जब भारतीय सिपाहीयों को लाईन में खड़ा कर गोलियों से भून डाला गया…

पहली जंग ए अज़ीम यानी प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश और मित्र देशो के गठबंधन के ख़िलाफ़ तुर्की का सलतनत उस्मानीया यानी ओटोमन एम्पायर जर्मनी के साथ जंग में कूद गया था और वहां के उलमाओ ने मित्र देशो के ख़िलाफ़ जिहाद का फ़तवा दिया था, चुंकी ख़िलाफ़त उस्मानीया के नेता मुस्लिम जगत का सबसे बड़े नेता यानी खलीफ़ा माने जाते थे, इस वजह कर पुरे मुस्लिम जगत का समर्थन तुर्की को मिला पर उस समय कई मुसलिम इलाक़े मित्र देशों के कब्ज़े मे थे और वहां के लोग आज़ादी की मांग कर रहे थे।

वही हाल भारत का भी था पर गांधी जी के कहने पर भारतीय सैनिक अंग्रेज़ कि तरफ से लड़ने लगे, जिसमे एक बड़ी संख्या मुसलमानो की थी, पहली जंग ए अज़ीम के दौरान भारतीय सेना जिसे कभी-कभी ब्रिटिश भारतीय सेना कहा जाता है ने पहली जंग ए अज़ीम में यूरोपीय, मध्य पूर्व और भूमध्यसागरीय के युद्ध क्षेत्रों में अपने अनेक डिविज़नों और स्वतंत्र ब्रिगेडों का योगदान दिया था।

इसी वजह कर ब्रिटिश भारतीय सेना के मुस्लिम सैनिको में तुर्की के सलतनत उस्मानीया के ख़िलाफ़ युद्ध अभियान से नाराजगी फ़ैल जाती है जिसे साज़िश के तहत ग़दर क्रांतिकारीयों द्वारा और हवा दी जाती है।

प्रथम विश्व युद्ध को क्रांतिकारियों ने अपने लिए सुनहरा मौका माना। वीरेन्द्र चट्टोपाध्याय के क़ियादत में ज्यूरिख में बर्लिन कमेटी बनाई गई, तो लाला हरदयाल, सोहन सिंह भाखना, मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली ने अमेरिका मे और सिख क्रांतिकारियों ने कनाडा मे ग़दर पार्टी शुरू की और भारत में इसकी कमान जुगांतर पार्टी के नेता बाघा जतिन के हवाले की। इसके बाद तैयार हुआ जर्मन प्लॉट, जर्मनी से हथियार आना था, और पैसा चुकाने के लिए ग़दरीयों ने कई डकैतियां डालीं।

बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, सिंगापुर जैसे कई ठिकानों में 1857 जैसे सिपाही विद्रोह की योजना बनाई गई। फ़रवरी 1915 की अलग-अलग तारीख़ें तय की गईं, पंजाब में 21 फ़रवरी को 23 वीं कैवलरी के सैनिकों ने अपने ऑफ़ीसर्स को मार डाला। लेकिन उसी रेंजीमेंट में एक विद्रोही सैनिक के भाई कृपाल सिंह ने ग़द्दारी कर दी और विद्रोह की सारी योजना सरकार तक पहुंचा दी। सारी मेहनत एक ग़द्दार के चलते मिट्टी में मिल गई।

अगले दिन पंजाब मेल को हावड़ा में लूटने की प्लानिंग थी, लेकिन पंजाब को सीज़ कर दिया गया, ट्रेन कैंसल कर दी गई। आगरा, लाहौर, फिरोज़पुर, रंगून में विद्रोह सूचना लीक हो जाने की वजह से दबा दिया गया। रास बिहारी बोस ने दो दिन पहले यानी 19 फ़रवरी को ही विद्रोह करवाने की कोशिश की, लेकिन उतनी कामयाबी नहीं मिली। मेरठ और बनारस में भी विद्रोही नेता गिरफ़्तार कर लिए गए। केवल सिंगापुर में पांचवी लाइट इनफेंट्री में विद्रोह कामयाब रहा, लेकिन केवल एक हफ्ते तक।

1915 में सिंगापुर का सैन्य-विद्रोह 5वीं लाइट इन्फैंट्री के 850 सिपाहियों द्वारा युद्ध के दौरान सिंगापुर में ब्रिटिश के ख़िलाफ़ एक विद्रोह था जो 1915 के ग़दर षड़यन्त्र का हिस्सा था जिसे रेशमी रुमाल तहरीक की पुरी हिमायत हासिल थी।

तुर्क और जर्मन लोग जानते थे की ब्रीटिश एम्पायर के अंदर 270 मीलियन यानी 27 करोड़ मुसलमान आते हैं और अगर इन्हे ही ब्रीटिश अम्पायर के ख़िलाफ़ भड़का दें तो पहली जंगे अज़ीम यानी प्रथम विश्व युद्ध ब्रीटेन- फ़्रांस से जीती जा सकती है।

दिसम्बर 1915 मे राजा महेन्द्र प्रताप की की क़यादत मे प्रवासी सरकार की स्थापना अफ़ग़ानिस्तान मे की गई थी जिसे तुर्की और जर्मनी जैसे उस वक़्त के बड़े राष्ट्रो ने मान्यता दी थी उसके पीछे का मक़सद भी यही था अंग्रेज़ हारे और हिन्दुस्तान आज़ाद हो जाए।

1915 मे हिन्दुस्तान का मुतावाज़ी यानी समानांतर शासन स्थापित करने का जो फ़ैसला लिया गया था वो भी इन्ही बातो को ख़्याल मे रख कर लिया गया था जिसमे ग़दर मुवमेंट और रेशमी रुमाल मुवमेंट का भरपुर इन्वाल्वमेंट था. भारत की अंतःकालीन सरकार के क़याम मे ग़दर तहरीक और रेशमी रुमाल तहरीक के रहबरो का ही हांथ था।

चाहे वो बरकतुल्लाह भोपाली हों या फिर राजा महेन्द्र प्रताप या फिर मौलाना मोहम्मद मियां मनसुर अंसारी या मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी हों या डॉ़ चम्पक रमण पिल्लै और दीगर मुजाहिद ए आज़ादी ये सब इन्ही दो तहरीक मे से जुड़े हुए थे, जिनका मक़सद किसी भी हाल में भारत को आज़ाद करवाना था।

इन्ही सारी बातों को ज़ेहन मे रख कर तुर्को और जर्मन ने अपने एजेंट को जगह जगह छोड़ दिया जिनका मक़सद था अवाम मे अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ नफ़रत भरना और इसमे ही एक तुर्की नवाज़ शख़्स था ‘क़ासिम मंसुर’

क़ासिम मंसुर एक गुजराती व्यापारी था, जो सिंगापुर के एक कॉफ़ी दुकान का मालिक था, उसने मद्रास से आए पांचवी लाईट इंफ़ैंट्री रेजिमेंट के ब्रीटिश हिन्दुस्तानी सिपाहीयों से मुलाक़ात की और उन्हे अपने रीहाईशगाह पर आने की दावत दी. एक आलिम ए दीन “नुर आलम शाह” की मदद से क़ासिम मंसुर ने मुस्लिम सिपाहीयों मे फ़िरंगीयों के तईं नफ़रत भर दी और और उनके ज़ेहन मे ये बात ड़ाल दी के फ़िरंगीयों के ख़िलाफ़ लड़ना और सुलतान मुहम्मद V का साथ देना उनका मज़हबी फ़रीज़ा भी है।

असल मे अक्तुबर 1914 को पांचवी लाईट इंफ़ैंट्री रेजिमेंट जोके एक मुस्लिम बहुल फ़ौजी दस्ता था को यॉर्कशायर लाईट इंफ़ैंट्री दस्ते की जहग लेने के लिए मद्रास से सिंगापुर भेजा जाता है, जिसे फ़्रांस जाने का आदेश दिया गया था।

पांचवी लाईट इंफ़ैंट्री में एैसे लोगों को भर्ती किया गया था जो मुख्य रूप से पंजाबी मुसलमान थे। कमज़ोर संचार व्यवस्था, लापरवाह अनुशासन और सुस्त नेतृत्व के कारण उनका मनोबल लगातार गिरता जा रहा था। रेजिमेंट को जर्मन शिप एसएमएस, एमडेन के क़ैदियों की रखवाली के लिए तैनात किया गया था।

27 जनवरी 1915 को कर्नल मार्टीन ने ये एलान किया की उनकी बटालियन हांगकांग के लिए रवाना होगी. हालांकि इस तरह की अफ़वाहें उड़नी शुरू हो गयी थी कि वे तुर्क साम्राज्य यानी सलतनत उस्मानीया के साथी मुसलमानों के खिलाफ़ लड़ने के लिए युरोप जा रहे हैं। और इसी बीच सुबेदार दुंदे ख़ान, जमेदार चिशती ख़ान और जमेदार अली ख़ान के उपर इस तरह के अफ़वाह उड़ाने के जुर्म मे कोर्ट आफ़ इंकौयरी बैठाई जाती है।

पांचवी लाईट इंफ़ैंट्री रेजिमेंट के सिपाही 14 फ़रवरी 1915 तक हांगकांग के लिए रवाना होने का इंतज़ार कर रहे थे, तब ही बाग़ीयो ने ये तय कर लिया की अब बग़ावत करना ही होगा। 15 फ़रवरी 1915 की सुबह को अंग्रेज़ अफ़सर के ज़रिया फ़ेयर वेल प्रेड को ख़िताब किया गया और सिपाहीयो को सामान बांधने का हुक्म सुनाया और अगले दिन रवानगी की बात की पर पुरे ख़िताब मे कहीं भी हांगकांग का ज़िक्र नही किया जिससे इस अफ़वाह को और बल मिला जिसमे ये ज़िक्र किया गया था कि ये सिपाही तुर्क साम्राज्य के साथी मुसलमानों के खिलाफ लड़ने के लिए युरोप जा रहे हैं ना के हांगकांग।

जर्मन क़ैदी ओबेरल्युटिनेंट लॉटरबाक ने इन अफ़वाहों को और हवा दी और सैनिकों को अपने ब्रिटिश कमांडरों के ख़िलाफ़ बग़ावत करने के लिए प्रोत्साहित किया।

और उसी शाम को 3:30 मे सिपाही इस्माइल ख़ान ने एकमात्र शॉट की फ़ायरिंग कर बग़ावत शुरू होने का संकेत दिया। टांगलिन बैरकों में मौजूद अधिकारियों की हत्या कर दी गयी और एक अनुमान के अनुसार 850 से अधिक विद्रोहियों का जत्था सड़कों पर घूमा करता था और अपने सामने पड़ने वाले किसी भी यूरोपीय को मार डालता था।

सिपाहीयो ने ख़ुद को 3 गुट मे बांट लिया एक को तंगलीम बैरक से हथियार लुटने का काम सौंपा गया था। तंगलीम बैरक मे पहले से ही 309 जर्मन सिपाही क़ैद थे और साथ मे जर्मन शिप एसएमएस के नाविक भी थे. बाग़ीयो ने बिना चेतावनी दिये ही कैंप के गार्ड और अफ़सर को मार डाला और मरने वालों में लेफ़टिनेन्ट जेवरल लव. मांटगोमेरी, सरजेंट जी.वल्ड, कौरपोरल डी.मैकगिलवेरी, कौरपोरल जी.ओ.लॉसन, लाएंस कौरपोरल जे.जी.ई हर्पर, कैमरॉन, एफ़.एस. ड्राईडेल्स, ए.जे.जी हॉल्ट एच.एम.एस कैडमस इत्यादि नाम के अंग्रेज़ अफ़सर थे।

बाग़ी सिपाही चाहते थे की जर्मन उनके साथ मिल कर हथियार उठाएं पर एका एक हुए हमले से जर्मन घबरा गए थे उनमे से कुछ ही लोग हथियार उठाने को तैयार हुए जबके अधिकतर ने हिन्दुस्तानीयो के हांथो से बंदुक़ लेने से इंकार कर दिया। 35 के आस पास जर्मन भाग निकले और बाक़ी सब बैरक मे ही रुके रहे।

ये विद्रोह दस दिनों तक जारी रहा और सिंगापुर वौलेंटियर आर्टिलरी के जवानों, अतिरिक्त ब्रिटिश इकाइयां और जोहोर के सुलतान और दिगर मित्र देशों के सहयोगियों की सहायता से इस बग़ावत को दबा दिया गया।

कुछ बागी सिपाही जंगलो में भागने में सफ़ल हो जाते हैं, कुछ झड़प में मार दिए जाते है लेकिन ज़्यादातर मित्र देशो की संयुक्त सेना के द्वारा बंदी बना लिए जाते है बाद में बगावत के इलज़ाम में इन सभी को सज़ा दी जाती है।

मार्च 1915 को औटरम रोड सिंगापुर के किनारे खड़ा कर के हवालदार सुलैमान, नायक अब्दुल रज़्जाक, नायक ज़फ़र अली ख़ान सहीत 45 से अधिक सिपाहीयों को बग़ावत के जुर्म में लाईन में खड़े कर के गोलीयों से भुन दिया जाता है। इनके साथ उस गुजराती करोबारी “क़ासिम मंसुर” को भी गोली मार दी जाती है जिसने सबसे बग़ावत की पहल की थी।

कुल मिलाकर 36 विद्रोहियों को बाद मेे और मार डाला गया और 77 अधिकारियों को जिलावतन कर दिया गया जिसमे अधिकतर को 7 से 20 साल की कै़द की सज़ा दी गई। वहीं जिलावतन किये गए लोगो मे “नुर आलम शाह” भी थे, जिन्होने सिपाहीयों का ब्रेनवाश किया था, चुंके नुर आलम शाह एक धार्मिक व्यक्ति थे इस लिए इन्हे मार कर अंग्रेज़ मुसलमानो को और नही भड़काना चाहते थे जबके वो इस साज़िश के कर्ता धर्ता थे।

वैसे बग़ावत रुका नही क्युंके साल 1915 में ही 130 बलुच रेजीमेंट रंगून में बग़ावत कर देती है। मामले को छुपाया जाता है, कितने लोग मरे; ये मंज़र ए आम पर नही लाया जाता है।

साल 1917 में मांडालय कांसप्रेसी केस में 3 सिपाहीयों को बग़ावत के जुर्म में सज़ा ए मौत मिलती है। जिसमे जयपुर के रहने वाले मुस्तफ़ा हसन, लुधियाना के अमर सिंह और फ़ैज़ाबाद के अली अहमद का नाम शामिल था। इनके इलावा जिन और लोगों पर बग़ावत का शक था वो हैं मुकसुद्दीन अहमद, ग़यासउद्दीन अहमद, अब्दुल क़तार, नसरुद्दीन और उनकी बेटी रज़िया ख़ातुन।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.