वो साल 1951 था ऑस्ट्रिया के विएना शहर में अंतर्राष्ट्रीय टेबल टेनिस प्रतिस्पर्धा हो रही थी। रोमानिया की एंजेलिका रोज़ेनु जिन्होंने कि इस प्रतिस्पर्धा के इतिहास में अबतक कोई मैच न गंवाया था एक 14 साल की भारतीय लड़की से मुक़ाबला कर रही थी। बक़ौल उस समय के खेल संवाददाताओं के वे सभी मैच का परिणाम जानते थे कि एक सहमी सी भारतीय लड़की एंजेलिका से हार जाएगी इस कारण सभी उठ कर चाय नाश्ता करने चले गए। थोड़ी ही देर में किसी ने आकर सूचना दी कि उस बच्ची ने मैच जीत लिया है। अगले दिन के अख़बारों में भारत से आने वाली, शलवार-क़मीज़ पहनने वाली ये लड़की सुर्ख़ियों में थी। पूरा यूरोप इस लड़की को सिंड्रेला की संज्ञा दे रहा था। ये लड़की थी सईद सुल्ताना।
सईद सुल्ताना का जन्म 14 सितम्बर, 1936 को हैदराबाद के एक संपन्न घराने में हुआ था। वालिद का नाम मुहम्मद अहमद अली था। छह भाईयों के बीच इकलौती बहन होने की वजह से वह घर में सबकी लाड़ली थीं। उनका दाख़िला हैदराबाद के सबसे मशहूर महबूबिया गर्ल्स हाई स्कूल में करवाया गया।
बात 1947 की है, सईद सुल्ताना के बड़े भाई हामिद अली एक टेबल टेनिस का सेट घर ले आये, घर के तमाम बड़े इस खेल में हिस्सा लिया करते थे, और छोटे अल्ताफ़ और सुल्ताना बैठ कर उन्हें देखा करते। जब बड़े लोग अपने खेल से फ़ारिग़ हो जाते तो ये दोनों बच्चे टेबल टेनिस पर उसी तरह हाथ आज़माते जैसे इनके बड़े खेला करते थे।
वो 1948 की बात है, ये दोनो बच्चे टेबल टेनिस खेल रहे थे; एकाएक बड़े भाई उस कमरे में दाख़िल हुए, उन्हें इन्हें खेलता देखा और उनको बड़ी हैरत हुई। इसके बाद तमाम बड़े भाइयों ने अपने घर के इन छोटे बच्चों की न सिर्फ़ हौंसला अफ़ज़ाई की; बलकि इन्हें गाइड भी करने लगे। 1949 आते आते सईद सुल्ताना को टेबल टेनिस के खेल में महारत हासिल हो गई, उन्होंने घर पर अपने भाइयों को इस खेल में लगातार हराना शुरू कर दिया। इसी बीच किसी परिचित ने सईद सुल्ताना को हैदराबाद स्टेट चैम्पीयनशिप में हिस्सा लेने की सलाह दी। कई लोगों के प्रोत्साहन और भाइयों की मेहनत के बाद सईद सुल्ताना को उनके घर वालों ने प्रतियोगिता में हिस्सा लेने की इजाज़त दे दी।
और यहीं से शुरू हुआ महिला टेबल टेनिस के इतिहास में शानदार बदलाव, सईद सुल्ताना ने न सिर्फ़ अपने सामने आने वाले तमाम खिलाड़ियों को हराया, बल्कि पिछली विजेता को हरा कर महिला एकल का ख़िताब भी जीत लिया।
दिसम्बर 1949 में, ऑल इंडिया टेबल टेनिस चैम्पीयनशिप हैदराबाद में हुआ, सईद सुल्ताना को महिला टीम की नुमाइंदगी करने के लिए चुना गया। पर पारिवारिक प्रथा के अनुसार महिलायें पर्दा करती थीं, इसलिए महिलाओं को बिना बुर्क़े के पब्लिक के बीच में जाना मना था। सईद सुल्ताना की माँ उनके प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के ख़िलाफ़ थीं, पर भाइयों के जद्दोजहद के बाद उनके घर वालों ने उन्हें बड़े भाई मुज़फ़्फ़र अली की निगरानी में हिस्सा लेने की इजाज़त दे दी।
पहली बार हैदराबाद की महिला टीम ने खेल का बेहतरीन मुज़ाहिरा किया, और फ़ाइनल तक पहुँची। पूरी प्रतियोगिता में साईदा सुलताना को सिर्फ़ एक मैच में हार का सामना करना पड़ा और मात्र 13 साल की उम्र में उन्होंने महिला एकल का राष्ट्रीय ख़िताब जीत लिया। ये उनकी एक बड़ी उपलब्धि थी क्यूँकि वो पहली बार किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थीं। और इसके बाद साईदा सुलताना ने कभी पीछे मुड़ कर नही देखा।
1950 में श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में हुई ऑल इंडिया टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में न सिर्फ़ महिला एकल जीता, बल्कि मिश्रित युगल वर्ग का ख़िताब भी अपने नाम किया। और इसी के साथ टेबल टेनिस में उनकी भारत में रैंकिंग नम्बर-1 पर आ गई, और उन्हें 1951 में विएना (ऑस्ट्रीया) में हुई अंतर्राष्ट्रीय टेबल टेनिस प्रतिस्पर्धा में भारत की नुमाइंदगी के लिए चुना गया।
विएना में उन्होंने 55 मुक़ाबलों में से 40 में जीत दर्ज की जिसमें अमेरिका, हॉलैंड, मिस्र जैसे देशों की नंबर एक खिलाड़ियों को उन्होंने धूल चटा दी। यूरोप के अख़बारों में उनको टेबल टेनिस के जगत का अजूबा कहा जाने लगा। खेल के विशेषज्ञों का मानना था कि 20 की उम्र तक लड़की अविजयी हो चुकी होगी।
1952 में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा बम्बई में हुई यहां भी उनका प्रदर्शन अविस्मरणीय रहा। सभी का मानना था कि अगर उनको थोड़ा और अभ्यास मिले तो वह किसी भी यूरोपीय चैंपियन को हरा सकती हैं। 1954 में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा लंदन में हुई। सईदा इस बार के टूर्नामेंट की सबसे बेहतरीन खिलाडी रही। उस समय के खेल विशेषज्ञों के अनुसार सईद ख़ुद सबसे बेहतरीन थी लेकिन टीम से अच्छा साथ न मिल पाने के कारण भारत चैंपियन न बन सका। याद रहे उन्होंने अपने एकल मुक़ाबले आसानी से जीत लिए थे।
सईद सुलताना 1949, 1950, 1951, 1952, 1953 और 1954 में भारत की टेबल टेनिस राष्ट्रीय चैंपियन रहीं, पर सईदा सुलताना का परिवार 1956 में पाकिस्तान हिजरत कर गया। वो भी पाकिस्तान चली गईं। लेकिन उन्होंने खेल जारी रखा और फिर 1956, 1957 और 1958 में वह पाकिस्तान की टेबल टेनिस राष्ट्रीय चैंपियन रहीं और 1959 में उन्होंने सन्यास ले लिया। 15 सितम्बर 2005 को उनका देहांत हो गया।