MD Umar Ashraf
8 अगस्त 1942 को कांग्रेस के मुम्बई सेशन में जैसे ही युसुफ़ जाफ़र मेहर अली ने “अंग्रेज़ो भारत छोड़ो” का नारा दिया, मात्र दो दिन के अंदर ये एक आंदोलन का रुप ले लिया और इसका असर बिहार सहीत पुरे भारत में भी दिखने लगा, 11 अगस्त को पटना में पुराने सिक्रेटेरिएट पर झंडा फहराते हुए बड़ी तादाद में छात्र शहीद हुए थे। पुरे पटना में हाई अलर्ट कर दिया गया था और हमारे शहर बाढ़ में भी आंदोलन की तैयारी शुरु हो चुकी थी।
जगह जगह मिटिंग हो रही थी, एक बड़े जुलूस निकाल कर सरकारी दफ़तर पर क़ब्ज़ा कर वहां भारत का झंडा लगाने का प्लान चल रहा था।
इसी सिलसिले में 17 अगस्त को बाढ़ के कांग्रेस मैदान में लोग जमा थे, तब ही CID ने पुलिस को ख़बर दी के बाढ़ में कुछ बड़ा होने वाला है, पटना शहर से पुलिस आती है, और यहां पहुंच कर बिना किसी वार्निंग के अंधाधुन गोली बारी कर देती है जिसमे 2 लोग मौक़े पर ही शहीद हो जाते हैं जिनमें एक की पहचना अथमलगोला निवासी सत्यानारायण सिंह के रुप में होती है। ये सरकारी आकड़ा है, चशमादीदों की माने तो 7-8 लोग शहीद हुए थे।
बड़ी तादाद में लोग घायल होते हैं जिन्हे सरकारी अस्पताल में भरती कराया जाता है। घायलों में बालक्रीश्नन सिंह (सादिक़पुर), राघो गोप (मसुदचौक – मसुदबिघा), रामचंद्र साहु (बाज़िदपुर) और प्राकाश दुसाध (सिकंद्रा) का नाम मिलता है।