साक़िब सलीम
15 अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है और 1757 से लेकर 1947 तक भारत अंग्रेज़ राज के अधीन रहा था ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन तब भी आम भारतीय के मन में भारत की स्वतंत्रता को लेकर ढेरों मिथ्यायें हैं।
इस कारण नेहरू ने किया था आधी रात को देश को संबोधित :
सरकारी मंत्रणा के दौरान लार्ड मॉउन्टबेटन ने भारत/पाकिस्तान की आज़ादी का दिन 15 अगस्त निर्धारित कर दिया था। इस का कारण था कि ये उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था क्योंकि दो वर्ष पूर्व जापानी सेना ने 15 अगस्त को आत्मसमर्पण का फ़ैसला लिया था। तब मॉउन्टबेटन अंग्रेज़ सेना के एशियाई अध्यक्ष थे। लेकिन जब ये आदेश भारतीय जनता के सामने आया तो पता चला कि 15 अगस्त को भारतीय ज्योतिष अशुभ मानते हैं जिस कारण कई भारतीय नेताओं ने भी इस तारीख़ का विरोध किया। अब क्या किया जाये ? तब ये सुझाव दिया गया कि सत्ता हस्तांतरण का ये कार्य मध्य रात्रि यानि 15 अगस्त की रात 12 बजे से थोड़ा पहले शुरू किया जाये और जैसे ही 12 बजेंगे ठीक तब ही सत्ता हस्तांतरण हो जायेगा। ये समय ज्योतिष के अनुसार भी शुभ था और मॉउन्टबेटन को भी इस से ऐतराज़ न था।
15 अगस्त 1947 को पूरी आज़ादी नहीं मिली थी:
15 अगस्त 1947 की मध्यरात्री भारत को वाइसराय से आज़ादी मिली थी पर भारत का राजा जॉर्ज छः बना रहा था। भले वो केवल काग़ज़ों में था। 15 अगस्त को मॉउन्टबेटन ने गवर्नर जनरल की और अन्य भारतीयों ने अन्य मंत्रिपद की जो शपथ ली थी वो राजा के नाम में ली गयी थी। फ़र्क़ ये था कि पहले ‘इंग्लैंड के नरेश’ की शपथ होती थी परंतु अब ये ‘नरेश’ की शपथ थी। भारत पूरी तरह आज़ाद 26 जनवरी 1950 को ही हुआ। यहाँ ग़ौर करने वाली बात ये है कि पाकिस्तान को ये पूर्ण स्वातंत्र्य 1956 में जा कर प्राप्त हुआ।
भारत आज़ाद 15 अगस्त को हुआ पर पाकिस्तान-भारत विभाजन 17 अगस्त को :
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा खींचने और बंटवारे को अंतिम रूप देने की ज़िम्मेदारी सायरिल रेडक्लिफ को मिली थी। उसके अनुसार वो 13 अगस्त से पहले ये काम पूरा नहीं कर सकता था। मॉउन्टबेटन का मानना था कि अगर 15 अगस्त से कुछ दिन पहले लोगों के सामने ये बंटवारा आया तो ख़ूनी संघर्ष तय है। वो चाहता था कि भारतीय काम से कम 15 अगस्त ख़ुशी से मना लें और बंटवारे की भयावहता का अंदाज़ा उनको दो दिन बाद हो इसलिए बंटवारे की सीमाएं बाद में घोषित की गयी। इस कारण बंगाल और पंजाब की सीमा पर कई स्थानों पर नागरिकों को ये साफ़ नहीं था कि वे पाकिस्तान का झंडा फहरायें या कि भारत का।