3 जुलाई 1892 को पंजाब के लुधियाना में पैदा हुए हिन्दुस्तान की आज़ादी के अज़ीम रहनुमा रईस उल अहरार मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने ‘इस्लाम ख़तरे में है’ के नारे के पीछे छिपे हुए स्वार्थ का ख़ुलासा किया था। वो लुधियाना के मशहूर मुजाहिद ए आज़ादी मौलाना शाह अब्दुल क़ादिर लुधियानवी के पोते हैं, जिन्होने 1857 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ फ़तवा दिया था।
दारुल उलूम देवबंद से अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने मौलाना अब्दुल अज़ीज़ की बेटी बीबी शफ़तुनिसा से शादी कर ली। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और खिलाफ़त आंदोलन और असहयोग आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
पहली बार गिरफ़्तार
ख़िलाफ़त तहरीक और असहयोग आंदोलन के दौरान मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने 1 दिसंबर 1921 को अपने प्रेरक भाषण से लोगों को ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह के लिए उकसाया और पहली बार गिरफ़्तार किए गए।
Maulana Habib-ur-Rehman Ludhianvi :- A Great Freedom Fighter who fought against the British Empire.
तब से, उन्होंने कई बार कार कोठरी की यातनाओं का सामना किया और देश की विभिन्न जेलों में क़रीब 14 साल बिताए। उनके मित्रों और परिजनों को भी कारावास का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने भी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया था। उनकी पत्नी बीबी शफ़तुनिसा, जो स्वंय भी एक स्वतंत्रता सेनानी थीं, ने अपने परिवार पर ब्रिटिश पुलिस के द्वारा किए गए क्रूर दमन के बावजूद उन्हें समर्थन दिया।
Great Freedom Fighter of India, Maulana Habib-ur-Rehman Ludhianvi was direct lineal descendant of Shah Abdul Qadir Ludhianvi, the freedom fighter against British Colonial rule. "this is the only family which has been continuously fighting against the British from 1857 to 1947." pic.twitter.com/Z2Yf9o1MUR
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) July 3, 2018
जमियत-उलमा-ए-हिंद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौलाना लुधियानवी, 1929 में मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की सलाह पर मजलिस-ए-अहरार (द सोसायटी ऑफ़ फ़्रीमेन) की स्थापना की।
भगत सिंह के परिवार को शरण
1929 में भगत सिंह ने केंद्रीय सभा में बम फेंके, उसके बाद से कोई भी उनके परिवार के सदस्यों को शरण देने के लिए आगे नहीं आया था क्योंकि लोगों को ब्रिटिश दमन का भय था। तब मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी ने भगत सिंह के परिवार के सदस्यों को एक महीने तक आश्रय प्रदान किया। साथ ही उन्होने नेताजी सुभाष चंद्रा बोस की भी अपने घर पर मेहमान नवाज़ी की थी।
1929 में जब ब्रिटिश अधिकारियों ने लुधियाना के घास मंडी चौक पर हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग पानी के बर्तन का इस्तेमाल किया, तो उन्हें हिंदू, मुस्लिम और सिख कार्यकर्ताओं की सहयोग से इसे ख़त्म किया, और एक पर्चा लगवाया ‘सबका पानी एक है’ जिसके लिए उन्हें जेल भेजा गया।
उन्होंने 1931 में शाही जामा मस्जिद के पास लगभग तीन सौ ब्रिटिश अधिकारियों और पुलिस की उपस्थिति में भारतीय ध्वज को फहराया, जिसके लिए उन्हें गिरफ़्तार किया गया।
भारत की आज़ादी की ख़ातिर मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी ने शिमला, मैनवाली, धर्मशाला, मुल्तान, लुधियाना सहीत देश की विभिन्न जेलों में क़रीब 14 साल बिताए।
पाकिस्तान बनने का विरोध
वो आख़िर आख़िर तक पाकिस्तान बनने का विरोध करते रहे; पर जब राष्ट्र को 1947 में विभाजित किया गया था, तो उन्होंने शत्रुतापूर्ण माहौल के कारण अपने दोस्तों की सलाह पर लुधियाना छोड़ दिया और दिल्ली में शरणार्थी शिविरों में शरण ली।
इससे लुधियानवी युगल को गंभीर मानसिक आघात हुआ हालांकि उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दी गई थी, उन्होंने सलाह को अस्वीकार कर दिया था और अपने मूल स्थान लुधियाना में रहने को सोंचा, और वहां भी उन्हें कटु अनुभव का सामना करना पड़ा।
Pandit Jawaharlal Nehru, Maulana Habib-ur-Rehman Ludhianvi with Master Tara Singh, Satguru Pratap Singh and Saifuddin Kitchlu at a convention at Bhaini Sahib near Ludhiana in 1931.(From left) #MaulanaHabibUrRehmanLudhianvi@IndiaHistorypic pic.twitter.com/W95g5LIsiA
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) July 3, 2018
उनके पंडित नेहरू से तालुक़ात बहुत अच्छे रहे और आज़ादी बाद मुस्लिम दुनिया से भारत के अच्छे तालुक़ात के लिए मौलाना लुधियानवी ने बहुत मेहनत की, और इसके लिए वो 1952 में साऊदी अरब गए।
2 सितम्बर 1956 को अपने अंतिम क्षण तक देश और लोगों की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता के साथ लड़ते रहने वाले मौलाना हबीब-उर-रहमान लुधियानवी का निधन हो गया। उन्हे पंडित नेहरू के इलतेजा पर दिल्ली के जामा मस्जिद के पास मौजूद क़ब्रिस्तान में दफ़न किया गया।
Syed Naseer Ahmad के इस लेख को Md Saifullah ने हिन्दी में अनुवाद किया है