20वीं सदी के अज़ीम लीडर, बेबाक मुबल्लिग़, दानिश्वर, मुफ़क्किर क़ुरान और बहुत बड़े स्कॉलर जिन्होंने एशिया और यूरोप की यूनिवर्सिटी में अपने रिकॉर्ड क़ायम करके दुनिया के बड़े बड़े मुफ़क्किर और स्कॉलर को हैरत में डाल दिया था।
#AllamaMashriqi founded #KhaksarMovement, aiming to advance the condition of the masses irrespective of any faith, sect, or religion, a social movement based in Lahore, established in 1931 to free India from the rule of the British & establish a #HinduMuslim government in India. pic.twitter.com/vDEK2M3UJj
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 25, 2018
ऐसी सलाहियतों का मालिक के साथ जहाँ हमारा रवेय्या गैर ज़िम्मेदाराना रहा, वहीं हिन्द व पाक के दानिश्वरों ने अपने कलम की सियाही अल्लामा मशरिक़ी पर खर्च करना भी गवारा नही समझा।
Historic photo of respected Allama Mashriqi taken in Peshawar in 1920's. #Mashriqi is sitting (5th from left).
This photo was first published in a book entitled, "#MahatmaGandhi & My Grandfather, #AllamaMashriqi: A Groundbreaking Narrative of India's Partition"
By : Nasim Yousaf pic.twitter.com/gNoYLgLTHE— Heritage Times (@HeritageTimesIN) August 25, 2018
25 अगस्त 1888 को अल्लामा मोहम्मद इनायत उल्लाह ख़ान मशरिक़ी की पैदाइश हुई, आपके वालिद खान अता मोहम्मद था, जिनकी तूती हिन्दुस्तान के इल्मी व सियासी गलियारों में गूंजती थी, देल्ही की हुकूमत के वक़्त मुग़लों से रिश्ते ख़ानदान के बड़े अच्छे थे, आला ओहदे पर फ़याज़ लोग खानदान में से थे, कई गाँव की ज़मींदारी मिली हुई थी।
मोहम्मद इनायत उल्साह ख़ान की शुरुआती तालीम का बंदोबस्त घर से शुरू हुआ और इनके काबिलयत के झंडे स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के मैदानों में लगते चले गये।
क्रिश्चन कॉलेज के प्रो एस एन गुप्ता ने आपकी क़ाबिलयत के जौहर को तस्लीम करते हुए कहा था ‘सूबा पंजाब में इनायत उल्लाह जैसा मैथमेटिक्स का कोई तालिब इल्म मौजूद नही’।
14 साल की उम्र में जब शायरी शुरू की तो कई शोअरा ने शेर कहने बंद कर दिए, तो 19 साल की उम्र में मास्टर डिग्री हासिल करने का रिकॉर्ड बना दिया।
अपनी क़ाबिलियत के जिस झंडे को उन्होंने पंजाब में फहराया था वो झंडा इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में भी लहलहाता दिखा और डिग्रियों के ढेर लगा दी के क्राइस्ट कॉलेज के प्रिसिपल को कहना पड़ गया … “कैंब्रिज की पूरी तारिख़ गवाह है इतने कम वक़्त में इतने एजाज़ और इतने अवार्ड किसी एक को नही मिले और न ही कैंब्रिज की तारीख़ में ऐसा कोई तालिब इल्म देखा गया”।
12 जून 1912 को रोज़नाम लन्दन टाइम्स लिखता है … “ये बात नामुमकिन समझी जाती है कि कोई पांच साल में चार अलग अलग सब्जेक्ट में डिग्री हासिल कर ले, लेकिन इनायत उल्लाह ने इस नामुमकिन को मुमकिन कर दिया”।
इनकी सायंसी रिसर्च का ये आलम था की आईंस्टीन जैसे साइंसदां को अल्लामा मशरिक़ी की पीठ थपथपानी पड़ गई।
अपनी पढाई मुकम्मल करने के बाद अल्लामा मशरिक़ी इंडियन एजुकेशनल सर्विस के हेड बनाये गये, फिर कई कॉलेज के प्रिंसिपल के रूप में अपनी ख़िदमात देते रहे।
अल्लामा मशरिक़ी ने 1924 में “तज़किरा ” जैसी बेमिसाल किताब लिख डाली, जिसने दुनिया के बड़े बड़े इल्मी रहनुमाओ के होश उड़ा दिए, उस्मानिया यूनिवर्सिटी में इस किताब को सिलेबस में शामिल करने की मांग होने लगी, 1925 में नोबेल प्राइज़ कमिटी ने “तज़किरा” को नोबेल प्राइज़ के लिए नोमिनेट किया लेकिन शर्त रखी की इस किताब का तर्जुमा उर्दू से किसी यूरोपियन ज़बान में की जाए, अल्लामा मशरिक़ी ने उनके इस शर्त को ठुकरा दिया।
In 1924, #AllamaMashriqi authored a book, #Tazkira, in which he tried to prove that Islam was a ‘modern and scientific faith’. The book was nominated for a #NobelPrize, but it failed to win it when Mashriqi refused to translate it into English or in any other European language. pic.twitter.com/ookLApPcqB
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अल्लामा मशरिक़ी मुलाज़मत के दौरान भी अंग्रेज़ों से झगड़ जाते और कभी अपने उसूल से समझौता नही करते, धीरे धीरे अल्लामा मशरिक़ी हुर्रियत पसंद के करीब आने लगे फिर एक वक़्त एैसा भी आया जब अल्लामा ने सरकारी नौकरी को ठोकर मार दी।
c. 1930s: Khaksar Movement Camp (Gujrat, Punjab)#AllamaMashriqi, a world-renowned mathematician, Islamic scholar, and founder of the #KhaksarMovement (Khaksar Tehrik) founded the Khaksar Movement (#KhaksarTehrik) in 1930 to remove his nation from the clutches of foreign rule. pic.twitter.com/ctiM5DbNk8
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1930 में अल्लामा ने ख़ाकसार तहरीक की बुनियाद रखी, इसकी पहली जमात 1931 में क़ायम हुई और बग़ैर किसी के माली मदद के चंद सालों में लाखों लोगों के कंधे पर बेल्छा रख तमाम मज़हब और फ़िक्र के लोगों को एक सफ़ में खड़ा कर दिया।
Al-Islah was the weekly newspaper of the #KhaksarMovement. It was started in 1934 by the #AllamaMashriqi. It was printed and distributed from Lahore, India, and contained Mashriqi’s speeches as well as articles that reflected the philosophy and message of the #KhaksarTehrik. pic.twitter.com/W64m8JubXq
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ख़ाकसार तहरीक के परचम और मरकज़ के तले हिन्दुस्तान के लाखों लोगों ने अपने सीने और बाज़ु पर मोहब्बत का निशान लगाकर एक ही सफ़ में खड़े होकर इत्तेहाद्द व एक्जहती का अमली नमूना पेश किया।
1) Mahatma Gandhi (extreme right) at a #Khaksar Camp.
2) #MahatmaGandhi and #KhanAbdulGhaffarKhan with a member of the Khaksar Tehrik (Khaksar Movement) of Allama Mashriqi. (Peshawar, May 06, 1938)#AllamaMashriqi #KhaksarMovement #ArmyofSpades#KhaksarTehrik pic.twitter.com/ui2OGbLph3
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अल्लामा मशरिक़ी जहाँ एक तरफ कांग्रेसियों की मुखालफ़त करते थे वहीं लीग को भी खरी खोटी सुना देते, अल्लामा मशरिक़ी कई बार जेल गये, कभी ग़ुलाम हिन्द में तो कभी पाकिस्तान की हुकुमत में, अल्लामा पर जिन्ना की हत्या की कोशिश का भी इलज़ाम लगा, तो लियाकत अली ख़ान की हत्या का आरोप भी, अल्लामा के ख़िलाफ़ सियासी साजिश भी ख़ुब रची गयी।
#AllamaMashriqi’s son, Ehsanullah Khan Aslam, died of injury due to the tear gas grenade that hit him during the police raid at the #Khaksar headquarters on March 19, 1940.#KahaksarMovement #KahksarTehrik pic.twitter.com/2iUYUv9ynM
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अल्लामा को ख़ाकी से इस क़दर मोहब्बत हो गयी थी के आखिरी साँस तक खाकी लिबास में ही लिपटे रहे, अल्लामा मशरिक़ी की वफ़ात 27 अगस्त 1963 हुई, उनकी वफ़ात पर हर दोस्त व दुश्मन की आँखे नम थी, हर इंसान इस बात का ऐतराफ़ कर रहा था के दुनिया एक आला दिमाग़ से महरूम हो गयी, इस हक़ीकत से भी लोग आशना थे की शाएद ही अब कोई शख़्सयत पैदा हो जिसके अन्दर इतनी सारी ख़ुबियाँ मौजूद हो।
Image of the Khaksar Tehrik's currency/promissory note issued in British India.#KhaksarMovement #AllamaMashriqi pic.twitter.com/S19RYr8ZsL
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ज़िन्दा क़ौम अपने हीरो को याद करती है, उनकी यादगारें क़ायम करती है, उनके नज़रियात और फ़िक्र को परवान चढ़ाती है, बदनसीब होते है वो जो अपने इंकलाबी रहनुमा की क़ुर्बानी फ़रामोश कर देते है, अल्लामा मशरिक़ी से सियासी व दिनी नज़रियात से किसी को एख़्तलाफ़ हो सकता है लेकिन हुसूल आज़ादी के लिए बेमिसाल जद्दोजहद, क़ुर्बानी और फिरंगी साम्राज्य को ललकारना और तमाम मज़हब के लोगों को एक सफ़ में खड़ा कर देना इन सब बातों से शऊर रखने वाला इंसान इनकार नही कर सकता।