जब मुज़फ़्फ़रपुर में एक युरोपियन क्लब के मुक़ाबले में खुला मुस्लिम क्लब

युरोपियन लोगों ने बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में एक युरोपियन क्लब 1885 में क़ायम किया, जिसमें किसी भी भारतीय का दाख़िल होना मना था। तब 1912 में जब बिहार एक अलग राज्य के रूप में वजूद में आ गया, तब अक्तूबर 1912 को मुस्लिम क्लब मुज़फ़्फ़रपुर की बुनियाद ख़ान बहादुर मौलवी सैयद अहमद हुसैन की काविशों की वजह कर पड़ा। वो पेशे से वकील थे।

उन्होंने इस क्लब के लिए अपना हज़ारों रुपय का दो तल्ला मकान, फ़र्निचर और हज़ारों रुपय की किताबों को डोनेट करने के इलावा हर महीने का 51 रुपय का ख़र्चा भी दिया। वो इस क्लब के सेक्रेटेरी थे। इस क्लब के मेंबर मुज़फ़्फ़रपुर के सभी मुस्लिम वकील, ओहदादार और सरकारी मुलाज़िम थे। लेकिन धार्मिक रूप से यहाँ किसी तरह की पाबंदी नही थी। इसलिए मुज़फ़्फ़रपुर के हिंदू मुलाज़िम भी यहाँ आकर अपना वक़्त देते। यहाँ उर्दू, अंग्रेज़ी अख़बार और जर्नल रेगुलर आता। लोग अपनी जानिब से क्लब को किताब, अख़बार, जर्नल आदि डोनेट भी करते थे। यहाँ गहमा गहमी रहा करती थी। यहाँ तरह तरह के सामाजिक कार्य, मीटिंग और प्रोग्राम हुआ करते थे। भारत की जंग ए आज़ादी के दौरान भी कई मीटिंग यहाँ हुई। लेकिन वक़्त के साथ साथ धीरे धीरे इस क्लब का ज़वाल होता चला गया।

इसका अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं की कभी इस क्लब में चपरासी, क्लार्क, भिश्ती, दरबान जैसे कई तरह के मुलाज़िम हुआ करते थे और आज इस क्लब की इमारत तक अपनी शकल में मौजूद नही है। सब ख़त्म हो गया। अलग अलग दहाई में उर्दू को बिहार की राजकीय भाषा बनाने के लिए यहाँ कई कार्यक्रम हुए। पर आज ये क्लब कहीं दिखता नही है। ख़ान बहादुर मौलवी सैयद अहमद हुसैन की ये विरासत ज़मीन मफ़ियाओं की नज़र चढ़ चुकी है।

रही बात ख़ान बहादुर मौलवी सैयद अहमद हुसैन की, तो वो भिकनपुर जो पहले मुंगेर ज़िला का हिस्सा हुआ करता था, के रहने वाले थे। मुज़फ़्फ़रपुर में रह कर वकालत करते थे। बड़े मशहूर वकील थे। मुस्लिम वकीलों में सबसे सीनियर थे। सियासत में भी हिस्सा लेते थे। मुज़फ़्फ़रपुर में मुंसिपल कमीशनर भी बने और कुछ समय के लिए मुज़फ़्फ़रपुर के मुंसिपल कॉर्परेशन के उपाध्यक्ष भी रहे। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के मेंबर भी लम्बे समय तक रहे। उनके काम को देख कर उस समय की हुकूमत ने उन्हें 1916 में ख़ान बहादुर का लक़ब दिया। 1921 में तिरहुत डिविज़न मोहम्मडन सीट से बिहार उड़ीसा काउन्सिल के मेम्बर भी चुने गए। वैसे वो इससे पहले भी काउन्सिल के मेम्बर थे, लेकिन वो डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के मेंबर के रूप में।

जोगिरा इस्टेट के नवाब सैयद तक़ि द्वारा निर्मित मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला स्कूल, जिसके उत्थान में मौलवी सैयद अहमद हुसैन ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

उन्होंने 1917-24 तक बिहार उड़ीसा काउन्सिल के मेम्बर के रूप में काउन्सिल के काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। स्वस्थ, शिक्षा जैसे मुद्दों पर ख़ूब सवाल किए और उनकी कोशिश की वजह कर बिहार के कई इलाक़ों में स्कूल और डिस्पेन्सरी खुला। सदन में बिहार के अंदर उर्दू, फ़ारसी और अरबी भाषा को मिला कर एक अलग इग्ज़ैमिनेशन बोर्ड बनाने का प्रस्ताव लाया, जिसका समर्थन सदन के हिंदू सदस्य ने भी किया। साथ ही बिहार में संस्कृत कॉलेज खोलने की भी पहल की। असेंबली के सदस्य रहते हुए उनका इंतक़ाल हो गया।

आज न ही मुज़फ़्फ़रपुर में ख़ान बहादुर मौलवी सैयद अहमद हुसैन को जानने वाले लोग हैं और न ही आज मुज़फ़्फ़रपुर में उनकी निशानी के रूप में मुस्लिम क्लब मौजूद है। जो कि बहुत ही अफ़सोसनाक है।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.