हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा सैफ़ुद्दीन किचलू का जन्म पंजाब के अमृतसर में 15 जनवरी 1888 को एक कशमीरी परिवार में हुआ था। वालिद का नाम अज़ीज़उद्दीन किचलू था और वालिदा दांन बीबी थी। वालिद अज़ीज़उद्दीन किचलू ज़ाफ़रान और ऊनी कपड़े की तिजारत किया करते थे।
शुरुआती तालीम इस्लामिया हाई स्कुल अमृतसर से हासिल की और फिर आगे की पढाई और उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गये और कैम्ब्रिज विश्विवद्यालय से स्नातक की डिग्री, लंदन से ही बार एैट लॉ की डिग्री हासिल की और जर्मनी से पी.एच.डी की डिग्री हासिल कर डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू बने और फिर सन् 1913 में वापस हिन्दुस्तान लौट आए। यूरोप से वापस लौटने पर उन्होंने अमृतसर में वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी, 1915 में सैफ़ुद्दीन किचलू की शादी अमृतसर के नामी वकील हफ़ीज़उल्लाह मंटो की बेटी सादास बानो से हुई।
होम रूल मुवमेंट से सैफ़ुद्दीन किचलू ने अपनी सियासी केरियर की शुरुआत की और इसी दौरान 1919 में किचलू अमृतसर नगर निगम के चुने हुए कमिश्नर बने और इन्होंने पंजाब में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन किया। और पंजाब कांग्रेस कमिटी के पहले अध्यक्ष बने।
1919 में, ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए रोलेट ऐक्ट लेकर आने का फ़ैसला किया था। ऐक्ट के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध को गिरफ़्तार कर सकती थी या उसे जेल में डाल सकती थी। सैफ़ुद्दीन किचलू ने पंजाब में रॉलट एक्ट की जम कर मुख़ालफ़त की और इसे आंदोलन का रूप देकर इस की अगुवाई की।
रॉलेट एक्ट के विरोध में डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू ने 30 मार्च 1919 को जालियांवाला बाग़ में एक जल्सा कर अंग्रेज़ों की जम कर मुख़ालफ़त की जिसमें तीस हज़ार से अधिक लोग आए थे। और इसके बाद 6 अप्रील को हुए हड़ताल को भी कामयाब बनाया। 9 अप्रील 1919 को राम नवमी के दिन अमृतसर में हिन्दु मुस्लिम एकता का बेहतरीन नमुना देखने को मिला जिसके बाद पंजाब के मशहूर नेता डॉक्टर सत्यपाल सिंह के साथ सैफ़ुद्दीन किचलू को रोलेट ऐक्ट के तहत ही गिरफ़्तार कर लिया गया और अज्ञातावास भेज दिया गया, शायद धर्मशाला भेजा गया। इसी गिरफ़्तारी के विरोध में, कई प्रदर्शन हुए, रैलियां निकाली गईं। ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी सार्वजनिक सभाओं, रैलियों पर रोक लगा दी।
19 अप्रील 1919 को इन्ही के समर्थन में हज़ारो लोगों ने जालियांवाला बाग़ के अंदर अंग्रेज़ों के हांथो गोली खाई थी। गोली खाने वाले लोग सैफ़ुद्दीन किचलू और सतपाल सिंह के ही समर्थक थे जो सैफ़ुद्दीन और सतपाल सिंह की रिहाई की मांग के लिए जमा हुए थे। सत्यपाल सिंह के साथ सैफ़ुद्दीन किचलू को उम्र क़ैद की सज़ा हुई, पर शहीदों का ख़ून ज़ाया नही गया, अवाम के दबाव में आ कर अंग्रेज़ो ने 1919 के आख़िर में इन दोनो को छोड़ दिया। इस समय डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू की उम्र मात्र 31 साल थी।
जेल से निकलने के बाद सैफ़ुद्दीन किचलू ने प्रोफ़शनली वकालत छोड़ दी और एक वकील की हैसियत से उन्होने मेरठ और दिल्ली के क्रांतिकारीयों का केस लड़ा जिन पर बग़ावत का मुक़दमा चल रहा था। और इसके साथ ही तहरीक ए आज़ादी में खुल कर हिस्सा लेने लगे।सैफ़ुद्दीन किचलू जामिया मिलिया इस्लामिया की फाउंडेशन कमेटी के सदस्य भी थे, जो 29 अक्टूबर 1920 को मिले और जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना अलीगढ़ में की।
डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू ने ख़िलाफ़त और असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रूप में भाग लिया और जेल गये। 1921 में कराची शहर के ख़ालिक़दीना हॉल मे ‘बग़ावत के जुर्म में’ चल रहे ट्रायल “कराची कांसप्रेसी” के दौरान तहरीक ए ख़िलाफ़त के अज़ीम रहनुमा मौलाना शौकत अली, श्री शंकर आचार्या, कांग्रेस के सदर रहे मौलाना मुहम्मद अली जौहर के साथ नज़र आए। रिहाई के बाद उन्हें ऑल इण्डिया ख़िलाफ़त कमेटी का अध्यक्ष चुना गया।
Karachi 1921: L–R :- Maulana Shaukat Ali, Sri Shankar Acharia, Maulana Muhammad Ali Jauhar; front Dr #SaifuddinKitchlew, on trial for ‘sedition against the armed forces’ in Khaliqdina Hall.#ShankarAcharia#MaulanaShaukatAli #KhilafatMovement #MaulanaMuhammadAliJauhar pic.twitter.com/85Smvm4551
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) December 7, 2017
जनवरी 1921 में अमृतसर में राष्ट्रीय कार्य के लिए युवाओं को प्रशिक्षित करने और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए सैफ़ुद्दीन किचलू ने “स्वराज आश्रम” की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिन्दु मुस्लिम एकता के समर्थक सैफ़ुद्दीन किचलू ने “तहरीक ए तंज़ीम” नाम का संगठन बनाया और एक उर्दु मैगज़ीन “तंज़ीम” निकाला। और शुरु से ही मुस्लिम लीग की सियासत का विरोध किया और फिर सन् 1924 में किचलू को कांग्रेस का महासचिव चुना गया।
सैफ़ुद्दीन किचलू ने मार्च 1926 में नौजवान भारत सभा की संस्थपना में अहम भुमिका अदा किया, जिसने लाखों छात्र और युवा भारतीयों को राष्ट्रवादी कारणों से जोड़ा। सन् 1929 में जब जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित किया गया तो उस समय इन्हें कांग्रेस की लाहौर समिति का सभापति बनाया गया था। 1930 से 1934 के दौरान सैफ़ुद्दीन किचलू लगातार आंदोलन करते रहे जिस वजह कर उन को बार-बार गिरफ़्तार किया गया। 1940 में फिर से पंजाब कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष बने। वो गांधी जी की बहुत इज़्ज़त किया करते थे पर वो सुभाष चंद्र बोस के नज़दीक होने लगे थे; इस वजह कर कांग्रेस से दुरी बना ली। हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए सैफ़ुद्दीन किचलू ने अपने जीवन के चौदह साल सलाखों के पीछे बिताया।
(From left) Pandit #JawaharlalNehru, Maulana Habib-ur-Rehman Ludhianvi with #MasterTaraSingh, #SatguruPratapSingh and #SaifuddinKitchlew at a convention at Bhaini Sahib near Ludhiana in 1931. pic.twitter.com/wj6l0ffliU
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) October 8, 2018
अपने सियासी केरियार ख़िलाफ़त तहरीक से शुरु करने वाले डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू ने मुस्लिम लीग के पाकिस्तान की मांग का ना सिर्फ़ विरोध किया बल्के इसे ले कर कांग्रेस को भी चेतावनी दे डाली। 1947 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी द्वारा भारत के विभाजन की स्वीकृति का ज़ोरदार तरीक़े से विरोध किया। उन्होंने पूरे देश में सार्वजनिक सभाओं में और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सत्र में उस पर चर्चा की, जिसने अंततः प्रस्ताव के लिए मतदान किया गया। उन्होंने इसे “सांप्रदायिकता के लिए राष्ट्रवाद का आत्मसमर्पण” कहा।
1946 – 47 के दौरान मज़हब के नाम पर हुए दंगे ने उन्हे काफ़ी परेशान किया। उन्होने बिहार सहित हर दंगाग्रसित इलाक़े का दौरा किया। 1947 में भारत विभाजन के दौरान हुए दंगों में उनके घर तक को जला दिया गया। जिसके बाद डॉ़ किचलू दिल्ली में चले गए, और वहीं किराए के मकान में रहने लगे। इसके बाद उन्होंने शेष सालों में यू.एस.एस.आर के साथ घनिष्ठ राजनीतिक और राजनयिक संबंधों के लिए काम किया और 21 दिस्मबर 1952 में स्टालिन शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय बने, इसी को लेनिन शांति पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है, स्टालिन पीस प्राईज़ में मिली पुरी रक़म 125000 रु पीस मुवमेंट को दान कर दिया।
#SaifuddinKitchlew, Giani Gurmukh Singh Musafir and other Congress leaders laying wreaths at the Martyrs Well at #JallianwalaBagh in Amritsar on April 14, 1955. (Prakash Bhandari/HT)#JallianwalaBaghMassacre pic.twitter.com/LIKUpAvFWd
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) October 8, 2018
विभाजन और आज़ादी के कुछ साल बाद, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दिया। वह भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी के करीब आना शुरू कर दिया। वोह ऑल इंडिया पीस कौंसिल के संस्थापक अध्यक्ष थे और 1954 में मद्रास में आयोजित ऑल इंडिया पीस कौंसिल के चौथे कांग्रेस की अध्यक्षता की, इसके अलावा विश्व शांति परिषद के उपराष्ट्रपति भी रहे। 1951 में, एक सरकारी कानून ने सैफ़ुद्दीन किचलू, जवाहरलाल नेहरू और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को जलियांवाला बाग़ नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट के जीवन न्यासी बनाया। 9 अक्टूबर 1963 को 75 साल की उम्र में उनका इंतक़ाल दिल्ली में हो गया।
आपको एक बेटा और पांच बेटियां थी। बेटे तौफ़ीक किचलू का जन्म 1932 में हुआ था जिन्हे दिल्ली युनिवर्सटी से हिस्ट्री में स्नातक किया है, और अपने वालिद पर एक किताब “डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू : हीरो ऑफ़ जालियांवाला बाग़”, चार बेटी की शादी पाकिस्तान में हुई है। और एक बेटी ज़हिदा किचलू की शादी मलयालम संगीत निर्देशक बी.बी.श्रीनिवासन से हुई।
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सैफ़ुद्दीन किचलू के सम्मान में लुधियाना की एक पॉश कॉलोनी का नाम डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू के नाम पर है। इसे आम तौर पर किचलू नगर कहा जाता है। उनके सम्मान में इंडियन पोस्ट ने 1989 में उन्हें विशेष स्मारक स्टैंप जारी किया था। वहीं जामिया मिलिया इस्लामिया ने सैफ़ुद्दीन किचलू के सम्मान में 2009 में एम.एम.ए.जे. अकादमी ऑफ थर्ड वर्ल्ड स्टडीज़ में सैफ़ुद्दीन किचलू चेयर बनाया।