बापू नाडकर्णी : एक नंबर के कंजूस, नहीं मक्खीचूस, बल्कि महा-मक्खीचूस।

 

वीर विनोद छाबड़ा

क्रिकेट की दुनिया में एक स्पिन जादूगर हैं, बापू नाडकर्णी। एक नंबर के कंजूस, नहीं मक्खीचूस, बल्कि महा-मक्खीचूस। नहीं नहीं। आप ग़लत समझ रहे हैं। पैसा खर्च करने का मामले में कतई नहीं। बल्कि रन देने के मामले में। लेफ़्ट आर्म स्पिनर और बल्लेबाज़।

1964 के मद्रास टेस्ट में भारत के 457 पर 7 विकेट डिक्लेयर के सामने इंग्लैंड की हालत खस्ता थी। उनकी टीम के कई स्टार खिलाड़ी होटल को अस्पताल बनाये थे। कोई तेज बुख़ार से पीड़ित तो कोई पेट दर्द से कराह रहा था। यों भी ठंडे मुल्क में रहने के आदी अंग्रेज़ों को भारत का मौसम रास कभी नहीं आया। कई खिलाड़ी किसी ने किसी बहाने टूर स्किप कर देते थे। बहरहाल, तीसरे दिन जब 63 रन पर 2 विकेट से इंग्लैंड ने खेलना शुरू किया तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, विकेट पर वक़्त गुज़ारने की, इसके दो फ़ायदे थे, फॉलो ऑन से बचेंगे और इस बीच खिलाडियों की सेहत सुधर जायेगी। क्रीज़ पर विल्सन और जॉन बोलस थे। केन बैरिंगटन का अगला नंबर था। बापू नाडकर्णी को गेंद थमाई गयी। उन्होंने उस दिन और फिर अगले दिन कुल मिला कर 32 ओवर डाले, रन दिए सिर्फ़ 05 और 27 मैडन थे, इनमें से 21 ओवर लगातार ऐसे थे, जिनमें एक भी रन नहीं दिया। ये आज भी वर्ल्ड रिकॉर्ड है। लेकिन अफ़सोस रहा कि उन्हें एक भी विकेट नहीं मिला। दूसरी इनिंग में उनका एनालिसिस था – 6 ओवर, 4 मैडन, 6 रन और 2 विकेट। इसी सीरीज़ के कानपुर टेस्ट में नाडकर्णी ने पहली पारी में 52 और दूसरी पारी में 122 नाबाद रन बना कर मैच ड्रा करवाया था।

दरअसल बापू नाडकर्णी विकेट लेने के लिए नहीं बल्कि किफ़ायती गेंदबाज़ी के लिए मशहूर थे। उनका पूरा नाम रामचंद्र गंगाराम नाडकर्णी है। 04 अप्रैल 1933 को महाराष्ट्र के नासिक में जन्मे बापू आज 85 साल के हैं और स्वस्थ हैं। उनके फर्स्ट क्लास कैरियर की शुरूआत रोहटनबारिया ट्रॉफी से हुई थी। ये इंटरवर्सिटी टूर्नामेंट होता था। देश की टॉप यूनिवर्सिटी हिस्सा लेती थीं। बापू इसमें पुणे के लिए खेले। उन्हें पहला टेस्टं खेलने का मौका न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध फ़िरोज़शाह कोटला दिल्ली में मिला। वो भी इसलिए कि वीनू मांकड़ बीमार थे। गज़ब का प्रदर्शन रहा उनका। 68 पर नॉट आउट लौटे और फिर बिना विकेट लिए 57 ओवर डाले। मगर इस बढ़िया प्रदर्शन के बावजूद बापू को अगले टेस्ट से हटा दिया गया। मांकड़ फिट हो गए थे।

पाकिस्तान के विरुद्ध बापू ने कानपुर टेस्ट में पहली पारी में 32 ओवर्स में 23 रन दिए और इसमें 24 मैडन रहे। दूसरी पारी में भी 24 मैडन रहे और 24 रन दिए 34 ओवर में। 1964-65 सीरीज़ का मद्रास टेस्ट उनकी गेंदबाज़ी के लिए फिर यादगार रहा। पहली पारी में 31 रन पांच विकेट और दूसरी पारी में 91 पर 6 विकेट। लेकिन बिशन सिंह बेदी जैसे स्पिनर्स के सामने आने के कारण बापू की उपेक्षा होने लगी। एक लंबे अरसे बाद क्रिकेट बोर्ड को उनकी याद आई, और वो 1967-68 के न्यूज़ीलैंड टूर के लिए चुन लिए गए। वेलिंगटन टेस्ट में उन्होंने अपनी योग्यता एक बार फिर सिद्ध की – 43 रन 6 विकेट। भारत ने ये टेस्ट 08 विकेट से जीता था।

न्यूज़ीलैंड से वापसी पर बापू ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दी। दरअसल, वो समझ चुके थे, उनका दौर ख़त्म हो चुका है। उन्होंने 41 टेस्ट में 88 विकेट लिए और 1414 रन बनाये। उनके कैरियर उनका इकॉनमी रेट 1.67 रहा। यहां वो विश्व में चौथे नंबर पर हैं।

बापू नाडकर्णी जैसा महा-मक्खीचूस गेंदबाज़ चिराग़ लेकर भी आजतक नहीं मिला और शायद मिलेगा भी नहीं।

२८ सितंबर २०१८

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