सिंध प्रांत के सुक्कुर के अमरोत शरीफ़ में सन 1857 में पैद हुए मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा थे। मौलाना ने ना सिर्फ़ रेशमी रुमाल तहरीक को उसकी उंचाईयों तक पहुंचाया बलके हिजरत तहरीक मे भी नुमाया किरदार अदा किया। सिंध प्रांत के होने के बावजुद आपने क़बीलाई और अफ़ग़ानिस्तान के इलाक़े को अपनी इंक़लाबी सरग्रमियों के लिए उपयोग किया और 1 दिसम्बर 1915 को काबुल में आरज़ी हुकुमत ए हिन्द बनने में अहम किरदार अदा किया।
मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती ने तहरीक ए ख़िलाफ़त में ना सिर्फ़ हिस्सा लिया बलके इस तहरीक को ज़मीनी सतह पर उतार कर उस्मानी ख़िलाफ़त की मदद भी की। उस्मानी ख़िलाफ़त की मदद के लिए उन्होने पैसे के साथ अपने शागिर्दों की एक पुरी फ़ौज भेजी जिसे ‘जुनुद ए रब्बानी’ के नाम से जाना गया।
मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती ने अपने जीवन में कई बड़े काम अंजाम दिए उसमें एक बड़ा काम क़ुरान शरीफ़ का सिंधी ज़ुबान में तर्जुमा करना भी है। इसके साथ ही उन्होने शेरो शाईरी पर भी ध्यान दिया। वो इंक़लाबी नग़मे लिखते थे जिससे उनके राष्ट्रावादी और क़ौमप्रस्त होने के सबुत मिलते हैं। उन्होने खुल कर अंग्रेज़ो की मुख़ालफ़त की। इसके लिए उन्होने शेरो शायरी के इलावा अख़बार और प्रेस का सहारा लिया। उन्होने अपने इलाक़े मे एक प्रेस स्थापित किया और उससे हर माह ‘इख़्वान उल मुस्लिमीन’ नाम के एक इंक़लाबी रिसाले निकालने शुरु किए।
ख़िलाफ़त तहरीक में नुमाया किरदार अदा करने वाले मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती जकोबाबाद में ‘ख़िलाफ़त कांफ़्रेंस’ की सदारत करते हुए मशहुर ‘हिजरत तहरीक’ का रिज़ुलुशन पास करवाया। इसके इलावा उन्होने जो बड़े काम अंजाम दिए उसमे से एक है 1919 में वजुद में आने वाली ‘जमियतुल उल्मा ए हिन्द’; ये मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती की ही मेहनत का नतिजा है जो ये तंज़ीम वजुद में आई.
मौलाना सैयद ताज महमुद अमरोती का इंतक़ाल 5 नवम्बर 1929 को हुआ; जिसके बारे में कहा जाता है के उन्हे ज़हर दिया गया था, जिससे वोह काफ़ी कमज़ोर हो गए थे, और धीरे धीरे बिमारी में मुब्तला हो गए; जिस वजह कर 72 साल की उमर में उनका इंतक़ाल हो गया।