नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान का जन्म 23 सितम्बर 1818 को पटना के एक बड़े बैंकर ख़ानदान में हुआ था, वालिद का नाम सैयद मेहंदी अली ख़ान रिज़वी था। परवरिश दादा मीर अब्दुल्ला की निगरानी में हुई, जो बड़े कामयाब बैंकर थे।
उर्दू, फ़ारसी के साथ अंग्रेज़ी भी सीख ली। जब बालिग़ हुवे तो ख़ानदानी पेशा इख़्तियार किया और तिरहुत इलाक़े का काम सम्भालने लगे। देखते ही देखते इसमें काफ़ी महारत हासिल कर ली। ज़मींदारी का काम भी देखते। ख़ूब पैसा बनाया, बिहार के सबसे अमीर लोगों में गिनती होने लगी।
सैयद विलायत अली ख़ान की सामाजिक कामों में बहुत दिलचस्पी थी, उन्होंने तालीम के फ़ील्ड में बहुत काम किया। 1862 में पटना कॉलेज को बनाने में सबसे आगे आगे रहे और काफ़ी रुपया डोनेट किया। 1872 में जब टेम्पल मेडिकल स्कूल (PMCH) खुला तो उसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और बहुत दान दिया।
और 1855 में ही पटना के कमिश्नर टेलर को Industrial और Agricultural School खोलने का प्रस्ताव दिया, जो बाद पटना सर्वे स्कूल के रूप में 1876 में खुला। जिसके लिए बड़ी संख्या में धन सैयद विलायत अली ख़ान ने दिया, 1882 में इसी के साथ Industrial School खुला, 1896 में इन दोनो को मिला कर बिहार इंजीनियरिंग स्कूल (NIT-Patna) की स्थापना करने में सैयद विलायत अली ख़ान ने अहम रोल अदा किया। इस इदारे की इमारत बनाने के लिए, सैयद विलायत अली ख़ान के परिवार के सदस्य नवाब लुत्फ़ अली ख़ान ने भी एक लाख रुपय दिया।
पटना लड़कियों के लिए स्कूल खोलने वाले बादशाह नवाब रिज़वी
इसके इलावा सैयद विलायत अली ख़ान ने कई स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, डिस्पेंसरी, मस्जिद, क्लब, सोसाइटी के फ़रोग़ के लिए बड़े पैमाने पर डोनेशन दिया था। उस ज़माने में सैयद विलायत अली ख़ान के बारे में ये बहुत मशहूर था के बिहार में बनने वाला वैसा कोई ऐसा इदारा या संस्था नही था, जिसमें सैयद विलायत अली ख़ान का हाथ नही हो। उन्होंने दूसरे मज़हब के लोगों की भी भरपूर मदद की।
उन्होंने बिहार से हज़ारों मील दूर आयरलैंड में जब क़हत पड़ा तब उन्होंने बड़ी संख्या में दान किया था, वहीं बिहार के 1874 के क़हत (भूखमरी) के दौरान उन्होंने लोगों की भरपूर मदद की, उस समय उनके द्वारा दान की गई राशि लाखों में थी। इसी दौरान जब वाइसराय लॉर्ड नॉर्थब्रूक ने बिहार का दौरा किया तो उनसे निजी तौर पर मिले और बिहार के हालात पर चर्चा करते हुए उनके काम की सराहना की।
1875 के आख़िर में प्रिंस ओफ़ ऑफ़ वेल्स जब भारत आए तो ख़ुसूसी तौर पर सैयद विलायत अली ख़ान को मिलने के लिए कलकत्ता बुलाया। उसी दौरान 1876 के शुरुआत में प्रिंस के पटना दौरे पर उनका इस्तक़बाल भी किया। विभिन्न सामाजिक कार्य में तन, मन और धन से आगे रहने की वजह कर 11 नवम्बर 1882 में उस समय की हुकूमत ने उन्हें नवाब का ख़िताब दिया। ये ख़िताब बंगाल के लेफ़्टिनेंट गवर्नर सर रिवर टॉमसन द्वारा हासिल किया। इससे पहले 13 मार्च 1878 को उन्हें सोनपुर डिविज़न के कमिश्नर द्वारा भी सम्मान मिल चुका था। वो नवाब सैयद विलायत अली ख़ान कहलाने लगे।
सर मुहम्मद फ़ख़्रुद्दीन, बिहार का सबसे बड़ा नायक
ऐंग्लो अफ़ग़ान युद्ध के दौरान मारे गए सिपाहियों की बेवा और यतीम बच्चों के लिए रिलीफ़ फ़ंड में काफ़ी पैसा जमा करवाया और साथ ही पटना के मुंसिपल कमिश्नर की हैसयत से मंगल तालाब की खुदाई और उसके विकास में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। कलकत्ता के ज़ूलोजिकल गार्डन के सदस्य थे, इसलिए उसके विकास में भी काफ़ी धन ख़र्च किया।
नवाब सैयद विलायत अली ख़ान से मशवरा करने बंगाल के लेफ़्टिनेंट गवर्नर तक पटना आते थे, जिसमें सर ऐश्ली ईडन, सर स्टूअर्ट बेली और सर ऐलेग्ज़ैंडर मकेंज़ी का नाम क़ाबिल ए ज़िक्र है, जो नवाब सैयद विलायत अली ख़ान से मिलने उनके आवास पर 1880, 1889 और 1896 गए।
नवाब सैयद विलायत अली ख़ान ने अपने जीवन में कई पद पर भी रहे, मुंसिपल कमिश्नर के इलावा वो ऑनरेरी मैजिस्ट्रेट के साथ डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के मेम्बर भी रहे। इसके इलावा वो और भी कई सोसाइटी के सदस्य थे, जिसमें ब्रिटिश इंडियन असोसीएशन क़ाबिल ए ज़िक्र है। लेडी डिफ़रिन फ़ंड के उपसंरक्षक बने और कलकत्ता के ऐग्रिकल्चर एंड हॉर्टिकल्चर सोसायटी ऑफ़ इंडिया और ज़ूलॉजिकल गार्डेन के आजीवन सदस्य रहे। साथ ही एक बार बिहार टेक्स्ट बुक कमेटी के अध्यक्ष भी बने। इन तमाम संस्थान के
उत्थान और फ़रोग़ के भरपूर कोशिश की।
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सामाजिक कार्यों को देखते हुवे नवाब सैयद विलायत अली ख़ान को 1 जनवरी 1886 को नवाब बहादुर के ख़िताब से नवाज़ा गया, उसके बाद वो नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान कहलाने लगे। उमर काफ़ी हो चुकी थी, पर सामाजिक कार्य में लगे हुवे थे, पर उनको सबसे बड़ा सदमा उस वक़्त पहुँचा जब उनका इकलौता लड़का सैयद तजम्मुल हुस्सैन ख़ान जनवरी 1899 में गुज़र गया। वो इस सदमे से उबर नही पाये और 3 जून 1899 को 81 साल की उमर में इंतक़ाल कर गए।
नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान के जनाज़े में पूरा पटना शहर उमड़ आया, पटना के कमिश्नर और पटना के कलेक्टर ख़ुद इस मौक़े पर मौजूद थे। 2 जुलाई 1899 को पटना में नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान को ख़िराज ए अक़ीदत पेश करने के लिए एक बड़ा जलसा पटना के कमिश्नर की अध्यक्षता में हुआ, जिसमें हर समुदाय के लोग पहुँचे थे। यहाँ एक प्रस्ताव पारित हुआ के नवाब बहादुर ने पटना में शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया, इसलिए उनको सच्ची श्रधांजलि तब ही होगा, जब हम इस फ़ील्ड में कुछ करें। इसके बाद चंदा करके पटना के मोहमडन ऐंग्लो अरेबिक स्कूल के लिए एक इमारत नवाब बहादुर सैयद विलायत अली ख़ान के नाम पर बनाई गई। आज यही स्कूल ओरीएंटल कॉलेज कहलाता है। इसी कॉलेज का सामने से एक सड़क गुज़रती है, जिसका नाम नवाब बहादुर रोड है।
इस आर्टिकल में इस्तेमाल की गई कुछ तस्वीरें हज्जन नवाब के इमामबाड़े में मौजूद थीं। पुराना इमामबाड़ा अब गिर चुका है, और उसकी जगह नया इमाबाड़ा बन गया है।