हिन्द – पाक का एक गुमनाम हीरो डाक्टर मुहम्मद इक़बाल शैदाई एक एैसी शख़्सयत का नाम है जिसने अपनी ज़िंदगी अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ लड़ने में गुज़ार दी, अपने ज़िंदगी के ख़ूबसूरत और बेहतरीन पलों में अपने वतन से दूर कभी एशिया के दुसरे मुल्कों में तो कभी यूरोप के मुल्कों में दर बदर भटकाता रहा।
डाक्टर मुहम्मद इक़बाल शैदाई का जन्म 1888 में सियालकोट में हुआ था, पिता पेशे से एक टीचर थे, 1920 में जब हिन्द को दारुल हरब करार दे दिया गया, तब मुसलमानों के ऊपर अंग्रेज़ी हुकूमत से लड़ना फ़र्ज़ करार हो चूका था, इक़बाल शैदाई ने ग़दर पार्टी को ज्वाईन किया और अपना घर छोड़ अफ़गानिस्तान की तरफ़ निकल गए, हज़ारो की तादाद में हिन्दुस्तानी वहां पहुँच चुके थे, इक़बाल वहां मिनिस्टर की हैसियत से काम करने लगे।
1923 में इक़बाल अफ़गानिस्तान से निकल इटली पहुंचे, फिर मॉस्को फिर पेरिस। हर जगह वो हिन्दुस्तान से अंग्रेज़ी हुकूमत को निकालने के लिए कोशिश करते रहे। 1938 में इन्ही वजहों से उन्हें फ़्रांस छोड़ देने को कहा गया, जर्मनी में पाबंदी लगा दी गयी मगर कुछ अफ़गान दोस्तों की मदद से वो पाबंदी हट गई। 1938 में इक़बाल ग़दर पार्टी के नुमाईंदे की हैसियत से स्विट्ज़रलैंड गये, इक़बाल ने अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ तीन बड़े काम किये सबसे पहले उन्होंने “आज़ाद हिन्दुस्तान सरकार “ की स्थापना की जिसे बेनिटो मुसोलनी ने मान्यता दी, रेडियो हिमालया के नाम से रेडियो स्टेशन चलाया जहाँ से वो हिन्दुस्तान के जंगी सिपाहियों को सन्देश देते और इन सिपाहियों की मदद से “आज़ाद हिन्दुस्तान बटालियन“ की स्थापना की।
#RadioHimalaya की बुनियाद इक़बाल शैदाई और सरदार अजीत सिंह ने दुसरी जंग ए अज़ीम के दौरान (1941) रोम इटली मे डाला था. इसी से प्रेरित हो कर "आज़ाद हिन्द रेडियो" की बुनियाद सुभाष चंद्रा बोस ने डाला था.#IqbalShedai in the broadcasting center of Radio Himalaya, Rome.#WorldRadioDay pic.twitter.com/AUilCvq0Do
— Muslims of India (@WeIndianMuslims) February 13, 2018
शैदाई के ये तीनो काम ने नेताजी बोस के लिए रास्ते खोल दिए, नेता जी ने आज़ाद हिन्द सरकार की स्थापना की, आज़ाद हिन्द फ़ौज और रेडियो के माध्यम से अपने सन्देश लोगों तक पहुंचाए। आज़ादी के बाद शैदायी अपने वतन लौट आये, मगर दो साल बाद ही वापस इटली चले गये वहां उर्दू पढ़ाने का काम सर अंजाम दिया, इसी बीच मौलाना आज़ाद से उनकी मुलाकात रोम में हुई, मौलाना ने देल्ही आने की दावत दी, मगर शैदाई लगभग 14 साल वहीँ रहे, फिर वापस लाहौर आ गये और 13 जनवरी 1974 की सुबह इस दुनिया को छोड़ गए।
13 January 🕚
Remembering Great Freedom Fighter Dr Mohammad Iqbal Shedai On His #DeathAnniversary,
who established The Azad Hind Government (in Exile) in 1941 in Rome by approval of #BenitoMussolini. During World War II He created the Battaglione Azad Hindoustan from Indian POWs pic.twitter.com/PHIDfI5XVQ— Muslims of India (@WeIndianMuslims) January 12, 2018
शैदाई की ज़िन्दगी पर मौलाना मोहम्मद अली जोहर की बड़ी छाप दिखती है, जिस तरह मुहम्मद अली जौहर ने एक ग़ुलाम मुल्क में मरना पसंद नही किया था, ठीक उसी तरह शैदाई ने भी एक ग़ुलाम मुल्क में जीने को पसंद नही किया और अपने वतन से दूर रह कर वतन को आज़ाद कराने की कोशिश में जुटे रहे, और जब तक वतन आज़ाद न हुआ वो लौटे नही। हिन्दुस्तान में तवारीख़ तअस्सुब की क़लम से लिखी गयी है, लेकिन पाकिस्तान में शैदाई को गुमनाम करने की वजह शायेद उनका मुस्लिम लीग के ख़िलाफ़ होना ही रहा होगा।
Kamran Ibrahimi