अब्बास तय्यब जी : डांडी यात्रा का नायक

अब्बास तय्यब जी मशहुर तय्यब जी ख़ानदान में 1 फ़रवरी 1854 को पैदा हुए थे। वालिद का नाम शमशुद्दीन तैय्यब जी था। बचपन में ही पझ़ने इंगलैंड चले गए और वहां से 1875 में वकालत की पढ़ाई मुकम्मल की और उसी साल हिन्दुस्तान लौट आए, 1893 में बड़ौदा स्टेट के चीफ़ जस्टिस बने, फिर रिटायर होने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। 1915 में महात्मा गांधी से मिले और उनके साथ कई समाजिक कांफ़्रेंस में हिस्सा लिया। जहां उनका हुलिया बिलकुल ही अंग्रेज़ो जैसा था, पर जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम के बाद उनमे बहुत ही बदलाव आया जब उन्हे फ़ायरिंग की जाँच के लिये कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा नियुक्त कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। जहां उन्होने सैंकड़ो गवाह और पिड़ित से मुलाक़ात की। इस तजुर्बे के बाद वो गांधी के क़रीब आ गए और कांग्रेस का खुला समर्थन करने लगे।

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मग़रिबी पहनावे को तर्क कर अब्बस तैय्यब जी ने आम जीवन जीना शुरु किया और उन्होने ठर्ड क्लास डब्बे में भारत भ्रमन किया। और बैलगाड़ी पर पुरे गुजरात में जा जा कर खादी कपड़े बेचा। 1928 में सरदार पटेल के बरदौली सत्याग्रह का खुल कर समर्थन किया जिसमें अंग्रेज़ी कपड़े और सामान का बाहिष्कार किया गया। अब्बस तैय्यब जी ने इस दौरान अपने घर में मौजूद विदेशी सामानों को एक बैलगाड़ी में लाद कर बाहर लाए और आग के हवाले कर दिया जिसमें उनकी पत्नी और बच्चों के कई क़ीमती सामान मौजूद थे। अप्रैल 1930 ई० में जो मशहूर डांडीमार्च गांधी जी ने किया था और नमक का कानून तोड़ा था, उसमें अब्बास तय्यब जी भी उनके साथ थे और यह तय हुआ कि गाँधी जी की गिरफ़्तारी के बाद कांग्रेस की बागडोर आप सँभालेंगें। जिसको ले कर एक बहुत ही मशहुर क़िस्सा है।

दांडी यात्रा प्रारम्भ होने के एक या दो दिन पहले बड़ौदा रियासत के भूतपूर्व चीफ जस्टिस अब्बास तैयबजी अपनी बेटियों के साथ आश्रम में दाखिल हुए. गांधीजी अपने पुराने बंधु अब्बास तैयब जी को देखकर खिल उठे, उठकर उनका स्वागत किया. दोनों मित्र गले मिले. गांधीजी ने समझा कि वे महान यात्रा के समय उन्हें विदा करने आये हैं. पर उस वृद्धावस्था में, उस जर्जर देह को लेकर उनका वहां आना उन्हें गदगद करने के साथ खल गया. और तैयबजी की इस असंगत भावुकता के लिए उन्होंने उन्हें मधुर डाट पिला दी. बेचारे तैयबजी की हालत देखने लायक थी. गांधीजी की बात सुनकर वे भौचक्‍के रह गये. वे गांधीजी को विदा देने थोड़े ही आये थे. वे तो डांडी यात्रा में स्वयं सम्मिलित होकर इस महाप्रयाण का एक अंग बनने आये थे. दो-एक दिन पहले ही 79 डांडी यात्रियों की नामावली अखबारों में छपी थी. उसमें अब्बास तैयब जी ने एक नाम देखा- अब्बास भार्इ. वे एकदम भावाविभूत हो गये. वे समझे कि अब वे इतने वृद्ध हो गये हैं कि इस पवित्र युद्ध में स्वयं भाग नहीं ले सकेंगे. पर जब उन्होंने देखा कि बिना उनसे सलाह लिये ही गांधीजी ने उनका नाम शामिल कर लिया है, तो उन्हें लगा कि वे बिलकुल बेकार नहीं हो गये हैं और अभी भी वे कार्य क्षेत्र में उतर सकते हैं. कम से कम इस अहिंसात्मक लड़ार्इ में सचमुच ही बूढ़े जवानों की तरह लड़ सकते हैं और वे मुग्ध हो गये कि गांधीजी ने उन पर इतना भरोसा किया कि बिना उनसे सलाह लिये ही उन्हें भी अपने दल में शामिल कर लिया।

जब गांधी जी को यह पूरा माजरा समझ में आया तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि यह तो एक आश्रमवासी युवक का नाम है. उन्होंने उसको बुलवा भेजा. वह बीस-बाइस साल का युवक था. पर गांधीजी ने तैयब जी के दिल के भाव को ताड़ लिया. सहसा उन्हें एक उपाय सूझ गया और उन्होंने अब्बास तैयब जी को डांडी यात्रा का एक सैनिक नहीं, बल्कि प्रधान सेनापति स्वीकार कर लिया- तत्काल नहीं, अपनी गिरफ्तारी के बाद के लिए. डांडी यात्रा के दौरान अब्बास तैयब जी हर पड़ाव पर रेल या मोटरकार से गांधीजी से मिलने जाते थे. जब गांधीजी ने धरासना की चढ़ार्इ घोषित की, तब अब्बास तैयब जी वहां पहुंच कर तुरंत सेनापतित्व ग्रहण कर लिया. जिसके बाद उन्हे अंग्रेज़ो द्वारा गिरफ़्तार कर जेल की सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया, उस समय उनकी उम्र 76 साल हो रही थी, उनके सम्मान में गांधी और दिगर लोगों ने उन्हे “ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ़ गुजरात” कह कर पुकारा।

जस्टिस अब्बास तैय्यब जी की क़यादत में महात्मा गांधी ने गुजरात में कई सफ़ल आंदोलन किया, चाहे वो असहयोग आंदोलन हो या फिर सविनय अवज्ञा आंदोलन, विदेशी सामान का बाहिष्कार हो या फिर शराबबंदी के लिए किया हुआ आंदोलन, सबमें गांधी अब्बास तैय्यब जी के समर्थन के वजह कर ही कामयाब हुए, जिस कारन अब्बास तय्यब जी कई बार गिरफ्तार हो कर जेल भी गए। 9 जून 1936 को जस्टिस अब्बास तैय्यब जी का इंतक़ाल 82 साल की उम्र में मसूरी में हो गया। महात्मा गांधी ने उनकी याद में एक लेख “हरिजन” अख़बार में “ग्रांड ओल्ड मैन ऑफ़ गुजरात” नाम की हेडिंग से लिखा, जिसमें तैय्यब जी को मानवता का दुर्लभ ख़िदमतगार बताया। साथ ही ये लिखा के अब्बास मियां मरे नही हैं, उनका शरीऱ क़बर में आराम फ़रमा रहा है। उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणास्रोत है।

अब्बास तय्यब जी का समूचा परिवार भारतीय राष्ट्र का सेवक रहा है। भारत के राष्ट्रीय मुस्लिम घरानों में तय्यब जी का घराना अग्रणी रहा है। आपके चाचा बदरुद्दीन तैयबजी कांग्रेस के संस्थापको में से थे और उसके तीसरे अध्यक्ष बने। 1935 में ऑल इंडिया वोमेन कांफ़्रेंस की सदारत और अंतरराष्ट्रीय महिला गुट में हिस्सा लेने वाली शरीफ़ह हामिद अली जस्टिस अब्बास तैय्यब जी की ही बेटी हैं, जिन्होंने बाल विवाह ख़त्म करने के लिए आवाज़ उठाई और तलाकशुदा औरतों के लिए बहुत ही इंक़लाबी काम किया।साथ ही वो संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए गए 15 सदस्ये उस कमीशन का हिस्सा बनी जो महीलाओं का स्टैटस जानने के लिए बनी थी।