डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन, 20वीं सदी का सबसे बड़ा नायक

1926 के दौर में जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया बंद होने के हालात पर पहुँच गई तो ज़ाकिर हुसैन ने कहा “मैं और मेरे कुछ साथी जामिया की ख़िदमत के लिए अपनी ज़िन्दगी वक़्फ़ करने के लिए तैयार हैं. हमारे आने तक जामिया को बंद न होने दिया जाए.” जबकि उस वक़्त वो जर्मनी में पीएचडी कर रहे थे।

 

डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन, भारत के एक ऐसा अज़ीम शख़्स का नाम है, जिसने अपना पूरा जीवन तालीम के लिए वक़्फ़ कर दिया।

1920 में जब वो महज़ 23 साल के थे तब जामिया मिल्लिया इस्लामिया की अलीगढ़ में बुनियाद डालने में सबसे अहम रोल अदा किया।

1926 के दौर में जब जामिया मिल्लिया इस्लामिया बंद होने के हालात पर पहुँच गई तो ज़ाकिर हुसैन ने कहा “मैं और मेरे कुछ साथी जामिया की ख़िदमत के लिए अपनी ज़िन्दगी वक़्फ़ करने के लिए तैयार हैं. हमारे आने तक जामिया को बंद न होने दिया जाए.” जबकि उस वक़्त वो जर्मनी में पीएचडी कर रहे थे।

Dr Zakir Husain डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन
दर्स देते हुवे

और 1926 में डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन अपने दो दोस्त आबिद हुसैन व मुहम्मद मुजीब के साथ जर्मनी से भारत लौटकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया की ख़िदमत में लग गए।

डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन 29 साल की उमर में 1926 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के वाइस चांसलर बने और 1948 तक इस पद पर रहे।

इस दौरान पूरे भारत में अब्दुल मजीद ख़्वाजा के साथ पूरे भारत का दौरा कर जामिया मिलिया इस्लामिया के लिए चंदा जमा किया और उसके लिए ओखला में अलग से ज़मीन ख़रीदी।


When Guardians of the Jamia Millia Islamia met in Europe


1 मार्च, 1935 को जामिया के सबसे छोटे छात्र अब्दुल अज़ीज़ के हाथों ओखला में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की पहली बिल्डिंग की बुनियाद गई। जामिया के सबसे छोटे बच्चे के हाथों नींव रखवाने का ये आईडिया डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन का ही था। ज़ाकिर हुसैन का ये आईडिया गांधी जी को भी ख़ूब पसंद आया।

Dr Zakir Husain डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन

प्राइमरी एजुकेशन की मुहीम चलाई और चालीस के दहाई में हिंदुस्तानी तालीमी संघ के जलसों में लगातार सक्रिय रहे।

इसके बाद दिसंबर 1948 को इंडियन यूनिवर्सिटीज़ कमीशन के मेम्बर बने।

भारत के बँटवारे के बाद जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बंद होने के हालत में पहुँच गई तब उसे बचाने के लिए वहाँ गए और नवम्बर 1948 से सितम्बर 1956 तक वहाँ के वाइस चांसलर रहे।

इसी दौरान 1950 में डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी सर्विस के चेयरमैन बने।

1957 में बिहार के गवर्नर बना कर भेजे गए, इस तरह से वो ख़ुद ब ख़ुद पटना यूनिवर्सिटी के चांसलर बन गए, क्यूँकि पटना यूनिवर्सिटी का चांसलर बिहार का गवर्नर होता है।


प्रोफ़ेसर क़ासिम अहसन वारसी, शिक्षा के लिए जीवन वक़्फ़ कर देने वाला इंसान


वहाँ भी वो लगातार शिक्षा के लिए काम करते रहे। उन्होंने नेत्राहाट स्कूल से लेकर ख़ुदाबख़्श लाइब्रेरी के फ़रोग़ के लिए निजी तौर पर इंट्रेस्ट लिया। देसना की तारीख़ी अल इस्लाह लाइब्रेरी की किताबें उनकी वजह कर ही बच पाई।

डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन Dr Zakir Husain

1962 तक डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन पटना यूनिवर्सिटी के चांसलर और बिहार के गवर्नर रहे और फिर 13 मई 1962 को भारत के दूसरे उपराष्ट्रपति बने।

शिक्षा से जुड़े प्रोग्राम में लगातार जाते रहे। पोरबन्दर के आर्य कन्या गुरुकुल, देहरादून के दून स्कूल, इटावा के इस्लामिया स्कूल, टोंक की वनस्थली विद्यापीठ सहित दुनिया की कई यूनिवर्सिटी का दौरा किया।


सैयद हसन, जिन्होंने बिहार के पिछड़ों को पढ़ाने के लिए अपना जीवन वक़्फ़ कर दिया।


फिर 1963 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चांसलर बने और इसी पद पर रहते हुवे 13 मई 1967 को भारत के राष्ट्रपति बने और अपनी आख़री साँस तक भारत के राष्ट्रपति और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के चांसलर के पद पर रहे।

3 मई 1969 तक डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन का इंतक़ाल हुआ, उन्हें उनके बनाए हुवे इदारे जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दफ़न कर दिया गया।

Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.