क़ाज़ी ज़ुल्फ़ीक़ार अली बिहार के जहानाबाद ज़िला के क़ाज़ी दौलतपुर के रहने वाले थे। जो बाबू कुंवर सिंह के सबसे क़रीबी साथियों में से एक थे। 1857 की क्रांति की पूरी तैयारी में क़ाज़ी ज़ुल्फ़ीक़ार अली ने बाबू कुंवर सिंह के साथ मिल कर काम किया। जिसका ज़िक्र उन ख़त में बख़ूबी मिलता है, जो बाबू कुंवर सिंह ने 1856 में लिखा था।
ज्ञात रहे के क्रांति की शुरुआत 1857 में हुई थी, लेकिन बाबू कुंवर सिंह द्वारा कैथी लिपि में लिखे ख़त में बार बार युद्ध, मीटिंग जैसी चीज़ों का ज़िक्र हो रहा है, जिससे से इस चीज़ का अंदाज़ा लगाया जा सकता है की 1857 की क्रांति को फ़ौजी क्रांति नही है। बल्कि ये क़ाज़ी ज़ुल्फ़ीक़ार अली और बाबू कुंवर सिंह जैसे लोगों की लम्बी रणनीति का हिस्सा थी।
हमारे पास तीन ख़त हाथ लगा है, जिसको कुंवर सिंह की जानिब से जसवंत सिंह ने लिख था। जिसपर कुंवर सिंह का मोहर भी लगा हुआ है, पहला ख़त कुछ इस तरह है।
मई 1856
बेरादर ज़ुल्फ़ीक़ार,
उस दिन के जलसे में जो बातें तय हुईं वह तुम्हारे शरीक होने के वजह हुई। अब वक़्त आ गया है कि हम लोग अपनी तैयारी जल्दी करें। अब भारत को हम लोगों के ख़ून की ज़रूरत है। तुम्हारी मदद से हम लोग इस तरफ़ बेफ़िकर हैं, यह पत्र तुम्हें कहाँ से लिखा जा रहा है, तुम्हें ख़त देने वाला ही बताएगा। तुम्हारी अंगुसतरी मिल गई। इससे सब हाल मालूम हो गया। इससे दस्तार तलब करना तब जवाब पत्र दोगे। 15 जून को जलसा है। इस जगह तुम्हारा रहना ज़रूरी है। हम लोगों का आख़री जलसा होगा। इसमें सब कामों को मूर्तब कर लेना है।
मिनजानिब कुंवर सिंह
मुहर कुंवर सिंह
बा: जसवंत सिंह
ख़त मिलते ही ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ां ने अपने कमांडर (कुंवर सिंह) के क़ौल पर लब्बैक कहा और मैदान ए जंग मे कूद पड़े.. इन्होने नगवां गाँव में एक रेजिमेंट का गठन किया.. जहानाबाद ज़िले के इस रेजिमेंट ने गाज़ीपुर, बलिया जैसी जगहों पर छापामार युद्ध (गोरिल्ला वार) कर के अंग्रेज़ों को ख़ूब छकाया; और आख़िर आजमगढ़ में अंग्रेज़ी फ़ौज के साथ हुए आमने सामने के जंग में ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ां अपने कई बहादुर साथीयों के साथ शहीद हुए।