जब एक मुग़ल शहज़ादी के क़ौल पर हिंदू राजपूतों ने अपनी जान लड़ा दी।

“अस्मत ए चागताई वा राजपुत यक अस्त।”

साल था 1682 यही कोई जून जुलाई का महीना रहा होगा। बादशाह औरंगज़ेब के बेटे आज़म शाह मराठों से लड़ने में मसरूफ़ थे, जब उन्हें बादशाह औरंगज़ेब ने अहमदनगर की ओर मार्च करने का हुक्म दिया और फिर चढ़ाई करते हुए उन्होंने धारूर (बीड ज़िला महाराष्ट्र) पर कब्जा कर लिया।

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खतरे को महसूस करते हुए उन्होंने अपनी बेगम जहां ज़ेब बानो को पीछे (धारूर में) छावनी में छोड़ दिया और राव अनिरुद्ध सिंह हाडा और उनके वफादार राजपूत मातहतों को उनकी हिफाज़त का ज़िम्मा सौंपकर शहजादा आज़म शाह अपनी फ़ौज के साथ अहमदनगर की ओर कूच कर गए। इसके बाद मराठों ने बड़ी ही चालाकी से आज़म शाह को मसरूफ रखने के लिए एक दस्ता भेजा और और दूसरे से दस्ते से उन्होंने शाही छावनी को घेर लिया जहां जहांजेब बानो बेगम ने डेरा डाल रखा था।

यहां शहजादी जहाँजेब ने खुद मोर्चा सम्हाला हालांकि अनिरुद्ध सिंह और दूसरे मातहतों ने उन्हें छावनी में रुकने के लिए मनाने की पूरी कोशिश की पर वह नहीं मानी उन्होंने कहा-” हालात नाज़ुक है। ये कहने सुनने का नहीं करने का वक्त है।”

Jahanzeb Banu Begum.
Source: Wikipedia Commons

ये कह कर बेगम हाथी पर सवार होकर दुश्मन से मुकाबले के लिए कोई दो मील आगे आ गईं इसके बाद उन्होंने अनिरुद्ध सिंह हाड़ा को अपने हाथी के नजदीक बुलाया और अपने हौदे में बैठे हुए परदे से ही बोलीं-

“अस्मत ए चगतय्या वा राजपुत यक अस्त।”

यानी “चगताइयों और राजपूतों की इज़्ज़त एक है।

मैं आपको अपना बेटा कहती हूं और फिर उन्होंने खुद अपने हाथों से राव अनिरुद्ध और उनके मातहतों को कुछ भाले सौंपकर उनसे कहा, “अगर खुदा हमें इस छोटी सी फ़ौज के साथ जीत दिलाते हैं तो बेहतर है, नहीं तो आप मेरे बारे में बेफिक्र हो जाएं, मैं अपना काम कर दूंगी” (मतलब वह मराठा फ़ौज से बचने के लिए खुदकुशी कर लेंगी)।


Rao Raja Aniruddha Singh
Source: vam.ac.uk

इसके बाद बूंदी के उस बहादुर राजपूत सरदार ने फर्ज़ शनाशी (कर्तव्यपरायणता) और बहादुरी की मिसाल कायम करते हुए एक अज़ीम जंग लड़ी। जंग के दौरान जहांज़ेब बानू बेगम अपने ख्वाजासरा गुलामों (किन्नरों) के हाथों पान की पोटलियां राजपूत सरदारों को भिजवाती थीं ताकि उनकी हौसला अफज़ाई हो सके।

इस लड़ाई में 900 से ज्यादा राजपुत और बहुत सारे मराठे मारे गए और आखिरकार बूंदी के लाल अनिरुद्ध सिंह हाड़ा घायल हालत में मगर जीत कर लौटे इसके बाद जहांज़ेब बानु बेगम ने उन्हें बुलाकर अपने गले का मोतियों का हार उनके गले में डाल दिया और इस तरह एक मुग़ल शहजादी के कौल पर राजपूतों ने अपनी जान लड़ा दी थी।

संदर्भ-
1- स्टडी इन औरंगज़ेबस रेन सर जादूनाथ सरकार
2- अ हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब सर जादूनाथ सरकार खंड 4

Muhib Khan

Muhib Khan, the founder behind the influential social media handle "Dehlidarvesh," is an independent researcher and a passionate advocate for preserving the unsung heritage of India. With a postgraduate degree in History, he possesses a deep understanding of the subject and utilizes his expertise to meticulously document and shed light on the often overlooked aspects of India's rich cultural legacy. Through his dedicated work, Muhib Khan aims to bring attention to the lesser-known historical treasures, ensuring that they are not forgotten.