21 अक्टूबर, 1943 को नेताजी ने सिंगापुर की कैथे बिल्डिंग में एक समारोह के दौरान ‘आरजी-हुकूमत आजाद हिंद’ की स्थापना की घोषणा कर दी. आरजी एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ होता है अल्पकालीन. समारोह के दौरान एक पूरे कैबिनेट की घोषणा की गई. नेताजी खुद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री बने. जिस देश में आज औरतों के अधिकारों का रोज हनन हो रहा है उस देश की इस सरकार में महिला मामलों का अलग मंत्रालय था जिसकी मंत्री डॉक्टर लक्ष्मी स्वामीनाथन बनीं. रास बिहारी बोस को मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया. इसके अलावा ए.एम सहाय, एस.ए अय्यर, जे.के भोंसले, लोगनाथन, अहसान कादिर, एन.एस भगत, एम.जेड किआनी, अजीज़ अहमद, शाहनवाज़ ख़ान, गुलज़ारा सिंह, करीम ज्ञानी, देबनाथ दास, सरदार ईशर सिंह, डी एम खान, ए येलप्पा और ए.एन सरकार ने भी मंत्री-पद की शपथ ली थी.
Netaji #SubhasChandraBose announcing the Proclamation of the formation of the Provisional Government of Azad Hind at Cathay Building, 21 October 1943.
21 अक्तुबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार का ऐलान करते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस
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इस सरकार की अपनी प्रशासनिक सेवा थी. प्रोपेगंडा मिनिस्ट्री थी जो अखबार और रेडियो के द्वारा देशभक्ति का संचार करने का काम करती थी. स्वास्थ्य मंत्रालय भी था और शिक्षा मंत्रालय भी. बहुत ही कम लोगों को यह जानकारी है कि इस सरकार की राष्ट्रीय भाषा ‘हिंदुस्तानी’ थी. यह आम बोलचाल की हिंदी भाषा ही थी जिसको तकनीकी कारणों से रोमन लिपि में लिखा जाता था. इस सरकार का राष्ट्रगान ‘जण-गण-मन’ का एक हिंदुस्तानी रूपांतरण था. राष्ट्रध्वज तिरंगा ही था लेकिन उसके बीच में अशोक चक्र के स्थान पर छलांग मारता हुआ बाघ था. एक भावात्मक माहौल में नेताजी ने शपथ ली थी.
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने बोलना शुरू किया कि, ‘खुदा को याद रखते हुए, मैं सुभाष चंद्र बोस हिंदुस्तान और उसके 38 करोड़ लोगों को आजाद करने की कसम खाता हूं. मैं आजादी की यह जंग अपनी आखिरी सांस तक लड़ता रहूंगा…’
यह बोलते-बोलते उनकी आवाज भर्राने लगी और आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने रुमाल से आंख पोंछ कर, आवाज को स्थिर रखते हुए, आगे बोलना शुरू किया, ‘मैं हमेशा हिंदुस्तान का नौकर बना रहूंगा और उसकी 38 करोड़ जनता की सेवा करता रहूंगा. यह मेरे लिए सबसे बड़ा कर्तव्य है. आजादी को पा लेने के बाद भी उस आजादी की हिफाजत के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूंद न्योछावर करने को हमेशा तैयार रहूंगा.’
नेताजी ने अपनी कसम निभाई. वो आखिरी सांस तक आजादी के लिए लड़े. और हमने उन पर राजनीति की. कभी न उनके विचार जाने और न उनके सपनों का हिंदुस्तान.
साक़िब सलीम का मूल लेख FirstPost पर छप चुका है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं!