आज की पीढ़ी भले ही उड़ीसा के जननायक बीजू पटनायक के नाम से वाकिफ न हो मगर कभी उनकी देश की राजनीति में खूब धाक थी। मैं अपने 56 वर्ष के पत्रकार जीवन में उनसे ज्यादा दुस्साहसी व्यक्ति नहीं देखा। उन्हें मौत से खेलने में वास्तव में मजा आता था।
घटना 1966 की है जब मैं देश के चुनाव अभियान के राष्ट्रव्यापी प्रचार के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज नाडर के साथ देशव्यापी भ्रमण कर रहा था। उन दिनों इंडियन एयरलाइंस के पास सिर्फ द्वितीन विश्वयुद्ध के पुराने छोटे डिकोटा विमान थे और उन्हीं में हम कांग्रेस अध्यक्ष के साथ देशभर का दौरा कर रहे थे। हम उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर तो पहुंच गए। अगला कार्यक्रम उड़ीसा के एक दूरदराज जिला जाॅयपुर में था। वहां पर कोई नियमित हवाई अड्डा नहीं था इसलिए हमारे विमान चालक कैप्टन कौल ने वहां पर जाने से इनकार कर दिया। उनका तर्क था कि वो विमान यात्रियों की जान को खतरे में नहीं डाल सकते। उन दिनों उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक थे। वो कांग्रेस अध्यक्ष को हर कीमत पर जाॅयपुर में ले जाना चाहते थे। इन नाजुक घड़ी में दुस्साहसी बीजू ने कांग्रेस अध्यक्ष को यह पेशकश की कि वह उनकी पार्टी को स्वयं अपना निजी विमान चलाकर जाॅयपुर ले जाएंगे। कामराज शसोपंज में थे मगर पटनायक के दबाव के कारण उन्हें हथियार डालने पड़े। हम पांच लोग एक छोटे से विमान में सवार हो गए जिसे स्वयं बीजू पटनायक चला रहे थे। आधे घंटे के बाद हमारा विमान जाॅयपुर नगर पर मंडराने लगा और बीजू ने उसे एक खेत में सफलतापूर्वक उतार दिया। नगर वासियों और आसपास के लोगों ने कभी विमान नहीं देखा था और कहने लगे ‘अरे! बड़ी चील आई है’। उनकी नजर में विमान एक बड़ा पक्षी था। भीड़ ने इस विमान को चारों ओर से घेर लिया और हाथों से टटोलकर देखने लगे।
यह मेरी बीजू पटनायक से पहली भेंट थी। बीजू पटनायक उड़िया होते हुए भी काफी लम्बे-ऊंचे और सुदृढ़ शरीर के मालिक थे। उनका कद 6 फुट के लगभग था। वह पंडित नेहरु के खासमखास लोगों में गिने जाते थे। वो बहुत दबंग व्यक्ति था। उन दिनों मुझे चावल खाने से बेहद चिढ़ थी। दुर्भाग्य से कांग्रेस अध्यक्ष के इस दौरे में पिछले 15 दिनों से दिन-रात चावल खाने में विवश था। बीजू पटनायक के बंगले में जब मुझे एक सरदार जी नजर आए तो मैं उनकी ओर लपका और मैंने कहा ‘सरदार जी यहां कोई रोटी मिल सकती है?’। सरदार जी का कहना था कि नगर में तो रोटी मिलना कठिन है मगर वो मेरे लिए अपने घर से पकवाकर जरूर ले आएंगे। थोड़ी देर में सरदार जी चले गए। अचानक एक नौकर मेरे पास पहुंचा और उसने कहा कि मुझे मैडम बुला रही हैं। यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी क्योंकि मुझे वहां कोई नहीं जानता था। कुछ ही क्षणों में मैं इस नौकर के साथ बंगले के एक कमरे में जा पहुंचा। वहां पर एक प्रौढ़ महिला मेरा इंतजार कर रही थी। मैं जैसे ही कमरे में दाखिल हुआ मुझे शुद्ध पंजाबी में पूछा ‘कित्थो आए हो?’। यह मेरे लिए हैरानी की बात थी। बाद में पता चला कि यह संभ्रांत महिला बीजू पटनायक की धर्मपत्नी ज्ञान पटनायक है जोकि पंजाबन है और लाहौर की रहने वाली है। तीन दिन तक ज्ञान पटनायक की मेहरबानी से मैं पंजाबी खाने का लुत्फ उठाता रहा।
उड़ीसा के वर्तमान मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इसी बीजू पटनायक के सुपुत्र हैं। वह शायद ऐसे मुख्यमंत्री है जो उड़ीसा के मुख्यमंत्री होते हुए उड़िया भाषा नहीं जानते। उन्होंने मुझे एक बार बताया था कि उनकी सारी शिक्षा-दीक्षा अमेरिका में हुई है मगर वो टूटी-फूटी पंजाबी भलीभांति बोल सकते हैं और उसे समझ भी सकते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि ये उनकी पंजाबन मां की देन है।
बीजू पटनायक का जन्म 1916 गंजम जिला के एक साधारण परिवार में हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने ब्रिटिश एयरफोर्स में विमान चालक के रूप में कार्य शुरू किया। इसी दौरान वो पंडित नेहरु के नजदीक आए।
मौत से खेलने जनून का संकेत एक अन्य घटना से भी मिलता है। इंडोनेशिया के प्रमुख नेता डाॅ. स्वूकारणो पंडित नेहरु के गहरे मित्रों में थे। उन दिनों इंडोनेशिया डचों का गुलाम था। स्वूकारणो उनसे मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे थे। डच शासकों ने स्वूकारणो को एक महल में कैद कर दिया था। चारों ओर कड़ा पहरा था। स्वूकारणो इस कैद से मुक्ति पाने के लिए छटपटा रहे थे। उन्होंने पंडित नेहरु से सम्पर्क साधा। नेहरु के आदेश पर बीजू पटनायक अपना विमान लेकर इंडोनेशिया पहुंचे और उन्होंने इस महल की छत पर अपने विमान को उतारा। बाद में उस विमान में डाॅ. स्वूकारणो को चढ़ाया और दिल्ली पहुंच गए। इंडोनेशिया का सारा प्रशासन और सेना मुंह देखती रह गई। इस घटना के बाद पटनायक नेहरु की नजर में चढ़ गए। 1961 में वह उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने। इंदिरा गांधी से उनकी नहीं पट सकी और उन्हें मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। 1975 में जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू की तो उनके आदेश से उड़ीसा में मीजा के तहत गिरफ्तार किए जाने वाले बीजू पटनायक पहले नेता थे। मोरारजी के शासनकाल में बीजू पटनायक इस्पात मंत्री भी रहे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब देशभर में कांग्रेस के पक्ष में लहर चल रही थी तो भी बीजू पटनायक जनता पार्टी की टिकट से लोकसभा चुनाव जीते।
बीजू ने अपार दौलत इकट्ठी की वह देश के प्रमुख उद्योगपति के रूप में भी उभरे। उन पर भ्रष्टाचार के धब्बे लगे मगर इसके बावजूद वो अपने राज्य में लोकप्रिय रहे। जब स्वूकारणो इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया की मानद नागरिकता प्रदान की और उन्हें अपने देश के सबसे श्रेष्ठ सम्मान ‘बिटांग जसा उतमा’ से नवाजा।