मुहम्मद ज़ाहिद
देश आज़ाद हुआ ही था और आखें खोले तिरंगे में लिपटी सुनहरी सुबह को निहार ही रहा था कि ब्रिग्रेडियर उस्मान को आजादी के कुछ दिनों के अंदर ही कश्मीर के झांगर में तैनात 50 पैराशूट ब्रिगेड को कमांड करने के लिए भेजा गया।
जमीलन बीबी और फारुख का बेटा उस्मान जब बनारस के हरिश्चद्र इंटर कालेज में पढने जाता था तो मोहल्ले की खुबसूरत लड़कियां अपने झज्जे पर खड़ी हो जाती थीं।
मगर क्या मजाल कि उस्मान अपनी आँखें ऊपर करे, कहते हैं जब ब्रिगेडियर उस्मान की आँखें जब ऊपर होती थी दुश्मन की आँखें हमेशा के लिए बंद हो जाती थी।
खुबसूरत आँखें मासूम चेहरा और लोहे के जैसा कलेजा । उस्मान के लिए देश ही सब कुछ था , उसका परिवार ,उसका घर बार,उसकी दुनिया।
यह एक बात उन्होंने बार बार साबित की , लेकिन इन्तेहाँ तब हुई जब मऊ के बीबीपुर गाँव में जन्में उस्मान ने कश्मीर को पाने के लिए और हिंदुस्तान के लिए एक दिन अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय जब पूरे देश में दंगे भड़के हुए थे सेना का भी विभाजन हो रहा था तब 10 वीं बलूच रेजिमेंट के अधिकारी उस्मान ने हिन्दुस्तान में ही रहने का फैसला किया। जबकि उसके सभी मुस्लिम साथी पाकिस्तान जा रहे थे।
तब पाकिस्तानी हुक्मरानों लियाकत हुसैन और मुहम्मद अली जिन्ना ने ब्रिग्रेडियर उस्मान को मुसलमान और इस्लाम की दुहाई दी तथा ब्रिगेडियर उस्मान को आऊट आफ टर्न सेना का प्रमुख बनाने का भी आफर दिया लेकिन उन्होंने उससे इंकार कर दिया।
यह होती है देश से मुहब्बत जिसे अंग्रेजों से माफी माँग कर जेल से छूटे और आजादी के दिवानों के खिलाफ झूठी गवाही देने वालों के वंशज कभी नहीं कर पाएंगे।
खैर
भारत-पाकिस्तान के बटवारे में बलूच रेजीमेन्ट पाकिस्तान के हिस्से में गयी तो ब्रिगेडियर उस्मान डोगरा रेजिमेंट में चले गए।
नहीं भुला जाना चाहिए यह वही रेजिमेंट है जिसके बेस पर उरी में पिछले दिनों पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला किया था।
खैर ,
इसके पहले की ब्रिगेडियर उस्मान कश्मीर के झांगर में पहुँचते आश्चर्यजनक तौर से पाकिस्तानी सेना गैरिसन की तैनारी से घबरा गई और लगभग 6 हजार सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर कब्ज़ा कर लिया था।
बगल में ही नौशेरा सेक्टर था उस्मान ने नौशेरा को दुश्मन से बचाए रखने के लिए जबरदस्त व्यूह रचना रची उन्होंने सबसे पहले उत्तर दिशा में स्थित कोट पहाड़ी को पाकिस्तानियों के कब्जे से मुक्त कराया। यह वो पहाड़ी थी जिससे समूचे नौशेरा पर निगाह रखी जा सकती थी।
बिग्रेडियर उस्मान के सफल नेतृत्व में एक फरवरी 1948 को भारतीय सेना ने कोट और नौशेरा के आस पास के इलाके पर आक्रमण किया और सुबह तक समूचे नौशेरा पर अपना कब्ज़ा जमा लिया।
सबसे जबरदस्त सफलता तब मिली जब फरवरी 1948 के अंतिम सप्ताह में लेफिटनेंट जनरल के एम् करियप्पा के नेतृत्व में बनाई गई योजना का सफल क्रियान्वयन करके बिग्रेडियर उस्मान ने झांगर पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया।
ब्रिग्रेडियर उस्मान की वीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समूचे कश्मीर में उन्हें “नौशेरा का शेर” कहा जाता था।
झांगर पर हिन्दुस्तानी कब्जे के बाद वो बार बार उस पर दुबारा कब्जे की योजना बनाता रहा। पाकिस्तान ने मई 1948 में अपनी नियमित सेना झांगर के पास लगा दी।
3 जुलाई 1948 को झांगर में भीषण युद्ध हुआ जिसमे एक हजार पाकिस्तानी सैनिक मारे गए और लगभग उतने ही घायल हुए इधर ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व वाली 50 पैराशूट ब्रिगेड के महज 33 जवानों की मौत हुई और 102 घायल हुए उसी युद्ध के दौरान 25 पाउंड का एक शेल मेजर उस्मान के ऊपर जा गिरा और भारत माँ का यह बेटा शहीद हो गया।
ब्रिगेडियर उस्मान के आखिरी शब्द थे :- “मैं मर रहा हूँ लेकिन हमारा इलाका हमारा है ,हम दुश्मन के गिर जाने तक लड़ेंगे“।
Namaz E Janaza Of #BrigadierMohammadUsman Lead by Maulana Abul Kalam Azad.
In Funeral Procession Pandit Jawaharlal Nehru (First PM), Indira Gandhi, C Rajgopalachari (1st Indian Governor General), Dr. Rajendra Prasad (First President of India) were present there. @IndiaHistorypic pic.twitter.com/pVhmJQmND5
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) July 3, 2018
तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटेन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मौलाना आजाद , शेख अब्दुल्ला और नेहरू की पहली कैबिनेट के तमाम लोग शहीद ब्रिगेडियर उस्मान के जनाज़े और अंतिम संस्कार में शामिल हुए और जामिया मीलिया इस्लामिया में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
Pandit Jawaharlal Nehru (First PM), Indira Gandhi, C Rajgopalachari (First Indian Governor General ), Maulana Azad & Dr. Rajendra Prasad (First President of India) in Funeral Procession of #BrigadierMohammadUsman.#IndianArmy @iamrana @IndiaHistorypic @_nehruvian pic.twitter.com/ksRLpy3ag4
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) July 3, 2018
अंतिम संस्कार में देश के प्रधानमंत्री की मौजूदगी का सम्मान पाने वाले वह आजतक इस देश के पहले और आखरी सैनिक हैं।
ब्रिगेडियर उस्मान की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तानी ने उनके सर पर पूरे 50 हजार रुपयों का इनाम रखा था और तब लियाकत हुसैन ने कहा था
“काश कि एक ब्रिगेडियर उस्मान हमारे पास होता”
यदि ब्रिगेडियर उस्मान 12 दिन और जीवित होते तो अपना 36 वाँ जन्मदिन मना रहे होते परन्तु 3 जुलाई 1948 को नौशेरा का यह अविवाहित शेर नौशेरा के उन 148 अनाथ बच्चों को लावारिश छोड़ कर इस दुनिया से चल बसा जिनकी शिक्षा और पालन पोषण वह अपने वेतन से किया करते थे।
सोचता हूं कि आज देश के मुसलमानों को पाकिस्तान भगाने के ऐलान पर ब्रिगेडियर उस्मान की रूह क्या महसूस करती होगी ?
रहबर जौनपुरी ने क्या खूब कहा
हमने कब हिंद के ख्वाबों की तिजारत की है।
हमने कब मुल्क के ख्वाबों से बगावत की है।।
हमने कब साज़िशी लोगों की हिमायत की है।
हमने हर हाल में दस्तूर की इज़्ज़त की है।।
हम ज़माने की निगाहों में ख़तावार नहीं।
फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।।
हिंद के सर की लगाई नहीं हमने बोली।
बेच कर राज़ नहीं हमनें भरी है झोली।।
हमने खेली नहीं इंदिरा के लहू से होली।
हमने बापू पे चलाई नहीं हर्गिज़ गोली।।
हम जफाकश है जफाकेशो जफाकार नहीं।
फिर भी हमसे ये गिला है कि वफादार नहीं।।