अंजुमन इस्लामिया :- मौलाना आज़ाद द्वारा स्थापित की गई संस्था; जिसने रांची शहर का रूप बदल दिया।

 

15 अगस्त 1917 को मौलाना आज़ाद ने अंजुमन इस्लामिया की स्थापना की! आज अंजुमन इस्लामिया का मुख्य कार्यालय अभी मेन रोड स्थित अंजुमन प्लाजा में स्थित है. मौलाना आजाद के समय अंजुमन इस्लामिया का दफ़्तर कर्बला चौक से संचालित होता था. कर्बला चौक से गुदरी चौक जानेवाले रास्ते में आजाद हाई स्कूल के बगल में इमारत का ढांचा आज भी मौजूद है,  जिससे अंजुमन का कार्यालय कर्बला चौक में होने का प्रमाण मिलता है. इमारत के दरवाजे के ऊपर सफेद संगमरमर के पत्थर पर इमारत अंजुमन इस्लामिया अंकित है. इसमें वर्ष 1920 लिखा है. इस कार्यालय का निर्माण मौलाना आजाद की देखरेख में ही प्रारंभ हुआ था. यह इमारत भी मदरसा इस्लामिया की तर्ज पर लाल रंग का था. मौलाना आजाद ने रांची में मदरसा इस्लामिया की स्थापना अपर बाजार में की थी.

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मदरसा के सुचारू रूप से संचालन के लिए अंजुमन इस्लामिया, रांची को कायम किया गया. अंजुमन इस्लामिया का कार्यालय कर्बला चौक में रखा गया. यह कार्यालय एक तल्ला था. इसका क्षेत्र विस्तृत था. वर्तमान में इस इमारत का अवशेष के रूप में द्वार का कुछ हिस्सा ही बचा है, जिससे इस इमारत के वजूद में होने का सबूत मिलता है. जिस जगह पर इमारत थी, वहां अब कई दुकानें बन गयी है.

अंजुमन का यह कार्यालय कब और क्यों हटा? उस जगह को बचाया क्यों नहीं गया?  इसका कोई स्पष्ट और प्रामाणिक उत्तर किसी के पास नहीं है. अंजुमन की जिम्मेदारी थी कि वह कौम की इस विरासत को सही ढंग से संभाल कर रखती, लेकिन अंजुमन की बागडोर संभालनेवाली अब तक किसी भी कमेटी ने इस दिशा में कोई ध्यान नहीं दिया. जिस कारण एक ऐतिहासिक धरोहर शहर से मिट सा गया है. कर्बला चौक में लगभग सात दशक पुरानी पान की दुकान चलानेवाले मो रियाज के अनुसार पहले यहां मुशायरा व अन्य प्रोग्राम होते रहते थे. मौलाना को साल में दो बार याद किया जाता था.

नजरबंद मौलाना आजाद रांची में अप्रैल 1916 में आये और उन पर नजरबंदी 22 अक्तूबर 1922 को लगी. नजरबंदी के दौरान भी मौलाना बाहर निकलते थे. लोगों से मिलते थे. जामा मस्जिद में जुमा का खुतबा देते थे.

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प्रवास के दौरान मौलाना ने कई पुस्तकें भी लिखी. अपनी बहुचर्चित आत्मकथा इंडिया वींस फ्रीडम में मौलाना ने रांची प्रवास का वर्णन किया है. मदरसा इस्लामिया मदरसा इस्लामिया में पढ़ाई का सिलसिला 1917 से शुरू हो चुका था. जामा मस्जिद के मुअज्जिन मौलवी जियाउल हक ने अपर बाजार स्थित अपनी जमीन ( जिसकी कीमत उस समय 8200 रुपये थी) मदरसा के लिए वक्फ कर दिया. हालांकि भवन निर्माण के लिए शिलान्यास का कार्यक्रम 27 जनवरी 1918 को हुआ. भवन निर्माण में हिंदू भाइयों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. जिसमें राय बहादुर ठाकुरदास, अधिवक्ता मुंशी जगपत पाल सहाय, नागरमल मोदीं आदि प्रमुख है.

वर्तमान स्थिति में मौलाना आजाद द्वारा स्थापित अंजुमन इस्लामिया का क्षेत्र आज काफी विस्तृत हो चुका है. मदरसा के अतिरिक्त मौलाना आजाद कॉलेज, आजाद स्कूल, अंजुमन प्लाजा, जामा मसजिद, रातू रोड कब्रिस्तान आदि की देखरेख भी अंजुमन द्वारा की जाती है. मदरसा इस्लामिया अब मेन रोड स्थित रहमानिया मुसाफिर ख़ाना में हस्तांतरित हो गया है. एक शताब्दी के सफ़र के बाद भी इन संस्थाओं के विकास को गति देने की आवश्यकता है.

15 अगस्त 1917 को अंजुमन इस्लामिया की स्थापना हुई. एक सितंबर 1917 को मौलवी अब्दुल करीम की अध्यक्षता में हुई बैठक में रांची में मदरसा इस्लामिया की स्थापना का निर्णय लिया गया. मौलाना ने इस अवसर पर भाषण भी दिया. इसकी स्थापना के पीछे रांची के लोगों में शैक्षिक जागरूकता पैदा करना था. इसे एक मुहिम के रूप में शुरू किया गया था. इसके तहत भविष्य में विभिन्न प्रकार के शैक्षणिक कार्य किये जाने थे.

मौलाना आजाद के रांची प्रवास के दौरान हाजी इमाम अली उनसे बेहद प्रभावित थे और गहरे रूप से जुड़े थे. छात्र जीवन में इमाम अली जामा मस्जिद में रह कर ही अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे. उन्हें मौलाना के साथ काफी समय बिताने का गौरव प्राप्त है. मौलाना के साथ नागरमल मोदी, पीसी मिश्रा, गुलाब तिवारी आदि का भी जुड़ाव था. प्रसिद्ध इतिहासकार केके दत्ता ने अपनी पुस्तक छोटानागपुर के इतिहास में लिखा कि मौलाना आजाद के जाने के बाद इमाम अली स्वतंत्रता संग्राम में इतने सक्रिय हुए कि तत्कालीन सुप्रीटेंडेंट ऑफ पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में इमाम अली को एक खतरनाक बागी करार दिया.

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