मेजर सोमनाथ शर्मा : जब तक थी साँस लड़े वो, फिर अपनी लाश बिछा दी…

 

बात पुरानी तो है, लेकिन इतनी भी पुरानी नहीं कि उसे भूला दिया जाये। बस इकहत्तर साल पहले की ही तो बात है…आज ही का दिन, इकहत्तर वर्ष पहले। पाकिस्तानी सेना और कबाईलियों की मिली-जुली पाँच सौ से भी ज्यादा फौज के खिलाफ़ वो अपने गिने-चुने पचपन जवानों के साथ भिड़ गये थे। वो थे सोमनाथ शर्मा- मेजर सोमनाथ शर्मा, भारत के सर्वोच्च वीरता-पुरूस्कार परमवीरचक्र के प्रथम विजेता।

सोच कर सिहर उठता है मन कि उस रोज़…उस 3 नवंबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा अगर अपनी बहादुर डॆल्टा कंपनी के पचास-एक जवानों के साथ श्रीनगर एयर-पोर्ट से सटे उस टीले पर वक़्त से नहीं पहुँचे होते तो भारत का नक्शा कैसा होता…!

26 अक्टूबर 1947 को जब बड़ी ज़द्दोजहद और लौह-पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों के बाद आख़िरकार कश्मीर के तात्कालिक शासक महाराज हरी सिंह ने प्रस्ताव पर दस्तख़त किये तो भारतीय सेना की पहली टुकड़ी कश्मीर रवाना होने के लिये तैयार हुई। भारतीय सेना की दो इंफैन्ट्री बटालियन 4 कुमाऊँ{FOUR KUMAON} और 1 सिख{ONE SIKH} को इस पहली टुकड़ी के तौर पर चुना गया। 27 अक्टूबर 1947…जब भारतीय सेना की पहली टुकड़ी ने श्रीनगर हवाई-अड्डॆ पर लैंड किया, इतिहास ने ख़ुद को एक नये तेवर में सजते देखा और इस तारीख को तब से ही भारतीय सेना में ‘इंफैन्ट्री-दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

मेजर सोमनाथ शर्मा इसी कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन{FOUR KUMAON} की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे और उन दिनों अपना बाँया हाथ टूट जाने की वजह से हास्पिटल में भर्ती थे। जब उन्हें पता चला कि 4 कुमाऊँ युद्ध के लिये कश्मीर जा रही है, वो हास्पिटल से भाग कर एयरपोर्ट आ गये और शामिल हो गये अपनी जाँबाज़ डेल्टा कंपनी के साथ।

उधर कबाईलियों का विशाल हुजूम क़त्ले-आम मचाता हुआ बरामुला शहर तक पहुँच चुका था। उनकी बर्बरता की निशानियाँ और दर्द भरी कहानियाँ अभी भी इस शहर के गली-कुचों में देखी और सुनी जा सकती है। …और जब दुश्मनों की फ़ौज को पता चला कि भारतीय सेना की अतिरिक्त टुकड़ियाँ भी श्रीनगर हवाई-अड्डे पर लैंड करने वाली है, तो वो बढ़ चले उसे कब्ज़ाने। उस वक़्त मेजर सोमनाथ अपनी डेल्टा कंपनी के साथ क़रीब ही युद्ध लड़ रहे थे जब उन्हें हुक्म मिला श्रीनगर हवाई-अड्डे की रखवाली का…और फिर इतिहास साक्षी बना शौर्य, पराक्रम और कुर्बानी की एक अभूतपूर्व मिसाल का जिसमें पचपन जांबाज़ों ने पाँच सौ से ऊपर दुश्मन की फ़ौज को छः घंटे से तक रोके रखा जब तक कि अपनी सेना की अतिरिक्त मदद पहुँच नहीं गयी। मेजर सोमनाथ के साथ 4 कुमाऊँ की वो डेल्टा-कंपनी पूरी-की-पूरी बलिदान हो गयी। मृत्यु से कुछ क्षणों पहले मेजर सोमनाथ द्वारा रेडियो पर भेजा गया आख़िरी संदेश कुछ यूँ था…

“I SHALL NOT WITHDRAW AN INCH BUT WILL FIGHT TO THE LAST MAN & LAST ROUND”{मै एक इंच पीछे नहीं हटूंगा और तब तक लड़ता रहूँगा, जब तक कि मेरे पास आख़िरी जवान और आख़िरी गोली है}

मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च वीरता पुरुस्कार “परमवीर चक्र” से नवाज़ा गया और वो इस पुरुस्कार को पाने वाले प्रथम भारतीय बने। संयोग की बात देखिये 4 कुमाऊँ की इसी डेल्टा-कंपनी के संग युद्ध के दौरान शहीद हुये पाकिस्तानी सेना के कैप्टेन मोहम्मद सरवर को भी मरणोपरांत पाकिस्तान का सर्वोच्च वीरता पुरुस्कार “निशान-ए-हैदर” से सम्मानित किया गया था और वो भी इस पुरुस्कार को पाने वाले प्रथम पाकिस्तानी थे ।

[…संगीन पर धर का माथा सो गए अमर बलिदानी]