Shubhneet Kaushik
1945-46 में जब आज़ाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर दिल्ली में मुक़दमा चल रहा था, उसी दौरान अप्रैल 1946 में आज़ाद हिन्द फौज के अधिकारी सरदार रामसिंह रावल दिल्ली में महात्मा गांधी से मिले। सरदार रामसिंह ने महात्मा गांधी से मिलकर उनसे आज़ाद हिन्द फौज के लिए संदेश माँगा। महात्मा गांधी ने आज़ाद हिन्द फौज के नाम जो संदेश दिया, वह 21 अप्रैल 1946 को ‘हरिजन’ में छपा। अपने संदेश में महात्मा गांधी ने कहा :
‘आज़ाद हिन्द फौज वालों के सामने दो रास्ते हैं। वे सशस्त्र सैनिकों के रूप में स्वतंत्र भारत की सेवा कर सकते हैं, या अगर उन्हें विश्वास हो कि अहिंसा अपेक्षाकृत अधिक श्रेष्ठ और सक्षम मार्ग है तो वे अहिंसाके सेनानी बन सकते हैं। उन्हें अपने प्रशिक्षण तथा अनुशासनका उपयोग करके जनसाधारण के बीच अहिंसक संगठन कायम करना चाहिए और अनुभवी रचनात्मक कार्यकर्ता बनना चाहिए। ऐसा करके वे दुनिया के सामने एक उज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत करेंगे।’
#MahatmaGandhi with soldiers of the INA, 1945.#AzadHindGovernment#AzadHindFauj#IndianNationalArmy
Photo by Kulwant Roy (1914-1984) and photo credit : Aditya Arya Archives, Chairman & Trustee, India Photo Archive Foundation. Via : @IndianExpress pic.twitter.com/9k6wEQ3lvu
— Heritage Times (@HeritageTimesIN) October 24, 2018
आज़ाद हिन्द फौज के साहस और बलिदान की प्रशंसा करते हुए महात्मा गांधी ने अहिंसा पर ज़ोर दिया और कहा कि ‘आज़ाद हिन्द फौज वालों ने बड़ी शक्ति, शूरता और सूझ-बुझ का परिचय दिया है। लेकिन मुझे यह कहना होगा कि उनकी उपलब्धियों से मैं चमत्कृत नहीं हुआ हूँ। बिना मारे मरने में ज्यादा बहादुरी है। मारने और मारते हुए मरने में आश्चर्य-जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन जो आदमी अपना सर कलम करवाने के लिए अपनी गर्दन शत्रु के आगे कर देता है लेकिन उसके आगे घुटने नहीं टेकता, वह निश्चय ही कहीं ऊँचे साहस का परिचय देता है।’
संदर्भ : सम्पूर्ण गांधी वांगमय, खंड 84.