मौलाना मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी :- जंग ए आज़ादी का गुमनाम सिपाही

3 मार्च 1900 को मुज़फ़्फ़रपुर बिहार के एक मुहज़्ज़ब घराने मे पैदा हुए डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता थे।

मग़फ़ुर अहमद के वालिद मौलवी हफ़ीज़उद्दीन हुसैन और दादा हाजी इमाम बख़्श एक ज़मीनदार थे.. वालिदा का नाम बीबी महफ़ुज़ुंनिसा था और नाना रेयासत हुसैन सीतामढ़ी के एक क़द्दावर वकील थे।

मग़फ़ुर अहमद ने इबतदाई तालीम जिसमे मज़हब की तालीम भी है, मदरसा ए इमदादिया दरभंगा से हासिल की, फिर नार्थ ब्रुक ज़िला स्कुल दरभंगा मे दाख़िला लिया जहां से उन्हे अंग्रेज़ों का विरोध करने के वजह कर निकाल दिया गया.. मार्च  1919 में उन्हेने मैट्रिक का इम्तेहान पुसा हाई स्कुल समस्तीपुर से पास किया और आगे की पढ़ाई करने की नियत से बी.एन. कालेज पटना मे दाख़्ला लिया।

मग़फ़ुर अहमद ने क़ौमप्रस्ती अपने वालिद हफ़ीज़उद्दीन हुसैन से सीखी जो एक तरफ़ क़द्दावर ज़मींनदार थे तो दुसरी जानिब कट्टर अंग्रेज़ मुख़ालिफ़.. अपने लोंगो की हर तरह से हिफ़ाज़त वो अंग्रेज़ो से करते थे जिस वजह कर अपने अवाम मे बहुत ही मक़बुल थे।

1921 मे मग़फ़ुर अजाज़ी असहयोग आंदोलन से जुड़ते हुए बी.एन. कालेज से ख़ुद को अलग कर लिया और इसमे इनका साथ दिया प्राजापति मिश्रा और ख़लीलदास चतुर्वेदी ने.. इसी दौरान अजाज़ी साहेब अली बेरादरान के नज़दीक आए और इनके साथ मौलाना आज़ीद सुबहानी, अब्दुल मजीद दरयाबादी जैसे क़़द्दावर नेताओं से भी उनके तालुक़ात अच्छे हो गए।

वोह मरक़ज़ी ख़िलाफ़त कमिटी के अहम स्तुन थे, अली बेराद्रान के साथ मिल कर ख़िलाफ़त कमिटी के क़याम मे नुमाया किरदार अदा किया।

1921 मे ही मग़फ़ुर साहेब मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला कांग्रेस कमिटी के मेमबर बने और शकरा थाना कांग्रेस कमिटी मुज़फ़्फ़रपुर क़ाएम किया और कांग्रेस के इस युनिट के सिक्रेट्री बने.. चुंके 1920 के नागपुर सेशन मे कांग्रेस ने ज़िला और थाना युनिट बनाने की बात की थी।

जैसे जैसे आंदोलन मज़बुत हो रहा था वैसे वैसे अंग्रेज़ी हुकुमत भी हरकत मे आने लगी थी.. 11 दिसम्बर 1921 को पुलिस ने शकरा थाना कांग्रेस के दफ़्तर पर छापेमारी की और मग़फ़ुर साहेब पर केस दर्ज किया।

मग़फ़ुर साहेब उन लोगो मे शुमार थे जिन्होने कांग्रेस के अहमदाबाद सेशन मे हिस्सा लिया, इस सेशन की सदारत हकीम मोहम्मद अजमल ख़ान कर रहे थे.. इसी सेशन मे मौलाना हसरत मोहानी ने “पुर्ण स्वाराज” की वकालत की जिस पर मग़फ़ुर साहेब ने उनका खुलकर साथ दिया।

यहीं इनकी मुलाक़ात ख़िलाफ़त तहरीक के सबसे बड़े नेता मौलाना मोहम्मद अली जौहर की वालदा आबदी बानो बेगम (बी-अम्मां) से हुई.. उन्होने अंगोरा फ़ंड के लिए डेढ़ लाख रुपया जमा करने के लिए अपील की ताके उस्मानी लोग अपनी परेशानी को दुर कर सके.. मग़फ़ुर साहेब ने अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए सबसे अधिक 11000 रुपैय जमा किया जिससे मग़फ़ुर साहेब का रुतबा लोगों मे और बढ़ गया।

1921 के कुल हिन्द कालेज कांफ़्रेंस अहमदाबाद की सदारत करते हुए सरोजिनी नायडू ने छात्रों के लिए भी अलग संगठन बनाने की बात की ताके वोह भी अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ बचपन से ही तैयार हो सके.. और इसी पर अमल करते हुए मग़फ़ुर साहेब ने कांग्रेस सेवा दल का गठन किया जिसकी मदद से वोह उत्तर बिहार के छात्रों के देश की आज़ादी के लिए समर्पित करवा सकें।

इसी दौरान वो अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में महात्मा गांधी से मिले और उनसे बहुत ही मतास्सिर हुए। लोगों मे जागरुक्ता और अंग्रेज़ो के विरुद्ध उन्हे खड़ा करने के लिए 1921-24 के दौरान वो लागातार उत्तर बिहार का दौरा करते रहे। उन्होने इसके लिए चर्खा समिती, रामायन मंडली और स्वंयसेवक की स्थापना की।

कांग्रेस और ख़िलाफ़त कमिटी के फ़ंड के लिए उन्होने सात सुत्री कार्यक्रम की शुरुआत की, जिसकी मदद से मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला कांग्रेस के लिए ज़मीन ख़रीदी गई जिसे तिलक मैदान मुज़फ़्फ़रपुर के नाम से जाना जाता है।

खादी कपड़े बेच कर, विदेशी कपड़े जलाने के साथ और कई विदेशी सामान का बाहिष्कार कर के, मुठ्ठी भर आनाज, औरतो के ज़ेवर और नगद रुपैय ले कर तहरीक को मज़बुत किया गया।

एक बार अपने ही आबाई गांव मे मग़फ़ुर अजाज़ी ने एक जलसे में अपने तमाम विदेशी कपड़े को अवाम के बीच मे जला डाला था।

उत्तर बिहार मे वो शफ़ी दाऊदी के इलावा दुसरे नेता थे जिन्हे असहयोग आंदोलन के समय वहां के देहाती इलाक़े की जनता से ज़बर्दस्त समर्थन मिला और इसी दौरान उन्होने ही सबसे पहले शराबबंदी की बात की और शराब पर पाबंदी की मांग की।

मग़फ़ुर अहमद ने अंग्रेज़ो के विरुद्ध एक गुप्त योजना बनाई जिसे 5 जनवरी 1922 को अमल मे लाना था, पर ग़द्दारो की वजह कर ये योजना कामयाब नही हो सकी और अंग्रेज़ो के सामने सारा राज़ खुल गया। मग़फ़ुर अहमद पर केस चला और ये पुरा वाक़िया “दिहुली कांसप्रेसी केस” के नाम से जाना गया।

1922 मे गया शहर मे देशबंधु चितरंजन दास की क़यादत में हुए कांग्रेस सेशन में मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी ने हिस्सा लिया।

1923 मे घर पर हादसा हो जाने के बावजुद कांग्रेस उम्मीदवार के लिए चुनाव प्राचार किया।

8 दिसम्बर 1923 को मौलाना शौकत अली अपनी वालदा “बी अम्मा” के साथ मुज़फ़्फ़रपुर तशरीफ़ लाए; जो शफ़ी मंज़िल मे ठहरे थे। मग़फ़ुर अजाज़ी हमेशा उनके साथ साथ रहे।

1923 में मौलाना मुहम्मद अली जौहर की सदारत मे हुए किकानाडा कांग्रेस सेशन मे हिस्सा लेने के लिए मुज़फ़्फ़रपुर से बनारस तक लोगों को जागरुक किया।

1923 मे मौलाना आज़ाद की सदारत मे हुए दिल्ली में कांग्रेस के स्पेशल सेशन मे ख़ुद हिस्सा लिया। और यहां बिहार से आए हुए नुमाईंदो को पहली पंक्ती मे बैठने नही दिया गया तो मग़फ़ुर अहमद ने अपनी आपत्ती दर्ज करवाई और इसके बाद बिहारी नुमाईंदो को भी पहली पंक्ती मे जगह दी गई।

दिल्ली से मग़फ़ुर अहमद बदायुं गए और वहां के सुफ़ी बुज़ुर्ग एजाज़ हुसैन के हाथ पर बैत किया और ‘अजाज़ी’ का लक़ब पाया और इस तरह वो मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी हो गए।

वापस लौटते हुए उन्होने मोतिहारी बिहार मे ख़िलाफ़त कमिटी और कांग्रेस की मिटिंग मे हिस्सा लिया।

1924 मे उन्होने डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के चुनाव मे हिस्सा लिया और इसी साल किशनगंज मे गिरफ़्तार भी कर लिए गए क्योंके उन्होने प्रोफ़ेसर अब्दुल बारी के चुनावी सभा मे हिस्सा लिया था और प्रशासन ने पुर्निया ज़िला मे प्रावेश करने पर ही पाबंदी रखा था।

28 जुलाई 1924 को मौलाना मुहम्मद अली जौहर के कहने पर वो कलकत्ता गए और ख़िलाफ़त कमिटी के दफ़्तर की ज़िम्मेदारी अपने हाथ मे ले ली। यहीं वो सुभाष चंद्रा बोस के भी नज़दीक आए। कलकत्ता क़याम के दौरान ही उन्होने एक मस्जिद नरकुलदंगा मे तामीर करवाई।

1924 से 1927 तक कलकत्ता मे रहते हुए उन्होने फ़ैकल्टी ऑफ़ होमोपैथी कॉलेज कलकत्ता से मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी ने डिग्री हासिल की और डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी बन गए। और वापस मुज़फ़्फ़रपुर आ कर प्रैक्टिस भी की।

1927 में डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी की सदारत मे हुए मदरास कांग्रेस सेशन मे हिस्सा लिया।

1928 मे ख़िलाफ़त कमिटी के सिक्रेट्री रहते हुए साईमन कमीशन का विरोध किया। और 1928 मे ही नेहरु रिपोर्ट पर अपनी आपत्ती दर्ज करवाते हुए शफ़ी दाऊदी के साथ 1929 अहरार पार्टी से जुड़ गए जिसने मुस्लिम लीग की टु नेशन थ्युरी का विरोध किया था। जहां शफ़ी दाऊदी अहरार पार्टी के सदर थे वहीं अजाज़ी सिक्रेट्री थे।

1930 में डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन मे हिस्सा लिया और साथ ही नमक सत्याग्रह को कामयाब बनाने में जी जान लगा दिया। साथ ही उन्होने शराबबंदी की भी मांग की और जंग ए आज़ादी को समाजिक बुराईयो की आज़ादी के साथ ला खड़ा कर दिया जिससे तहरीक और मज़बुत हुई।

1931 में अल्लामा इनायतुल्लाह ख़ां मशरिक़ी की ख़ाकसार तहलीक के भी नज़दीक आए और 15 जनवरी 1934  को आए बिहार के भुकंप मे लोगो की बहुत मदद की और कई जगह रिलीफ़ कैम्प लगवाए।

4 अक्तुबर 1936 को अंजुमन इस्लामिया हॉल पटना मे मौलवी अब्दुल हक़ की सदारत मे हुए बिहार की पहली उर्दु कांफ़्रेंस में डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी साहेब बिहार अंजुमन तरक़्की ए उर्दु के नाएबसदर की हैसियत से शरीक हुए और अपने आख़री सांस तक उर्दु की ख़िदमत की।

जब मुस्लिम लीग ने 23 मार्च 1940 को लाहौर मे अलग मुल्क पाकिस्तान के लिए रिज़ोलुशन पास कराया तो मग़फ़ुर साहेब ने इसका जमकर विरोध किया।

मुस्लिम लीग के विरोध मे इन्होने महमुदाबाद के नवाब मोहम्मद अमीर अहमद ख़ान के साथ मिल कर कुल-हिन्द जमहुर मुसलिम लीग क़ायम किया और इसका पहला इजलास मुज़फ़्फ़रपुर बिहार मे हुआ जिसमे नवाब मोहम्मद अमीर अहमद ख़ान को कुल-हिन्द जमहुर मुसलिम लीग का सदर और डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी को जेनरल सिक्रेटरी मुंतख़िब किया गया; पर नवाब महमुदाबाद से जिन्ना के ख़ानदानी तालुक़ात थे और वोह वापस उन्ही से जा मिले तो मग़फ़ुर सहेब कुल-हिन्द जमहुर मुसलिम लीग के एक बड़े धड़े को भारत छोड़ो तहरीक के दौरान कांग्रेस मे मिला दिया।

मग़फ़ुर अजाज़ी साहेब ने एक टीम तशकील कर घर घर दस्तक देना शुरु किया ताके मुज़फ़्फ़रपुर के लोग मुसलिम लीग के बहकावे मे नही आ सके… इस दौरान लीग के लोगों द्वारा उन्हे “ग़द्दार ए क़ौम” के ख़िताब से नवाज़ा गया।

1941 में मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला के शकरा थाना इलाक़े मे मग़फ़ुर अहमद की क़यादत में चल रहे एक आंदोलन पर पुलिस ने ज़बर्दस्त लाठीचार्ज किया जिसमे डॉ अजाज़ी ख़ुद घायल हो गए।

25 जुलाई 1942 को मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी के बेटे का इंतक़ाल हो गया फिर भी वो भारत छोड़ो तहरीक मे सबसे आगे रहे और अपने बड़े भाई मंज़ुर अहसन अजाज़ी के साथ 8 अगस्त 1942 मुम्बई के कांग्रेस सेशन में हिस्सा लिया जहां भारत छोड़ो तहरीक का रिज़ुलुशन पास करवाने अहम योगदान दिया।

भारत छोड़ो तहरीक मे हिस्सा लेने की वजह कर मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी के नाम का वारंट निकला, घर पर छापेमारी हुई, वो अंडरग्राउंड हो कर तहरीक को मज़बुत करने लगे; फिर गिरफ़्तार कर लिए गए और सलाख़ो के पीछे डाल दिए गए।

6 से 8 जुलाई 1945 तक मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला मे चले ‘तिरहुत उर्दु कांफ़्रेंस’ को कामयाब बनाने के लिए मौलाना बेताब सिद्दीक़ी के साथ डॉ अजाज़ी ने जी जीन लगा दिया।

डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी साहेब जहां एक तरफ़ उर्दु के एक बेहतरीन शायर थे वहीं वो तेजस्वी वक्ता, लेखक, प्राचारक एंव समाज सुधारक भी थे।

वो 1952 से 58 तक जहां मुज़फ़्फ़रपुर निकाय के चेयरमैन रहे वहीं उन्होने मज़दुरो के हक़ की भी लड़ाई लड़ी ख़ास कर मोतीपुर शुगर मिल, रेल वैगन वर्क शॉप, बिजली विभाग के कर्मचारीयों, रिक्शा चालक युनियन मुज़फ़्फ़रपुर के लिए बेहतरीन काम किया और उत्तर बिहार रेलवे कर्मचारी युनियन की भी बुनियाद डाली जिसके सदर 1948 से 51 तक रहे।  इसके इलावा वो जमीयत उलमा मुज़फ़्फ़रपुर की भी बड़ी ज़िम्मेदारी अपने हाथो मे लिए रहे।

डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी साहेब खेल कुद में बहुत ही दिलचस्पी रखते थे और लगातार इसे बढ़ावा देते रहे; यही वजह है के उन्हे उत्तर बिहार का ” मोइनुलहक़ ” कहा गया। वो खुद भी खेलते थे और लोगों को भी खेलने के लिए प्रेरित करते थे। उन्होने स्कुली छात्रों के लिए ‘अन्तरविधालय वूड मैन चैलेंज शील्ड’ नामक टूर्नामेन्ट को पुर्नजीवित कर उसका संचालन किया और आजीवन उसके सचिव रहे। साथ ही वो मुज़फ़्फ़रपगया।ला स्पोर्ट्स एसोसिएशन के भी आजीवन सचिव रहे।

1950 से 60 के दौरान वो लगातार उर्दु को ले कर अपनी 12सुत्री मांग को दुहराते रहे और शहर शहर गांव गांव दौरा करते रहे; साथ ही 4 जुलाई 1961 को युनियन गवर्नमेंट कमिशनर से पटना मे अपने इसी 12सुत्री मांग को लेकर मुलाक़ात भी की। और एैसा कहा जाता है के डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी साहेब की मेहनत और लगन का नतिजा ही था के उस समय कम से कम 15 उर्दु स्कुल बिहार सरकार द्वारा विभिन्न ज़िला वैशाली, मुज़फ़्फ़रपुर, सितामढ़ी और शिवहर में स्थापित किया गया।

3-4 दिसम्बर 1960 को  मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला मे आयोजित हुए ऐतेहासिक उर्दु कान्फ़्रेंस की स्वागत समिति के सदर डॉ अजाज़ी थे। इसी कान्फ़्रेंस में पहली बार उर्दु को बिहार की द्वितीय राजभाषा बनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया था। 4-5 जुन 1966 को सिवान मे हुए कांफ़्रेंस में उर्दु को आने वाले चुनाव में(1967) चुनावी मुद्दा बनाने का एलान भी कर दिया। इसके इलावा डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी ने बिहार युनिवर्सिटी के कई कॉलेज मे उर्दु साहित्य मे BA और MA की कोर्स की शुरुआत के लिए भी जद्दोजेहद किया और कामयाबी हासिल की। साथ ही उन्होने बिहार युनिवर्सिटी के पटना हेडक्वाटर को मुज़फ़्फ़रपुर शिफ़्ट करवाने वाली तहरीक मे अहम किरदार अदा किया। और उर्दु कोटे से इस युनिवर्सिटी के सिनेट के मेम्बर बनने का भी शर्फ़ भी हासिल किया।

कांग्रेस की बदलती हुई निती से तंग आ कर डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी ने नवम्बर 1961 में कांग्रेस छोड़ स्वातंत्रता पार्टी मे शामिल हो गए और 1962 के लोकसभा चुनाव मे मुज़फ़्फ़रपुर से कांग्रेस के ख़िलाफ़ स्वातंत्रता पार्टी के टीकट से खड़े हुए। कांग्रेस के उम्मीदवार की हालत ख़राब हो चुकी थी तब उस समय के भारत के सबसे चहेते नेता पं. जवाहर लाल नेहरु कांग्रेस उम्मीदवार के लिए वोट मांगने के लिए मुज़फ़्फ़रपुर आए और डॉ अजाज़ी के ख़िलाफ़ ज़बर्दस्त कैंम्पेन किया जिस वजह कर मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी 58000 वोट पा कर चुनाव हार गए।

26 सितम्बर 1966 को लम्बी बिमारी के बाद हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी का ये अज़ीम सिपाहसालार, उर्दु का मुहाफ़िज़, हिन्दु मुस्लिम एकता का पैरवीकार डॉ मग़फ़ुर अहमद अजाज़ी साहेब का इंतक़ाल 66 साल की उम्र में उनके रिहाईश गाह ‘अजाज़ी हाऊस’ मे हुआ। नामज़ ए जनाज़ा हज़ारो की तादाद में मौजुद लोगों के बीच मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला के दफ़्तर और डॉ अजाज़ी द्वारा ही किये गए चंदे से ख़रीदी गई ज़मीन एतिहासिक “तिलक मैदान” में अदा की गई। और क़ाज़ी मुहम्मदपुर क़ब्रिस्तान मे दफ़न कर दिए गए.

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.