“दो बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हुए बादशाह खान की जिंदगी और कहानी के बारे में लोग कितना कम जानते हैं। 98 साल की जिंदगी में 35 साल उन्होंने जेल में सिर्फ इसलिए बिताए ताकि इस दुनिया को इंसान के रहने की एक बेहतर जगह बना सकें।”
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जंग ए आज़ादी का अज़ीम रहनुमा जिसे ना तो आज़ाद भारत ने अपना माना वहीं पाकिस्तान ने दुशमन ही माना, जिस शख़्स ने पुरा जीवन हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के लिए वक़्फ़ कर दिया उसे मरने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में दो ग़ज़ ज़मीन नसीब हुई। आख़िरी बार महात्मा गांधी से मिले तो गांधी ने ख़ान से कहा – अब भारत का मोह त्याग दो, अपने देश की सेवा करो। वह पाकिस्तान में ज़्यादा तर कैद ही में रहे।
महात्मा गांधी को छह-सात वर्ष तक जेल में रहना पड़ा, सू की को 15 वर्ष तक और नेल्सन मंडेला को 27 वर्ष तक। लेकिन यह सब खान अब्दुल गफ्फार खान के संघर्ष के सामने कुछ नहीं, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर हिस्सा ब्रिटिश राज और फिर पाकिस्तान की जेलों में गुजार दिए। अपनी पूरी जिंदगी मानवता की कल्याण के लिए संघर्ष करते रहे ताकि एक बेहतर कल का निर्माण हो सके। सामाजिक न्याय, आजादी और शांति के लिए जिस तरह वह जीवनभर जूझते रहे, वह उन्हें नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर और महात्मा गांधी जैसे लोगों के बराबर खड़ा करती हैं। बादशाह खान की विरासत आज के मुश्किल वक्त में उम्मीद की लौ जलाती है।
खान गफ्फार खान (सीमान्त गांधी) 1969 में भारत की प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विशेष आग्रह पर इलाज के लिए भारत आये। हवाई अड्डे पर उन्हें लेने श्रीमती गांधी और जे पी नारायण गए । खान जब हवाई जहाज से बाहर आये तो उनके हाथ में एक गठरी थी जिसमे उनका कुर्ता पजामा था । मिलते ही श्रीमती गांधी ने हाथ बढ़ाया उनकी गठरी की तरफ – “इसे हमे दीजिये ,हम ले चलते हैं” खान साहब ठहरे, बड़े ठंढे मन से बोले – “यही तो बचा है ,इसे भी ले लोगी” ?
जे पी नारायण और श्रीमती गांधी दोनों ने सिर झुका लिया । जे पी नारायण अपने को संभाल नहीं पाये उनकी आँख से आंसू गिर रहे थे । बटवारे का पूरा दर्द खान साब की इस बात से बाहर आ गया था । क्योंकि वो बटवारे से बेहद दुखी थे । वे भारत के साथ रहना चाहते थे ,लेकिन भूगोल ने उन्हें मारा ।
लेकिन भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खां की भारत में कोई विरासत है क्या? दिल्ली की जिस गफ्फार मार्किट का नाम खां साहब के नाम पर रखा गया है, कहते हैं वहां दो नंबर का सामान मिलता है।
Majid Majaz का लेख