1845 मे बिहार का एक असफ़ल विद्रोह; जो होने से पहले ही दबा दिया गया।

पटना में स्वतंत्रता संग्राम की तैयारियाँ वर्ष 1805 से ही प्रारम्भ हो गई थी। उस समय उलमाए सादिक़पुर की गतिविधियों का केन्द्र पटना ही था। जिसकी क़यादत इनायत अली, विलायत अली और दिगर लोग कर रहे थे। ये लोग अंग्रेज़ो और उसके पिठ्ठुओं से लड़ने के लिए मुजाहिदीन लड़ाको को तैयार कर ख़ुफ़िया तौर पर सरहदी इलाक़े (आज कल पाकिस्तान मे है) भेजा करते थे।

पर एक बड़े आंदोलन की चिंगारी सबसे पहले 1845 मे दिखी जब नेओरा के रहने वाले मुन्शी राहत अली ने पीर बख़्श और दुर्गा प्रासाद से मिल कर उन्हे अंग्रेज़ी फ़ौज के ख़िलाफ़ बग़ावत करने के लिए तैयार किया मगर रेजिमेंट के ही एक हवालदार ने अंग्रेज़ो के प्रती वफ़ादारी दिखाते हुए सारे राज़ खोल दिये जिसके बाद पीर बख़्श और दुर्गा प्रासाद गिरफ़्तार कर लिए गए। उनके पास से ज़मीनदारो और बिहार के बा-असर लोगो के ख़त पकड़े गए जिसमे कई लोगो का राज़ खुल गया। इसमे कुछ ख़त बाबु कुंवर सिंह के भी थे।

27 दिसम्बार 1845 को पटना के कलेक्टर ने हुकुमत ए बंगाल के सिक्रेटरी को ख़त लिख कर ये इत्तेला दी के शाहबाद का एक ज़मींदार भी इस साज़िश मे मुलव्विस है।

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पीर बख़्श और दुर्गा प्रासाद ने अपने जुर्म का एक़रार कर लिया और उनके बयान पर मुन्शी राहत अली, और पटना के शहरी ख़्वाजा हसन अली गिरफ़्तार कर लिए गए। इन दोनो पर मुक़दमा चला और फ़ैसला 1846 को आया पर इक़रारी मुजरिम (पीर बख़्श और दुर्गा प्रासाद) ने इन दोनो (मुन्शी राहत अली और ख़्वाजा हसन अली) को पहचानने से इंकार कर दिया जिस वजह कर ये लोग रिहा कर दिये गए। पर पीर बख़्श और दुर्गा प्रासाद सज़ा हुई। सज़ा के नाम पर इनके साथ क्या सलुक हुआ ये खोज का विशय है।

पटना के लॉ अफ़िसर मौलवी नियाज़ अली, सरकारी वकील बरकतउल्लाह और दरोग़ा मीर बाक़र को बरख़ास्त कर दिया जाता है। जगदीशपुर के बाबु कुंवर सिंह, डुमरी के मौलवी अली करीम और पुलिस जमादार अपने कद्दावर असर की वजह कर बच गए।

ख़्वाजा हसन अली :- पटना युनिवर्सिटी के कुलपती और बिहार विधानपरिषद के अध्यक्ष रहे जस्टिस ख़्वाजा मुहम्मद नूर के दादा थे।
मौलवी अली करीम :- लेडी इमाम के नाम से मशहूर अनीस इमाम के परदादा थे और अनीस इमाम सर अली इमाम की पत्नी थीं; जिन्होने बिहार निर्मान मे अहम भुमिका अदा की।
मुन्शी राहत अली :- सर अली इमाम इन्ही के ख़ानदान के फ़र्द थे।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.