारता है।
उस वक़्त ईरान ने हथियारों से भरा हुआ अपना पानी-वाला जहाज़ बोस्निया के समुंदर के किनारे लगा दिया था कि मजबूर मुसलमानों को सर्ब-आर्मी से लड़ने के लिये कुछ हथियार दिए जा सकें…..पर शांति-स्थापित का जिम्मा उठाये संयुक्त राष्ट्र के शांति-सैनिकों ने इस जहाज़ को किनारे तक पहुँचने ही नहीं दिया की इससे लड़ाई और बढ़ेगी…. जबके क्रोएशियाई फ़ौज की जानिब से कैथोलिक लड़ाके लड़ रहे जो स्पेनिश, आईरिश, पौलिश, फ़्रेंच, स्वेडिश, हंगारिअन, नार्वेयन, कनाडियन, फिन्निश, अलबानियन, सुवेडिश से लेकर इटालियन मुल तक के थे.. वाहीं सर्बों की जानिब रूसी, युनानी, रोमानी सहित कई मुल्क के और्थोडाक्स इस जंग मे हिस्सा ले रहे थे, कुछ मदद तुर्की ने ज़रुर बोस्नियाई मुस्लिमों की, चुंके वो नाटो का मेम्बर है, इस लिए उसने अंडर कवर हथियार स्पलाई की.. बाक़ी अफ़गानिस्तान जंग से लौटे कुछ अरब मुजाहीदीन ज़रुर मदद को गए।
अब जानते हैं दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में होने वाले सबसे बड़े नरसंहार के बारे में जब हर 30 सेंकड में एक मुसलमान क़त्ल किया जाता है ⤵
जुलाई 1995 के शुरु में ही स्रेब्रेनित्सा इलाक़े की तमाम रसद काट दी गई, ख़ास कर हथियार और खाने की चीज़, हथियार की रसद काटने में संयुक्त राष्ट्रा का बड़ा हाथ था, इलाक़े में मौजुद संयुक्त राष्ट्रा शांतिसेना में अधिकतर सैनिक निदरलैंड के थे, 1995 के शुरु में ही साज़िश के तहत जब संयुक्त राष्ट्रा शांतिसेना का कोई सैनिक छुट्टी पर जाता तो उसके जगह ना कोई सैनिक को लाया जाता ना ही उसे ही वापस उस जगह भेजा जाता, ये सिलसिला लगातार चलता रहा यहां तक के निदरलैंड ते सैनिकों की तादाद 400 रह गई।
https://twitter.com/HeritageTimesIN/status/1016929414272073730?s=19
मार्च 1995 में रावोदान करादज़िच जो स्रपस्का का सदर था, उसने ये हुक्म जारी किया के स्रेब्रेनित्सा की घेराबंदी और सख़्त किया जाए और दुसरे इलाक़े ज़ेपा से उसका राब्ता मुकम्मल तौर पर ख़्तम कर दिया जाए, उस समय कुछ हथियारबंद बोस्नियाई मुस्लिम नासिर ओरिक की क़यादत में वहां मौजुद थे मगर संयुक्त राष्ट्रा शांतिसेना ने उन्हे यहां से जाने को कहा फिर उन्हे वहां से एक हैलिकॉप्टर पर बैठा कर तुज़ला नाम के जगह पर भेज दिया गया। बाक़ी बची बोस्नियाई फ़ौज से हथियार ले कर उन्हे 28 डिविज़न के इख़्तयार में दे दिया गया और इस तरह ये पुरा इलाक़ा सर्बों के रहमो करम पर रह गया, लोग भुख से मरने लगे पर कोई उनका पुछने वाला नही।
9 जुलाई 1995 को स्रपस्का के सदर रावोदान करादज़िच ने जब देखा के स्रेब्रेनित्सा में मौजुद बोस्नियाई मुस्लिम बिलकुल निहत्थे हैं और उनको कोई पुछने वाला नही, तो उसने सर्बों को स्रेब्रेनित्सा पर क़ब्ज़ा करने का हुक्म दे दिया, जिसकी ताक मे ये लोग काफ़ी पहले से लगे हुए थे।
9 जुलाई 1995 को सर्बों ने जनरल रातको म्लादिच की क़यादत में हमला शुरु किया, नाटो ने इसके विरोध में पहाड़ो पर कुछ फ़ाएरिंग की मगर बाद मे ये कह कर रुक गए के इससे स्रेब्रेनित्सा में मौजुद 400 निदरलैंड के सिपाही को नुक़सान हो सकता है। ख़ुद निदरलैंड की फ़ौज ने सर्बों का कोई विरोध नही किया बल्के सर्बों के जीत के बाद उनके साथ शराब पीने की ‘टोस्ट’ की युरोपी रसम अदा किया, बोस्निया का क़साई जनरल रातको म्लादिच ने शहर पर क़ब्ज़ा कर तमाम इमारतों को जला दिया, मुसलमानों के तमाम साईन बोर्ड ये कह कर उखड़वा दिए के आज मौक़ा है के तुर्कों के युरोपी इलाक़ो पर क़ब्ज़ा का बदला लिया जाए।
स्रेब्रेनित्सा शहर पर क़ब्ज़े के बाद वहां मौजुद निहत्थे बोस्नियाई मुस्लिम अब सर्बों के क़ब्ज़ें में थे। 12 जुलाई 1995 को सर्बों ने उन तमाम घरों और इमारत में आग लगा दी जिसमे लोगों ने पनाह ले रखी थी, और सैकड़ों की तादाद में लोग क़त्ल कर दिए गए जो सिर्फ़ ज़ुल्म की एक इबतिदा थी। लाशों ट्रक पर लाद लाद कर दुसरे जगह ले जा कर दफ़नाया जाने लगा जिनके सबुत काफ़ी साल बाद लोगों को मिले। बच्चों के गले खंजर से काटे गए, हज़ारों की तादाद में इसमत लुटी गई।
12 जुलाई 1995 की सुबह लोगों ने स्रेब्रेनित्सा नाम के इस ‘सेफ़ ज़ोन’ से जान बचा कर भागने और बोस्निया के किसी महफ़ुज़ जगह जाने की बहुत कोशिश की। सर्बों ने 14 से 70 साल के किसी भी मर्द को वहां से बाहर नही जाने दिया और औरतों को अलग करते रहे, उन तमाम मर्दों को एक अलग जगह ले जा कर रखा जाता जिसे सर्बों ने ‘व्हाईट हाऊस’ का नाम दे ऱखा था, बाद में पता चला के वहां ले जा कर उन तमाम निहत्थों क़त्ल कर दिया गया, सर्बों ने लोगों के नाक और कान वग़ैरा उनकी ज़िन्दगी मे ही काटे और उनको क़त्ल करने के बाद बुलडोज़र की मदद से बड़ी बड़ी क़बरों मे एक साथ दफ़न कर दिया, अंगिनत बच्चो को बुलडोज़र की मदद ज़िन्दा ही दफ़न कर दिया गया।
पंद्रह हज़ार से अधिक बोस्नियाई मर्दों ने ये फ़ैसला किया के सर्बों के हांथ आने से अच्छा है फ़रार हो कर पहाड़ों के पार तुज़ला नाम के बोस्नियाई इलाक़े पहुंच जाएं, रात के अंधेरे में वो लोग निकले और सुबह जैसे ही पहाड़ी नुमा सड़क पर एक इकट्ठा पहुंचे सर्बों ने मशीनगन और तोपों से उनपर हमला कर दिया, पंद्रह हज़ार बोस्नियाई मर्दों में से सिर्फ़ पांच हज़ार लोग ही तुज़ला पहुंचने में कामयाब हुए। युं तो मरने वाले की तादाद 18000 से अधिक है जिसमे 8000 तो स्रेब्रेनित्सा के क़रीब ही क़त्ल कर दिए गए। स्रेब्रेनित्सा से तुज़ला की दुरी सिर्फ़ 55 किलोमिटर है, पर ये रास्ता पहाड़ों से हो कर जाता है, इसमें कई सड़कें थीं पर सब पर सर्बों का पहरा था। बोस्नियाई मुस्लिमों का शिकार जानवरों की तरह किया गया के कोई भी बच कर नही जाने पाए, जिस जगह पर इंसानो का शिकार खेला गया उसे “कैमेनिका” की पहाड़ीयों के नाम से याद किया जाता है। यहां से बच कर उदरच की पहाड़ीयों पर पहुंचे लोगों का एक बार फिर शिकार खेला गया क्योंके सर्ब सिपाही वहां पहले ही से मौजुद थे। यहां से बचे लोगों को सैनगोवो के मुक़ाम पर क़त्ल किया गया, पंद्रह हज़ार बोस्नियाई मर्दों के जत्थे में से सिर्फ़ चार हज़ार कुछ सौ लोग ही 16 जुलाई 1995 को तुज़ला पहुंचने में कामयाब हुए। तक़रीबन दो हज़ार लोग जंगलो मे छुप गए जिनका शिकार 22 जुलाई 1995 तक सर्ब सिपाहीयों ने किया।
28 अगस्त 1995 के बाद नाटो की फ़ौज ने बोस्नियाई इलाक़ो पर बम्बारी शुर की, जो तक़रीबन एक माह तक जारी रही, ये ज़्यादातर उन इलाक़ो तक महदुद थी जहां सर्बों और मुसलमानो के दरमियान जंग चल रही थी जिसका बज़ाहिर मक़सद जंग को रोकना था, आख़िर नवम्बर 1995 में जंग का ख़ात्मा हुआ और 16 नवम्बर 1995 को संयुक्त राष्ट्र युद्ध अपराध पंचाट ने बोस्निया के सर्ब नेता रावोदान करादज़िच और उनके सैनिक कमांडर रातको म्लादिच को स्रेबेनित्सा के नरसंहार के लिए दोषी ठहराया है. जनरल म्लादिच के उप कमांडर रादिस्लाव क्रस्तिच पहले व्यक्ति थे जिन्हे बोस्निया नरसंहार के लिए दोषी ठहराया गया. म्लादिच ने ही स्रेब्रेनित्सा में हुए नरसंहार की योजना बनाई थी. वैसे दोषी ठहरा कर ही क्या होगा ?
सालों तक दुनिया वालों को ये सही तौर पर पता ही नही चला के आख़िर मे क्या क़्यामत टुटी ??
1991 में स्रेब्रेनित्सा में जहां बोस्नियाई मुस्लिम की आबादी 75.19% थी 2013 में 54.05% हो गई, वाहीं 1991 में और्थोडाक्स सर्ब 22.67% थे जो 2013 में 44.95% और कैथोलिक क्रोएशियाई की आबादी में कोई ख़ास फ़र्क़ नही दिखा ,1991 में वो 0.10% थे तो 2013 में 0.119% हुए..
साफ़ लफ़ज़ो में कुछ इस तरह कहा जा सकता है।
हज़ारों की तादाद में बोस्नियाई मुस्लिम सर्ब-आर्मी के ज़ुल्म से बचने के लिये “UNO” के ज़रिये बनाये गये “सेफ़-ज़ोन” में पनाह लेती है, और इन लोगो के क़त्लेआम की सुपारी 400 संयुक्त राष्ट्र शांति-सैनिकों को दी जाती है, और उन्ही के इशारे पर 10 जुलाई 1995 को सर्ब-आर्मी उसी “अऩ सेफ़ज़ोन” पर हमला कर देती है और “संयुक्त राष्ट्र शांति-सैनिकों” के इलावा तमाम मुसलमानों क बंधक बना लेती है, उसके ठीक उसके बाद शुरु होता है क़त्लेआम का नंगा-नाच और सिर्फ़ 3 दिनों में 8373 मुसलमानों का क़त्लेआम किया जाता है जो के अधिकारिक आंकड़ा है, जबके तादाद अधिक है और 23,000 औरतों को उस “सेफ़-ज़ोन” से उठा कर ले जाया जाता है…जिनके साथ सर्ब-सेना बलात्कार करती है और अपने साथ रखती है ताकि ये प्रेगिनेंट हो जायें….और मजबूर हो कर उनके बच्चे को पैदा करेंI एक रिपोर्ट के अनुसार वहाँ तैनात “संयुक्त राष्ट्र शांति-सैनिकों” ने भी इन कामों में सर्ब-सेना की भरपूर मदद की और खु़द भी बलात्कार के कामों में लिप्त रहे।