दुल्ला उर्फ़ अब्दुल्लाह भट्टी : लोहड़ी का त्यौहार जिसकी स्मृति में मनाया जाता है।

हर कोई जानता है कि लोहड़ी सर्दियों में मनाया जाता है। पर क्या आपको मालूम है लोहड़ी का त्यौहार किसकी स्मृति में मनाया जाता है ? इस अवसर पर जो गाना गाया जाता है वो ‘पंजाब के पुत्र’ की तारीफ़ करते हुए गाने होते हैं । कौन है वो ‘पंजाब का पुत्र’ जिसका नाम इस त्योहार के साथ जुड़ा हुआ है। उस शख़्स का नाम है दुल्ला भट्टी, जिसे दुल्हा भट्टी, अब्दुल्ला भट्टी तथा पंजाब पुत्र’ भी कहा जाता है। लेकिन दुल्ला भट्टी था कौन ? कितनों को याद है ? क्या जानते हैं उसके बारे में ? अब्दुल्ला ख़ान भट्टी, एक मुस्लिम राजपूत था, अकबर के शासनकाल के दौरान पंजाब में एक हीरो बन गया था।

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भट्टी एक ऐतिहासिक और वास्तविक जीवन चरित्र है जो आज भी पंजाबी लोकगीत का हिस्सा है। भट्टी राजकुमार सलीम के साथ बड़ा हुआ लेकिन बाद में सम्राट के ख़िलाफ़ उसने विद्रोह कर दिया था। वह अपनी उदारता के अलावा युवा लड़कियों को बचाने और उनके सम्मान की रक्षा के लिए जाना जाता था। यद्यपि वह सामंती वर्ग से संबंधित था, उसने शक्तिशाली और गरीबों की तरफ से विद्रोह किया और लड़ाई लड़ी।

भट्टी ने लड़कियों के शादियों को व्यवस्थित किया और उन्हें दहेज भी दिया। प्रसिद्ध गीत ‘सुन्दर मुन्द्रीया हो!’, में वीर कृतियों को याद करते हैं, विशेषकर, उसने एक लड़की को कैसे बचाया और उसकी शादी एक हिंदू लड़के से की। यद्यपि वहाँ कोई पुजारी नहीं था और वह हिंदू अनुष्ठानों को भी नहीं जानता था। लेकिन उसने पवित्र अग्नि को जलाया और इस प्रकार उन्होंने विशाल साम्राज्य की शक्ति को चुनौती दी और गरीबों की मदद की। वीरता के कृत्यों और पंजाबी सम्मान को बचाने के लिए उनकी प्रतिज्ञा ने उन्हें एक महान चरित्र बनाया।

इसलिए, आधुनिक लेखकों ने उसे अक्सर रॉबिनहुड के साथ समरूप किया है। लेकिन पंजाबियों का कहना है कि इस नाम से उनका महत्त्व कम हो जाता है, क्योंकि वह सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक से विद्रोह कर रहा था, वह महिलाओं के सम्मान के लिए खड़ा था और लंबी अवधि के लिए लड़ा। आख़िरकार भट्टी को गिरफ़्तार कर लिया गया और उन्हें 1599 में मार डाला गया। भट्टी के बारे में सुफ़ी शाह हुसैन के प्रसिद्ध शब्द लोकगीत का हिस्सा हैं। सूफी संत ने गया था, “पंजाब का कोई पुत्र कभी जमीन का सम्मान नहीं बेचेगा”. दुल्ला भट्टी की क़ब्र लाहौर, पाकिस्तान में स्थित है। 1956 में, पंजाबी में दुल्ला भाटी पर आधारित एक फिल्म बनाई गई थी। हाल में भी पंजाब,भारत, में एक और फिल्म बनाई गई, हालांकि इस फ़िल्म में इतिहास और चरित्र में किये गए परिवर्तनों पर कुछ आपत्तियां थीं।

‘भटनेर का इतिहास’ के लेखक हरिसिंह भाटी इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 183 पर लिखते हैं :-”दुल्ला भट्टी की स्मृति में पंजाब, जम्मू कश्मीर, दिल्ली, हरियाणा राजस्थान और पाकिस्तान में (अकबर का साम्राज्य की लगभग इतने ही क्षेत्र पर था) लोहिड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मकर संक्रांति (14 जनवरी) से एक दिन पूर्व अर्थात प्रति वर्ष 13 जनवरी को मनाया जाता है। उसके काल में यदि धनाभाव के कारण कोई हिंदू या मुसलमान अपनी बहन बेटी का विवाह नही कर सकता था तो दुल्ला धन का प्रबंध करके उस बहन बेटी का विवाह धूमधाम से करवाता था। अगर वह स्वयं विवाह के समय उपस्थित नही हो सकता था तो विवाह के लिए धन की व्यवस्था अवश्य करवा देता था।” इस प्रकार लोगों ने अपने नायक को हुतात्माओं की श्रेणी में रखकर उसे अमर कर दिया।

मुहम्मद सैफ़ुल्लाह