राजा महेंद्र प्रताप : क्रांतिकारीयों के पहले राष्ट्रापति

राजा महेंद्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को मुरसान के राजा बहादुर घनश्याम सिंह के यहाँ खड्ग सिंह के रूप में हुआ। बाद में उन्हें हाथरस के राजा हरिनारायण सिंह ने गोद ले लिया व उनका नाम महेंद्र प्रताप रखा।

उन्होने निर्बल समाचार पत्र की स्थापना की व भारतीयों में स्वतन्त्रता के प्रति जागरूकता लाने का काम किया।

वे विदेश गए कई देशों से भारत की स्वतंत्रता के लिए सहयोग मांगा और इसके बाद काबुल अफगानिस्तान में देश की प्रथम आजाद हिंदसरकार की स्थापना की। 28 साल बाद इन्ही की तरह नेताजी ने आजाद हिंद सरकार बनाई थी।

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अंग्रेजों ने इनके सर पर इनाम रख दिया था और इसके बाद उनके राज्य को भी हड़प लिया था।

जापान ने उन्हें मार्को पोलो, जर्मनी ने ऑर्डर ऑफ रेड ईगल की उपाधि दी थी। वे चीन की संसद में भाषण देने वाले पहले भारतीय थे। वे दलाई लामा से भी मिले थे। उन्होंने ग़दर पार्टी के साथ मिलकर भी आजादी के लिए कार्य किया था।

उन्होंने जींद पटियाला नाभा आदि रियासतों से होकर आक्रमण करके अंग्रेजो से देश को आजाद करने की योजना बनाई लेकिन यह योजना सफ़ल न हो सकी। वे विश्वयुद्ध में अंग्रेजो का साथ देने के विरुद्ध थे और उन्होंने इस पर गांधी जी का विरोध किया।

वे लेनिन से मिलने भी पहुंचे लेकिन लेनिन ने कोई सहायता करने से मना कर दिया था। वे 1920 से 1946 तक बहुत से देशों में पहुँचे व भारतीयों पर हो रहे अत्याचार के बारे में विश्व को जागृत किया। उन्होंने विश्व मैत्री संघ की स्थापना की, उसी तर्ज पर संयुक्त राष्ट्रा की शुरुआत हुई थी।

वे 32 सालों तक देश के लिए अपना परिवार छोड़कर दुनिया भर की खाक छानते रहे। जब वे वापिस भारत पहुंचे तो सरदार पटेल जी की बेटी मणिकाबेन उन्हें हवाई अड्डे पर लेने पहुंची थी। 1952 में उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।

1909 में वृन्दावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। मदनमोहन मालवीय इसके उद्धाटन समारोह में उपस्थित रहे। ट्रस्ट का निर्माण हुआ-अपने पांच गाँव, वृन्दावन का राजमहल और चल संपत्ति का दान दिया। राजा साहब श्रीकृष्ण भक्त थे उन्ही के नाम पर उन्होंने देश का यह प्रथम तकनीकी प्रेम महाविद्दालय खोला था।उन्होंने अपनी आधी सम्पति इस विद्यालय को दान कर दी थी।

बनारस हिंदू विश्वद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वद्यालय, कायस्थ पाठशाला के लिए जमीन दान में दी। हिन्दू विश्वविद्यालय के बोर्ड के सदस्य भी रहे। उनकी दृष्टि विशाल थी। वे जाति, वर्ग, रंग, देश आदि के द्वारा मानवता को विभक्त करना घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे। ब्राह्मण-भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नहीं थे।

वृन्दावन में ही एक विशाल फलवाले उद्यान को जो 80 एकड़ में था, 1911 में आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। जिसमें आर्य समाज गुरुकुल है और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी है। मथुरा में किसानों के लिए बैंक खोला, अपने राज्य के गांवों में प्रारंभिक पाठशालाएं खुलवाई।

उन्होंने चुनावों में बड़े बड़े दिग्गजों को धूल चटा दी थी। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार होते हुए भी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की ज़मानत ज़ब्त करवा दी थी। उन्होंने छुआछूत को कम करने के लिए दलितों के साथ एक राजा होते हुए भी खाना खाया जो उस समय एक असामान्य बात थी। उन्होने चर्मकार समाज को जाटव की उपाधि दी थी।

उन्होंने अपनी सारी संपत्ति देश और शिक्षा के लिए दान कर दी थी। 29 अप्रैल 1979 को राजा साहेब का हुआ था निधन। अपनी अफगानिस्तान यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी अपने भाषण में इनको नमन किया था।

ऐसे महान दानवीर स्वतन्त्रता सेनानी राष्ट्रवादी समाज सुधारक राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी को कोटि कोटि नमन।