पंडित मदन मोहन मालवीय और जवाहरलाल नेहरू

Shubhneet Kaushik 

दिसम्बर 1961 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संस्थापक मदन मोहन मालवीय की जन्मशती के अवसर पर जवाहरलाल नेहरू बीएचयू में आयोजित कार्यक्रम में शरीक हुए। अपने भाषण में नेहरू ने मदन मोहन मालवीय के साथ अपने आरम्भिक जुड़ाव को याद किया। साथ ही बताया कि इंग्लैंड से वापस लौटने के बाद कैसे उन्होंने मदन मोहन मालवीय से मार्गदर्शन लिया। अपने ऊहापोह और मालवीय जी के सान्निध्य के बारे में नेहरू ने कहा :

‘कोई रास्ता नहीं दिखता था किस तरह से भारत आगे बढ़े, किस तरह से हम कोई बात करें जिससे भारत की आज़ादी में मदद मिले। तो मुझे याद है इस परेशानी में अक्सर मैं जाता था भारती भवन, मालवीय जी से मिलने और इस कोशिश में कि कुछ वो रास्ता दिखाएँ, कुछ रोशनी पड़े कि हम क्या करें। तो इसलिए बार-बार मैं और कभी-कभी मेरे साथ दो-एक और भी हमारे साथी जाते थे पूज्य मालवीय जी के पास, बातें करते थे और कुछ न कुछ इतमीनान होता… याद है मुझे कि एक कितना बड़ा असर मेरे ऊपर होता था उन बातों से, उनके सामने हम चाहे उनसे बहस करें कुछ थोड़ी-बहुत, फिर भी उनकी बातों का असर होता था क्योंकि वो एक बातें थीं, माकूल थीं और एक शुद्ध दिल से, दिमाग़ से और एक बहादुर आदमी की बातें थीं और जब भी कोई बात एक हिम्मत से, वीरता से और शुद्ध बात हो, उसका असर होता है।’

मदन मोहन मालवीय ने बीएचयू के माध्यम से परम्परा और आधुनिकता को समायोजित करने का जो प्रयास किया, इसकी चर्चा भी नेहरू ने अपने भाषण में की। नेहरू ने कहा कि ‘मालवीय जी मिलाना चाहते थे दो बातों को भारतीय संस्कृति और यूरोप के विज्ञान को और विज्ञान के साथ जो चीजें बढ़ी थीं, विज्ञान के साथ नई दुनिया बनी, नया इंडस्ट्रियल सिविलाइज़ेशन, उद्योग की दुनिया बनी, मशीनरी वगैरह की, उन दोनों को मिलाना चाहते थे वो, जैसे हम आज भी चाहते हैं, और कोशिश करते हैं। तो उन्होंने इस बड़े भारी लक्ष्य को अपने सामने रख के यह विश्वविद्यालय क़ामय किया और ज़माना इसको हो गया।’

नेहरू ने बीएचयू को मदन मोहन मालवीय की स्मृति का ऐसा शानदार और जीवंत स्मारक कहा, जिसकी मिसाल दुनिया में बिरले ही मिलेगी। स्मारकों, मूर्तियों से अलग विचारों पर अमल करने को नेहरू ने सच्ची श्रद्धांजलि बताते हुए कहा :

‘हम आज यहाँ मिले महामना मालवीय जी की शताब्दी को मनाने और इस सिलसिले में बहुत सारे स्मारक खड़े होंगे, मूर्तियाँ खड़ी होंगी, इमारतें खड़ी हों, लेकिन आख़िर में बड़े आदमी की याद तो यही है कि उनकी बात हम समझें और उसपे अमल करें, यही एक याद है। जितने बहुत बड़े आदमी हुए हैं इसी तरह से उनकी याद रही है, उनकी, उनके संदेशे की, उनके पैग़ाम की।’

बीएचयू के छात्रों को उनके कर्तव्य की दिलाते हुए और युगधर्म को बताते हुए नेहरू ने कहा कि हमारे युग के जो बड़े सवाल हैं, उनके आलोक में हमें अपने कर्तव्यों को परिभाषित करना है :
‘आजकल हमारा कर्तव्य है और मालवीय जी इसी बात को याद दिलाते थे, इस बड़ी भारी विरासत को जो हमारी है, हमारी संस्कृति, पुरानी संस्कृति, और उसको जोड़ना आजकल की दुनिया में और उससे लाभ खाली नहीं उठाना, उसको बढ़ाना अपनी शक्ति से, अपनी ताक़त से, यह हमारा आजकल के ज़माने का काम है’