कभी था नवाबों का दफ़्तर, अब पर्यटकों के लिए तरस रहा भोपाल का गोलघर

वैसे तो भोपाल एक खुबसूरत और ऐतिहासिक शहर है जिसके कण-कण में इतिहास की कहानियां दर्ज हैं। नवाबों के शासन काल को करीब से देखने वाला यह शहर अपनी खूबसूरती और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों की वजह से दुनिया भर में मशहूर रहा है।

आज हम पुराने भोपाल के एक ऐतिहासिक धरोहर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका नाम ‘गुलशन-ए-आलम’ है लेकिन अपनी बनावट की वजह से यह “गोलघर” के नाम से मशहूर है।

भोपाल के गोलघर के बारे में ज्यादा जानकारी लोगों को नहीं है इसीलिए यह इतिहास का हिस्सा होते हुए भी ऐतिहासिक नहीं है।

भोपाल रियासत में 4 नवाब बेगम की हुकूमत 157 साल तक रही जिसमें तीसरी नवाब शाहजहां बेगम का शासनकाल सबसे बेहतरीन माना जाता है। पुराने भोपाल के शाहजहानाबाद इलाके में स्थित इस ऐतिहासिक इमारत को भोपाल की महिला शासक नवाब शाहजहां बेगम के द्वारा सन 1868 से 1901 के बीच बनवाया गया था।

गोलघर का डिजाइन और वास्तुकला

गोलघर को बनाने की जिम्मेदारी शाहजहां बेगम ने एक अंग्रेज़ इंजीनियर कूक और मुंशी हुसैन खान (कंस्ट्रक्शन इंजीनियर) उनको दिया।

गोलघर ज्योमैट्री डिजाइन का एक नायाब नमूना है। इसमें एक ही कमरा है जिसके बीचों बीच में खड़े होने पर इसके चारों तरफ लगे पत्थर 360 डिग्री पर दिखाई देते हैं।

गोलघर में ज्योमैट्रिकल आर्किटेक्चर का इस्तेमाल हुआ है जिसके पीछे एक कहानी है की गोलघर के निर्माण के समय सिटी वाटर वर्क्स इंजीनियर ओस्टर कुक छुट्टियों में इंग्लैंड गए हुए थे। वहां वह वेनैसा आर्किटेक्चर से प्रभावित होकर गोलघर को बनाया जिसमें ज्योमेट्री, दरवाजे और खिड़कियों की सिमेट्री मेन फीचर्स थे। जिसकी वजह से यह इमारत शहर के बाकी इमारतों से अलग है।

बाहर से गोलघर में अंदर जाने के लिए पूरे 32 दरवाजे हैं। सिमिट्रिकल डिजाइन में बने यह लकड़ी के दरवाजे बिल्कुल एक जैसे दिखाई देते हैं।

कमरे और दरवाजों के बीच खूबसूरत गोलाकार खंभे हैं। इन खंभों पर चटाईयां लटकाई गई है जिसमें खूबसूरत नक्काशी और खास तौर पर जरदौजी के काम को दिखाया गया है जो नवाबी शासनकाल में अपने चरम पर थी। इन चटाइयों पर पानी और खुशबू छींटा जाता था ताकि उनसे टकराकर कर जब हवा अंदर आए तो ठंडक हो।

गोलघर का गुंबद बाहर से जितना बेहतरीन दिखाई देता है अंदर से उतना ही नायाब है।

गोलघर के अंदर

अंदर की तरफ गुंबद में बेहतरीन कारीगरी की गई है। रंगों का कंबिनेशन और फ्लोरल पैटर्न जबरदस्त तरीके से की गई है। और इस गुंबद के ठीक बीच में लटक रहा है एक झूमर जो खास तौर पर गोलघर के लिए फ्रांस से मंगवाया गया था।

गोलघर के अंदर बीचों-बीच नवाबी काल के भोपाली बटुओं को रखा गया है जो उस समय पूरे भारत में मशहूर था।

इसके अलावा नवाब परिवार के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तन जग और टिफिन रखे हैं। टिफिन और जग पीतल से बने थे लेकिन इसके ऊपर चांदी का पानी चढ़ा हुआ था।

कमरे के अंदर दीवारों पर नवाबी हुक्मरानों और उनके परिवारों की यादों को सहेज कर रखा गया है।
फोटोग्राफ और पेंटिंग्स उस समय के शासनकाल को बेहतरीन तरीके से बयां करता दिख रहा है।

अंदर गोल कमरे में चार दरवाजे हैं और दरवाजों के साथ सीढ़ियां हैं जो छत को जाती है।

गोलघर किस काम के लिए बनवाया

गोल घर का निर्माण पूरा होने के बाद नवाब शाहजहां बेगम ने अपना सेक्रेटेरिएट (खास दफ्तर) शौकत महल से बदल कर गोलघर में करवा दिया। पूर्व में यह भोपाल शासन का मुख्य कार्यालय था।

नवाबी शासनकाल के अफसरों के काम करने के लिए गोलघर के चारों तरफ कमरे बनवाए और खास 12 अफसरों के रहने के लिए आलीशान कमरे की बनवाए गए जिसे 12 महल कहा गया।

नवाब शाहजहां बेगम के बाद उनकी बेटी सुल्तान जहां बेगम का भी सेक्रेटेरिएट रहा उनके बाद उनके वारिसों ने भी इसे दफ्तर के रूप में इस्तेमाल किया।

चिड़िखाना के रूप में गोलघर

कुछ अर्सों तक गोलघर चिड़ियों का भी आशियाना बना। तरह-तरह के चिड़ियों को लाकर यहां रखा गया और दाना पानी का पूरा इंतजाम नवाबी शासन की तरफ से किया गया। इसलिए इस जगह को कुछ लोग चिड़िखाना भी कहते हैं।

एक बार की बात है जब नवाब शाहजहां बेगम इंग्लैंड की महारानी क्वीन विक्टोरिया को एक तोहफा देने का सोच रही थी जो बिलकुल नायाब हो लेकिन उसे ऐसी चीज नहीं मिल रही थी।


इसी बीच एक दिन वह बगीचे में टहल रही थी तो उस वक्त उसकी नजर बुनकर पक्षी यानी कि बया पक्षी के घोसले पर पड़ी।
हल्के पीले रंग का बया या बुनकर प्रजाति का यह नन्हा सा पक्षी, घास के छोटे-छोटे तिनको और पत्तियों को बुनकर लालटेन की तरह लटकता बेहद ही खुबसूरत घोंसले का निर्माण करता है इसलिए इसे बुनकर पक्षी और ट्रेलर बर्ड भी कहा जाता है। उनकी घोसलों को देखकर शाहजहां बेगम को एक जबरदस्त आइडिया आया।

उन्होंने बुनकर पक्षियों को गोलघर में रखना शुरू किया और उनके दाना-पानी का पूरा इंतजाम करवाया।

नवाबी शासनकाल में बेगमों के पहनने वाले कपड़ों में कामदानी और कमख्वाब के कपड़े हुआ करते थे जिसमें सोने और चांदी की तारों का इस्तेमाल किया जाता था।

बेगम के आदेश से उन कपड़ों के टुकड़ों और तारों को गोलघर में फैला दिया गया जिसमें से बुनकर पक्षियों ने सोने और चांदी के तारों को कपड़े से निकालकर अपना घोंसला बनाया। सोने और चांदी के तारों से बने ये घोंसले रात की रोशनी में काफी खूबसूरत हुआ करती थी।

उन घोंसलों में जो सबसे खूबसूरत और बेहतरीन घोंसला था उसे तोहफे के तौर पर क्वीन विक्टोरिया को भिजवा दिया गया।
वह तोहफा क्वीन विक्टोरिया को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने उसे इंग्लैंड के शाही घर बकिंघम पैलेस में संजो कर रखवा दिया और कहा जाता है कि आज भी वहां मौजूद है।

गोलघर से जुड़ी हुई एक और कहानी लोग कहते हैं कि एक समय यहां पर अनाज रख दिया जाता था और रात में जरूरतमंद मुफ्त में अनाज ले जाते थे। मान्यता यह भी है की अनाज बांटने वाले आंखों से अंधे हुआ करते थे ताकि बेझिझक जरूरतमंद अनाज ले जा सके।

वक्त गुजरता गया और गोलघर को रेलवे पुलिस हेड क्वार्टर और ट्रेनिंग सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। गोलघर की हालत धीरे-धीरे काफी जर्जर होती गई लेकिन बाद में मध्य प्रदेश सरकार के पुरातत्व विभाग ने मरम्मत करवाया और संग्रहालय के तौर पर बदल दिया।

 

Loवर्तमान में गोलघर के इंचार्ज प्रमोद शर्मा ने बताया कि भोपाल के इतिहास का यह महत्वपूर्ण धरोहर है और सरकार द्वारा इसे और बेहतरीन बनाने की प्रक्रिया चल रही है।

वहां काम करने वाले कर्मचारियों ने बताया कि इतना महत्वपूर्ण धरोहर होने के बावजूद लोग बहुत कम आते हैं दिन में मुश्किल से 4-5 लोग ही आते हैं जिसमें स्थानीय लोग नहीं होते हैं। किसी दिन ज्यादा भी होते हैं और किसी किसी दिन तो कोई भी पर्यटक नहीं आता। ज्यादातर पर्यटक दूसरे राज्यों के होते हैं।

वर्तमान में यह धरोहर पर्यटकों की राह देख रहा है।