वीर विनोद छाबड़ा
20 फरवरी 1964 कानपुर में भारत-इंग्लैंड के बीच अंतिम टेस्ट का अंतिम दिन। भारतीय टीम को जैसे-तैसे हो टेस्ट बचाना है। इससे पहले इंग्लैंड ने पहली पारी 8 विकेट पर 559 रन पर ख़त्म कर दी थी। जवाब में भारतीय टीम 266 रन पर सिमट गयी। इंग्लैंड के कप्तान माईक स्मिथ बोले -फॉलोऑन। अब 293 रन बना कर इनिंग डिफीट बचानी है। चाय तक क्रीज़ पर बापू नाडकर्णी और दिलीप सरदेसाई अंगद की तरह पैर जमाये थे। तक़रीबन निश्चित हो गया था कि मैच बच जाएगा। बोरिंग ड्रा। लेकिन उस दौर के दर्शक धन्य थे। आख़िरी गेंद तक स्टेडियम हॉउस फुल रहता था। और लाखों लोग रेडियो के इर्द-गिर्द जमे कमेंटरी सुन रहे होते थे, घरों में, होटलों में, ढाबों में और पान की दुकानों पर। सबको फ़ुरसत ही फ़ुरसत थी। साथ ही आँखों में चमक भी। शायद कोई कमाल हो जाए। आशावाद की पराकाष्ठा। और उस दिन सचमुच सलीम दुर्रानी ने कमाल कर दिया। दिलीप सरदेसाई आउट हुए। दुर्रानी आये। दर्शकों को उन्हीं का इंतज़ार था। वी वांट सिक्स। और दुर्रानी ने निराश नहीं किया। गेंद बॉउंड्री के ऊपर से पार। स्टेडियम ख़ुशी से झूम उठा। पंजों के बल हर आदमी खड़ा हो गया। तालियों का शोर, चीख रहे हैं लोग। मानों फ्रेंज़ी हो गए हैं। दौरा पड़ा है। इसके बाद तो दे दनादन चौका-छक्का। इंग्लिश गेंदबाज़ों को कतई उम्मीद नहीं थी कि इस तरह पिटाई करके विदा किया जाएगा। सिर्फ़ चौंतीस मिनट में दुर्रानी ने पांच चौके और तीन छक्के सहित 61 रन ठोंक डाले। युद्ध जैसे उन्माद में थे वो। लग रहा था कि सैकड़े तक पहुँच जाएंगे। अभी तक़रीबन आधा घंटा बाकी था। लेकिन क्रिकेट जेंटलमैन खेल है। जब किसी नतीजे का इमकान नहीं रहता तो अम्पायर्स बेल्स गिरा देते हैं। उस दिन भी यही हुआ। मायूसी, मगर हरेक की ज़बान पर दुर्रानी का जलवा। मैच ड्रा हो गया। लेकिन दुर्रानी ने पैसे वसूल करा दिए।
#SalimAzizDurani(11 December 1934) is a former Indian cricketer who played in 29 Tests from 1960 to 1973. An all-rounder, #SalimDurani was famous for his six-hitting prowess.
He was the 1st cricketer to win an #ArjunaAward. He is the only Indian cricketer who born in #Afghanistan pic.twitter.com/H1AocKlhKs— Heritage Times (@HeritageTimesIN) October 3, 2018
1972-73 में इंग्लैंड की टीम जब फिर कानपुर आई थी तो दुर्रानी नहीं थे। कानपुर की हर दीवार रंग दी गयी – नो दुर्रानी, नो टेस्ट। ऐसा था जलवा दुर्रानी का। 11 दिसंबर 1934 को जन्मे सलीम अज़ीज़ दुर्रानी के पिता अब्दुल अज़ीज़ दुर्रानी भी बेहतरीन क्रिकेटर थे। 1930 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध अन-ऑफिशल टेस्ट खेला था। पार्टीशन पर वो पाकिस्तान चले गए। लेकिन सलीम दुर्रानी मां के साथ भारत में रहे। उन्होंने राजस्थान की ओर से रणजी खेला और कई बार फ़ाईनल में टीम को पहुंचाया। वो लेफ्टहैंड बल्लेबाज़ और ऑर्थोडॉक्स स्पिनर थे। उन्होंने 1960 से 1973 के बीच 29 टेस्ट में 1202 रन बनाये और 75 विकेट लिए। लेकिन निरंतरता की कमी के कारण वो टीम में स्थाई जगह नहीं बना पाए। बीच-बीच में चमकते रहे। जब जब मैदान में उतरे माहौल में बिजली दौड़ गयी। 1961-62 कलकत्ता और मद्रास टेस्ट दुर्रानी के बेहतरीन आल-राउंड प्रदर्शन के बूते ही जीते गए थे। इसके साथ ही भारत ने घर में पहली बार सीरीज़ जीती थी।
1970-71 में वेस्ट इंडीज़ जाने वाली टीम के लिए कप्तान अजीत वाडेकर ने दुर्रानी के लिए ख़ास डिमांड की थी। पोर्ट ऑफ़ स्पेन टेस्ट में दुर्रानी ने क्लाईव लायड और गैरी सोबर्स के विकेट निकाले। इसी दम पर भारत ने शक्तिशाली वेस्ट इंडीज़ को पहली बार हराया था।
दुर्रानी 1973 में रिलीज़ बीआर ईशारा की ‘चरित्र’ में प्रवीण बॉबी के सामने हीरो थे। लेकिन बदकिस्मती से फ़िल्म फ्लॉप हो गयी और इसके साथ ही दुर्रानी भी गुमनामी में चले गए। वो पहले अर्जुन अवार्ड विजेता रहे। इस साल जून में अफ़ग़ानिस्तान के विरुद्ध बंगलुरु टेस्ट में दुर्रानी ख़ास मेहमान थे, क्योंकि उनका जन्म अफ़ग़ानिस्तान में हुआ था। लगभग 84 साल के दुर्रानी इस समय मुंबई में रहते हैं, दुरुस्त हैं।
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०३ अक्टूबर २०१८